- जगदीश रत्तनानी
देश के सामने प्रश्न यह नहीं है कि हमें विकास की आवश्यकता है या नहीं, बल्कि यह सवाल है कि भारत में किस प्रकार का विकास होना चाहिए। प्रधानमंत्री की टिप्पणियों से लगता है कि 'इंडिया शाइनिंग' का कीड़ा गहराई तक अंतर्निहित है। भारत को चमकने के लिए मजबूर किया जा सकता है लेकिन यह सवाल बना हुआ है कि क्या भारत के लोग चमकेंगे- और यही वह जमीन है जिस पर इस चुनाव में भाजपा के खिलाफ अपनी लड़ाई में कांग्रेस भारी पड़ रही है।
चुनावी मौसम में बढ़ती गर्मी के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने चुने हुए मीडिया घरानों के साथ साक्षात्कारों की एक श्रृंखला शुरू की है। ज्यादातर साक्षात्कारों पर नियंत्रण दिखाई देता है लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि इन साक्षात्कारों के सुरक्षित खाली स्थानों में भी कुछ अलिखित शब्द बच गए हैं जो आज देश के सामने मौजूद कुछ ज्वलंत मुद्दों के बारे में समझ और वचनबद्धता की खतरनाक कमी को प्रकट करते हैं। उदाहरण के लिए, कर्नाटक की शक्ति योजना पर प्रधानमंत्री की टिप्पणियों को लें! शक्ति योजना पिछले साल जून में शुरू की गई थी। ताजा आंकड़ों के मुताबिक अब तक महिलाओं और लड़कियों ने लगभग 200 करोड़ फेरे की शून्य लागत पर राज्य परिवहन की यात्रा बसों में की है। प्रतिदिन लगभग 65 लाख महिलाएं इस योजना का लाभ उठा रही हैं। ये आंकड़े सिटी बस सेवाओं और राज्य में शहर या गांव में चल रही बस सेवाओं की फेरियों के माध्यम से कहीं भी आने-जाने का लाभ उठा रही महिला यात्रियों के हैं। राज्य में इस योजना का जबरदस्त असर हुआ है और इसका एक सरल और स्पष्ट संदेश है कि महिलाएं खुद को स्वतंत्र महसूस करती हैं। वे हर जगह यात्रा कर रही हैं। आश्चर्य की बात नहीं है कि वास्तव में यह एकमात्र कल्याणकारी योजना है जिसका अत्यधिक उपयोग किया जा रहा है। योजना सरल, स्पष्ट, प्रयोग करने योग्य है- अपना निवासी कार्ड दिखाएं और यात्रा करें।
एक साक्षात्कार में इस योजना के बारे में प्रधानमंत्री ने अज्ञानता भरी टिप्पणी करते हुए कहा कि कर्नाटक में कांग्रेस सरकार द्वारा महिलाओं को मुफ्त बस यात्रा की पेशकश से नवनिर्मित मेट्रो सेवाओं का उपयोग कम होगा इसलिए मेट्रो घाटे में चलेगी और कोई भी देश में मेट्रो सेवाओं का निर्माण नहीं करेगा। यह बहुत ही सीमित और संकीर्ण दृष्टिकोण है और यह नज़रिया उस समय टिक नहीं पाता है जब हम समझेंगे कि कल्याणकारी योजनाएं कैसे काम करती हैं। वे कैसे सशक्त हो सकती हैं और मुक्ति के लिए एक ताकत बन सकती हैं तथा समाज के कमजोर वर्गों, विशेष रूप से लड़कियों और महिलाओं के लिए नए अवसर खोल सकती हैं। जैसा कि कर्नाटक के मामले में है। यह आश्चर्यजनक है कि गुजरात के मुख्यमंत्री और अब प्रधानमंत्री के पदों पर दो दशकों से अधिक समय तक रहने के बाद भी नरेंद्र मोदी विकास की बुनियादी बातों के प्रति संवेदनशील दिखाई नहीं देते या उन्होंने ये सबक सुने तो हैं लेकिन इन पर ध्यान नहीं दिया है; अथवा चुनाव के इस कड़वे मौसम में वे कर्नाटक में यह योजना लाने वाली कांग्रेस के प्रति अपनी नफ़रत में अंधे हो गए हैं। भारत सरकार, यहां तक कि भाजपा सरकार भी बहुत सारी कल्याणकारी योजनाएं चला रही है और अगर प्रधानमंत्री की इसी सोच को लागू किया जाए तो अवधारणात्मक रूप से यह एक ऐसी सरकार होनी चाहिए जो न केवल कर्नाटक में मुफ्त परिवहन योजना बल्कि गैर-भाजपा शासित राज्यों- दिल्ली, तमिलनाडु, तेलंगाना और पंजाब की सभी कल्याणकारी योजनाओं को अस्वीकार करती है।
कर्नाटक की शक्ति योजना के संपूर्ण प्रभाव को देखने और समझने में अभी समय लगेगा। फिर भी यह विचार सभी तर्कों को पराजित कर देता है कि यह योजना सवारियों को मेट्रो से दूर ले जाती है। इसकी जड़ में यह बात है कि प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि गरीबों को भुगतान करने तथा मेट्रो लाइनों की सवारी करने के लिए कहें (जहां किराया सामान्य रूप से बहुत अधिक है) ताकि मेट्रो व्यवहार्य हो जाए एवं निवेश की भरपाई हो सके और इस प्रकार बताया जा सके कि विकास हुआ है। विकास के क्या मायने हैं यह उनके नेतृत्व वाली सरकार के लिए एक भयावह संकीर्ण दृष्टिकोण है और शायद इसे जाने बिना ही प्रधानमंत्री ने कांग्रेस पार्टी के आरोप को स्वीकार कर लिया है कि यह अमीरों की, अमीरों द्वारा और अमीरों की सरकार है। जिस लेंस से काम करने का यह पूरा तरीका देखा जा रहा है वह फाइनेंसर का लेंस है। यह उन महिलाओं और लड़कियों का लेंस नहीं है जो कर्नाटक में मुफ्त यात्रा सुविधा का लाभ उठा रही हैं, जो सुविधाएं स्पष्ट रूप से पहले नहीं थीं। यह नरेंद्र मोदी की समझ की कमी की भी याद दिलाता है जो उन्होंने प्रधानमंत्री बनने से पहले दिखाई थी। जब वे नेतृत्व करने की तैयारी कर रहे थे तब उन्होंने मुंबई में एक सार्वजनिक बैठक में कहा था कि -'बुलेट ट्रेन दुनिया को यह दिखाने के लिए थी कि भारत विकसित है भले ही कोई इसका इस्तेमाल न करे।' भले ही उस समय इस बात को एक अपरिपक्व टिप्पणी कहकर खारिज कर दिया गया हो लेकिन इस बार शक्ति योजना तथा भारत में असमानता में वृद्धि पर पूछे गए अन्य प्रश्नों पर प्रधानमंत्री की टिप्पणी वृद्धि और विकास के मुद्दों के विचार और समझ में कुछ बुनियादी समस्याओं को दर्शाती है।
कर्नाटक की फ्री बस योजना के मामले में जो स्पष्ट प्रश्न उठते हैं वे सीधे हैं- जैसे 1. महिलाएं पहले उस तरह से यात्रा क्यों नहीं कर रही थीं जिस तरह से वे अब कर रहीं हैं? 2. जमीनी स्तर की अर्थव्यवस्था के लिए यात्रा में इस भारी वृद्धि का क्या मतलब है? 3. अब सामने आ रही शिकायतें- जैसे कि बसों में भीड़ होती है और वे अक्सर समय पर नहीं चलतीं आदि के बारे में सार्वजनिक सेवा की उच्च गुणवत्ता के लिए जमीनी स्तर की मांग के लिए क्या उपाय हैं? 4. इन मांगों के बारे में सरकार की प्रतिक्रिया कैसी होगी और क्या उसे सार्वजनिक परिवहन में अधिक निवेश करने के लिए मजबूर किया जाएगा? 5. महिला श्रम बल की भागीदारी और समग्र रूप से अर्थव्यवस्था पर आनुषांगिक लाभ क्या होंगे? 6. क्या आपको काम करने का अधिकार हो सकता है लेकिन काम करने के लिए सुरक्षित और शालीन तरीके से यात्रा करने का अधिकार नहीं है? ऐसे और भी कई प्रश्न इस योजना को लेकर सामने आते हैं लेकिन इनमें से कोई भी सवाल प्रधानमंत्री और मेट्रो सेवाओं को आगे बढ़ाने में मदद करने की उनकी नीति के समक्ष विचारणीय नहीं है। इसका मतलब चाहे महिलाओं को उस तरह से यात्रा करने से रोकना हो जिस तरह से वे अभी कर रहीं हैं।
विश्व की सबसे अमीर अर्थव्यवस्थाओं में से एक लक्ज़मबर्ग ने लगभग चार साल पहले न केवल वहां के निवासियों के लिए बल्कि सभी लोगों के लिए मुफ्त यात्रा की घोषणा की। यूरो न्यूज़ के अनुसार द ग्रीन्स पार्टी के नेता और लक्ज़मबर्ग के पूर्व उप प्रधानमंत्री फ्रांस्वा बॉश ने कहा-'यह योजना काफी लागत वाली है, लेकिन इसका सभी करदाताओं द्वारा भुगतान किया जाता है ... वहां अधिक इक्विटी है क्योंकि जाहिर है कि जो लोग कम करों का भुगतान करते हैं वे इस प्रणाली में कुछ भी नहीं या बहुत कम भुगतान करते हैं। जो लोग अधिक कर का भुगतान करते हैं ... एक मूल्य टैग है जो थोड़ा अधिक हो सकता है।' वहां इस योजना का आनुषांगिक लाभ यह है कि देश की परिवहन प्रणाली में निवेश धीमा नहीं हुआ है। नई ट्राम प्रणाली नियमित और विश्वसनीय है जो ट्रैफिक की बाधाओं से मुक्त है। देश ने अपने रेल नेटवर्क को बेहतर बनाने के लिए रिकॉर्ड निवेश किया है।
अंत में, देश के सामने प्रश्न यह नहीं है कि हमें विकास की आवश्यकता है या नहीं, बल्कि यह सवाल है कि भारत में किस प्रकार का विकास होना चाहिए। प्रधानमंत्री की टिप्पणियों से लगता है कि 'इंडिया शाइनिंग' का कीड़ा गहराई तक अंतर्निहित है। भारत को चमकने के लिए मजबूर किया जा सकता है लेकिन यह सवाल बना हुआ है कि क्या भारत के लोग चमकेंगे- और यही वह जमीन है जिस पर इस चुनाव में भाजपा के खिलाफ अपनी लड़ाई में कांग्रेस भारी पड़ रही है।(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। सिंडिकेट: द बिलियन प्रेस)