शकील अख्तरयह कैसा देश बनाना चाह रहे हैं पता नहीं इन्हें मालूम भी है या नहीं। दुनिया भर में बलात्कारी का कहां सम्मान होता हैघ् और सबसे बड़ी दुरूख की बात तो यह कि यह लोग निर्भया बलात्कार पर राजनीति करके ही सत्ता में आए थे। आज अगर पूछा जाए कि सबसे बड़ा खलनायक कौन है, तो अन्ना हजारे के अलावा क्या कोई और नाम आएगा। बलात्कार पर राजनीति करने वाला वह शख्स आज कहां है;
निर्भया की मां ने वही हिम्मत दिखाई जो वे इतने सालों से लगातार दिखाती आ रही थीं। बाकी अच्छे अच्छों को सांप सूंघ गया। बिलकिस बानो के बलात्कारियों की रिहाई उनके स्वागत सम्मान पर उनमें से कोई नहीं बोला जिन्होंने निर्भया के मामले को पूरी तरह राजनीतिक बना दिया था। ऐसा राजनीतिक माहौल पैदा कर दिया था जैसे बलात्कार में दिल्ली की कांग्रेस सरकार और केन्द्र की यूपीए सरकार की गलती हो। जबकि केन्द्र और राज्य की दोनों सरकारें पूरी तरह निर्भया के साथ खड़ी थीं। उसे इलाज के लिए सिंगापुर पहुंचाया। परिवार को सुरक्षा और मानसिक संबल दिया। राहुल गांधी ने निर्भया के भाई को पायलट बनवाया। बिना किसी प्रचार के। चुपचाप। बाद में निर्भया के परिवार ने ही यह रहस्योद्घाटन किया कि कैसे राहुल चुपचाप परिवार की मदद करते रहे।
राहुल ऐसे काम करते रहे हैं। अभी कोरोना में एक पत्रकार ने रोते हुए अपना बहुत ही दयनीय वीडियो बनाकर सार्वजनिक किया था। राहुल को जैसे ही पता चला उन्होंने फौरन मदद भेजी। खुद फोन किया। हर मदद का भरोसा दिलाया। अब कौन भूल जाता है, कौन याद रखता है यह राहुल कभी नहीं सोचते। मगर अच्छी बात यह है कि निर्भया की मां आशादेवी ने अपना बुरा समय याद रखा। उन्होंने कहा कि बलात्कारियों का स्वागत होते देखकर खून खौल उठता है। उनको तो फांसी होना चाहिए।कोई बड़ी बात नहीं कि कल तक एक बहादुर महिला के तौर पर सम्मान पा रहीं आशा देवी को अब ट्रोल भी करवाया जाने लगा। ज्यादा पुरानी बात नहीं है जब भाजपा की सबसे बड़ी महिला नेता रहीं सुषमा स्वराज को इस हद तक ट्रोल किया गया था कि उनके पति से कहा जा रहा था शाम को घर लौटने पर बाल पकड़कर घसीटते हुए उनकी पिटाई करें। सुषमा जो विदेश मंत्री थीं। दुनिया में भारत की प्रतिनिधि। उनके लिए ऐसे कहा जा सकता है तो फिर किसी के लिए भी कुछ भी कहा जा सकता है। हालत इतने गंभीर बना दिए गए हैं कि भक्त लोग और मीडिया किसी को भी बख्शने को तैयार नहीं हैं। यहां तक कि सेना को भी। चीन की घुसपैठ का बचाव करने के लिए एक एंकर बोलती हैं कि यह तो सेना की गलती है सरकार थोड़ी घुसपैठ रोकने आएगीघ्
ऐसे खतरनाक समय में निर्भया की मां का बोलना वाकई बहुत हिम्मत का काम है। जिस समय राजनीतिक दल तक बोलने की हिम्मत नहीं कर रहे हों। न्यायपालिका खामोश हो और मीडिया की तो बात ही करना फिजूल है। ऐसे में एक लंबे संघर्ष से थकी मां फिर खड़ी हो जाए यह बहुत बड़ी बात है। नेताओं में ऐसी ही हिम्मत राहुल गांधी ने दिखाई। प्रियंका ने दिखाई। बलात्कारियों के छोड़ने पर सवाल उठाए। हाथरस में दलित लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या, कठुआ में नाबालिग बच्ची के साथ कई दिन तक सामूहिक बलात्कारए उन्नाव रेप केस में आज तक पीड़िता को धमकियां मिलना भी याद करवाया।
गुजरात में इसी साल चुनाव हैं और गुजरात सरकार ने बलात्कारियों, हत्यारों, जिनमें तीन साल की बच्ची की हत्या का मामला भी शामिल है को छोड़ दिया। क्या मतलब है इसका। भाजपा के ही एक विधायक ने बताया कि यह ब्राह्मण थे। अच्छे संस्कारी थे इसलिए इन्हें रिहा कर दिया। निर्भया की मां ने पूछा कि क्या संविधान में लिखा है कि अगर ब्राह्मण बलात्कारी है तो उसे छोड़ दिया जाए, साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अगर अच्छे संस्कार थे तो बलात्कार क्यों किया। दरअसल जब नफरत और विभाजन राजनीतिक तौर पर बढ़ाई जाती है तो वह फिर किसी को नहीं छोड़ती। दिमाग और जबान इतनी खराब हो जाती है कि उसे पता ही नहीं होता कि वह किसका फायदा और किसका नुकसान कर रही है। नफरत के मारे भाजपा विधायक सीके राउलजी तो पता ही नहीं है कि वे ब्राह्मणों का अपमान कर रहे हैं। पूरे एक समुदाय का अपमान। किसे पता था कि बलात्कार करने वालों में से 11 ब्राह्मण थे। यह बात बड़ी शान से भाजपा के विधायक बता रहे हैं। बलात्कारियों को संस्कारी बता रहे हैं।
यह कैसा देश बनाना चाह रहे हैं पता नहीं इन्हें मालूम भी है या नहीं। दुनिया भर में बलात्कारी का कहां सम्मान होता है। और सबसे बड़ी दुख की बात तो यह कि यह लोग निर्भया बलात्कार पर राजनीति करके ही सत्ता में आए थे।
आज अगर पूछा जाए कि सबसे बड़ा खलनायक कौन हैघ् तो अन्ना हजारे के अलावा क्या कोई और नाम आएगा। बलात्कार पर राजनीति करने वाला वह शख्स आज कहां है। जो दूसरा गांधी बन गया था वह व्यक्ति आज देश में इतनी समस्याएं देखकर चुप कहीं बैठा है।
हमने तब भी कहा था कि वह एक नकली आदमी था। भेड़ की खाल में भेड़िया। जो भोले, विश्वासी लोगों को बेवकूफ बनाने आया था। उसे संघ द्वारा लाया गया था। क्या क्या मुद्दे थे। उस समय क्या किसी को याद है। भ्रष्टाचार, नारी पर अत्याचार, लोकपाल! आज कहा हैं।
सबसे बड़ी विडंबना यह थी कि कांग्रेस का बड़ा हिस्सा इस भ्रमजाल में फंस गया था। हमें याद है कि सबसे ज्यादा कांग्रेसी इस बात पर आश्चर्य करते थे कि हम अन्ना हजारे के खिलाफ उतना क्यों लिख रहे हैं। एक बड़े नेता का सवाल हमें आज तक याद है कि उन्होंने कहा था कि आप उनसे प्रभावित नहीं हैंघ् उन्हें दूसरा झटका तब लगा था जब हमने कहा कि हम जयप्रकाश नारायण से भी नहीं थे। पाठकों को शायद याद होगा कि जयप्रकाश ने कहा था कि अगर संघ साम्प्रदायिक है तो मैं भी हूं।
यह भारत का दुर्भाग्य रहा कि यहां लोगों को बेवकूफ बनाना सबसे आसान है। लोग बाद में चिल्लाते हैं कि उनके साथ धोखा हो गया। मगर उस समय जब उनसे कहो कि यह कोई महात्मा, दूसरे गांधी या उपकारी पुरुष नहीं हैं बल्कि किसी की कठपुतली हैं तो वे नहीं मानते। उल्टे लड़ने आ जाते हैं। कबीर ने कहा है ना. सांच कहो तो मारन धावैं।1967 में सबसे पहले गैरकांग्रेसवाद के नाम पर लोहिया ने जनसंघ का साथ दिया। उसी के बाद से जनसंघ जो आज कि भाजपा है का राजनीतिक विस्तार शुरू हुआ। फिर 1974. 75 में जेपी ने ऐसे ही कांग्रेस के खिलाफ जनसंघ और संघ को साथ लेकर आंदोलन किया। लोगों को यह तो याद नहीं कि उस समय जेपी ने सेना से सरकार के आदेश न मानने की अपील की थी। अराजकता की पराकाष्ठा। मगर यह याद है कि इन्दिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाई थी। सेना से सरकार की बात न मानने के आह्वान के बाद एक प्रधानमंत्री को क्या करना चाहिए।
कांग्रेस की गलतियां होंगी। हजार होंगी। मगर जनता को बेवकूफ बनाने की ऐसे कामों में उसकी संलिप्तता कहीं नहीं मिलती। लोहिया, जेपी, फिर वीपी सिंह का झूठा आंदोलन, जिसके लिए उन्होंने बाद में माफी मांगी से लेकर अन्ना के आंदोलन तक हर बार जनता ठगी गई।
बलात्कारियों के खिलाफ तो क्या सत्ता पक्ष, क्या विपक्ष सबको सामने आना चाहिए था। निर्भया का मामला मिसाल था। मगर अब सत्ता पक्ष और मीडिया तो क्या विपक्ष के अधिकांश नेता भी सामने नहीं आए हैं।
यह राजनीति का सवाल नहीं है। यह सिद्धांत का सवाल है। अन्याय के खिलाफ खड़े होने की हिम्मत का। भाजपा ने तो चुनाव के समय उन्हें छोड़कर साम्प्रदायिक एंगल देने की पूरी कोशिश की है। मगर चुनाव हैं इसलिए अन्याय के खिलाफ नहीं बोलना देश और सत्य के साथ बहुत बड़ा विश्वासघात हो जाएगा। भाजपा ने तो 2002 से ही वहां हर चुनाव हिन्दू.मुसलमान बनाकर लड़ा है। कभी जनरल मुशर्रफ को मियां मुशर्रफ कहकर याद किया है तो कभी कहा है कि कांग्रेस अहमद पटेल को मुख्यमंत्री बनाना चाहती है। मगर क्या यह हमेशा चलेगा। भाजपा पिछला चुनाव हारते.हारते बची थी। 182 सीटों में से भाजपा को 99 और कांग्रेस को 80 सीटें मिली थीं।
कांग्रेस बलात्कारियों के खिलाफ बोले या न बोले भाजपा तो गुजरात में हिन्दू.मुसलमान ही मुद्दा बनाएगी। दो दशक से ज्यादा समय से उसकी सरकार है मगर वह अभी भी विकास या किसी और कामकाज के मुद्दे पर चुनाव नहीं लड़ती है। ऐसे में कांग्रेस ने बलात्कार जैसे घृणित अपराध के खिलाफ खड़े होकर न्याय के लिए खड़े होने का अपना साहसी चेहरा ही दिखाया है। जो हाथरस से उन्नाव, कठुआ हर जगह सामने रहा।