- डॉ.अजीत रानाडे
जीडीपी और जीवीए विकास दर के बीच का अंतर हो या जीडीपी और उपभोग खर्च के बीच या अपेक्षाकृत कम क्षेत्रीय दर या बहुत कम अपस्फीतिकारक हो, ये सभी समग्र जीडीपी डेटा को अधिक बारीक और उच्च आवृत्ति वाले क्षेत्रीय डेटा के साथ त्रिभुजाकार बनाने की आवश्यकता की ओर इशारा करते हैं। यह वास्तविक समय के आधार पर डेटा एकत्र करने वाली मशीनरी में बड़े पैमाने पर बदलाव करने की आवश्यकता पर बल देते हैं।
दिसंबर, 2023 को समाप्त हुई तिमाही के दौरान भारत की जीडीपी वृद्धि दर 8.4 प्रतिशत रही। यह दुनिया की सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे अधिक है। महामारी के बाद लगातार तीन साल तक अर्थव्यवस्था का अपेक्षाकृत स्वस्थ गति से बढ़ना बेहद खुशी की बात है। यह उत्साहित करने वाली बात है और शेयर बाजारों ने भी इस पर शानदार प्रतिक्रिया दी। शेयर बाजार सूचकांक नए शिखर छू रहा है जो निवेशकों के आशावाद को दर्शाता है। सेमीकं डक्टर विनिर्माण में 15 अरब डॉलर के निवेश की स्थापना के लिए अनुमोदन जैसी कई घोषणाएं अर्थव्यवस्था के लिए एक उज्ज्वल नज़रिए के साथ उत्साह और विश्वास की बात करती हैं।
दिसंबर की तिमाही में 8.4 प्रतिशत की वृद्धि के महत्व को समझने के लिए 'हुड के नीचे' जाना महत्वपूर्ण है। यह विशेष रूप से इसलिए है क्योंकि इस तरह की उच्च वृद्धि की खबर ने सभी उम्मीदों को बड़े अंतर से हरा दिया। उदाहरण के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा नियमित रूप से आयोजित मेक्रो-इकॉनॉमिक संकेतकों पर पेशेवर पूर्वानुमानकर्ताओं के सर्वेक्षण ने मार्च में समाप्त होने वाले इस वर्ष के लिए हाल ही में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 6 से 6.9 प्रतिशत के बीच होने की भविष्यवाणी की थी। दिसंबर तिमाही के लिए वास्तविक संख्या वार्षिक पूर्वानुमान की तुलना में लगभग 2 प्रतिशत अधिक है। बेशक, पूर्वानुमानकर्ता कई बार गलत हो जाते हैं लेकिन इतने बड़े अंतर से नहीं। ये पूर्वानुमानकर्ता हर समय उच्च आवृत्ति डेटा के आधार पर अर्थव्यवस्था पर नज़र रख रहे हैं।
दूसरी पहेली जीडीपी वृद्धि दर और इसी तिमाही के सकल मूल्य वर्धन (जीवीए) के बीच अंतर है। उत्तरार्द्ध उत्पादित और बेची गई वस्तुओं और सेवाओं के वास्तविक मूल्य का सही माप देता है। दुनिया भर में यह आर्थिक स्वास्थ्य का पसंदीदा संकेतक है। जीडीपी और जीवीए के बीच का अंतर आम तौर पर मामूली होता है तथा करों को घटाने के बाद सब्सिडी के शुद्ध प्रभाव को दर्शाता है। अप्रत्यक्ष कर संग्रह से जीडीपी में वृद्धि होती है जबकि सब्सिडी से जीडीपी कम होती है।
ये दोनों ज्यादातर एक-दूसरे को संतुलित करते हैं। दिसंबर तिमाही के लिए जीवीए वृद्धि केवल 6.5 प्रतिशत है जो जीडीपी वृद्धि से लगभग दो प्रतिशत कम है। यह अंतर पिछले दस वर्षों में सबसे अधिक दर्ज किया गया है। यह सब्सिडी आउटगो में भारी गिरावट (50 प्रतिशत से अधिक) व अप्रत्यक्ष कर संग्रह में बड़ी वृद्धि के कारण हुआ है। यह समझने के लिए हमें गहराई से जांच करने की आवश्यकता है कि क्या ये एक ऑफ स्पाइक्स (सकारात्मक और नकारात्मक दोनों) हैं या क्या ऐसी अस्थिरता जारी रहेगी। पिछली तीन तिमाहियों में जीवीए ग्रोथ 8.2 फीसदी से घटकर अब 6.5 फीसदी पर आ गई है। चूंकि 2023-24 के लिए कुल विकास दर लगभग 7.3 या 7.5 प्रतिशत है इसका मतलब है कि अप्रैल में समाप्त होने वाली चौथी तिमाही में जीवीए वृद्धि दर 6 प्रश से कम होने की संभावना है। यह डेटा मई के अंत तक ही जारी किया जाता है।
जीडीपी और जीवीए विचलन के अलावा एक और पहेली उपभोग व्यय की वृद्धि दर है। यह सकल घरेलू उत्पाद का 55 प्रतिशत से अधिक है और इसका बड़ा हिस्सा बनता है। यह केवल 3 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है तथा कई साल के निचले स्तर पर है। उपभोक्ता खर्च की बड़ी मदद के बिना उच्च विकास को बनाए नहीं रखा जा सकता है। यह बदले में उपभोक्ताओं की भावना, उनके वर्तमान खर्च और भविष्य के खर्च के लिए उनकी योजना (जैसे फ्रिज, वॉशिंग मशीन, एयर कंडीशनर, फर्नीचर, पर्यटन यात्रा, आदि) पर निर्भर करता है। उपभोक्ता भविष्य के बारे में आशावादी तभी होते हैं जब उनकी नौकरी की संभावनाएं उज्ज्वल होती हैं। उच्च बेरोजगारी दर, विशेष रूप से कॉलेज शिक्षित युवाओं के बीच उपभोग खर्च को हतोत्साहित कर सकती है।
घरेलू उपभोग सर्वेक्षण पर हाल ही में जारी पत्रक खपत पर मासिक खर्च का एक बारीक नजरिया देता है। यह सर्वेक्षण 11 वर्षों के अंतराल के बाद आया है व इस अवधि में औसतन वृद्धि ग्रामीण क्षेत्रों में 164 फीसदी और शहरी क्षेत्रों में 146 फीसदी रही है। ये संख्याएं नाममात्र के संदर्भ में हैं यानी वे मुद्रास्फीति समायोजन के लिए जवाबदेह नहीं हैं। सर्वेक्षण के अनुसार मुद्रास्फीति के हिसाब से समायोजित किया जाए तो 11 वर्षों की अवधि में उपभोग में वास्तविक वृद्धि ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 40 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों के लिए 34 प्रतिशत आंकी गई है। इस प्रकार नेशनल सैम्पल सर्वे (एनएसएस) पर आधारित उपभोग वृद्धि लंबी अवधि में मुश्किल से 3.5 प्रतिशत है। बेशक, उपभोक्ता खर्च के बीच यह जानी-मानी विसंगति रही है जैसा कि एनएसएस द्वारा खुलासा किया गया है और जैसा कि केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) द्वारा स्पष्ट किया गया है। यह अंतर अभी भी बहुत व्यापक है। लेकिन इस डेटा को इन दो लेंसों से देखना महत्वपूर्ण है तथा कुछ स्थिरता प्राप्त करने का प्रयास करें और माप में यदि कोई दोष हो तो उन दोषों को दूर किया जाना चाहिए। तथ्य यह है कि उच्च जीडीपी वृद्धि और कम खपत खर्च वृद्धि सुसंगत नहीं लगती है।
जब हम 'हुड के नीचे' देखते हैं तो एक तीसरा पहलू सामने आता है जो उद्योग और कृषि क्षेत्रों का प्रदर्शन का होता है। जीडीपी को खर्च पक्ष (यानी खपत, निवेश, शुद्ध निर्यात और सरकार) से मापा जा सकता है या इसे उत्पादन पक्ष (यानी कृषि, उद्योग और सेवाओं) से मापा जा सकता है। जब हम बाद की ओर यानी उत्पादन पक्ष की ओर से देखते हैं तो दिसंबर तिमाही के लिए कृषि विकास शून्य से नीचे गिर गया है। इस नकारात्मक संख्या को आधार प्रभाव के रूप में समझाया गया है क्योंकि तिमाही आंकड़ों में एक साल पहले इसी आंकड़े में वृद्धि हुई है। चूंकि दिसंबर 2022 तिमाही के लिए वह संख्या 5 प्रतिशत से अधिक थी और 'उच्च आधार' की थी इसलिए वर्तमान संख्या नकारात्मक है। जो भी हो नवीनतम अनुमानों के अनुसार इस साल जीडीपी वृद्धि में कृषि का समग्र योगदान 1 प्रतिशत से नीचे होगा। यह विभिन्न कारणों से चिंताजनक है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ग्रामीण परिवारों की आजीविका और आय के लिए इसका क्या अर्थ है। औद्योगिक विकास दर 11 प्रतिशत है जिसका 'आधार प्रभाव' एक साल पहले महज 0.6 प्रतिशत था।
अंत में, पहेली का एक और हिस्सा नाममात्र व वास्तविक जीडीपी वृद्धि के बीच का अंतर है। यह मुद्रास्फीति के कारण है और राष्ट्रीय स्तर पर सुधार जीडीपी अपस्फीतिकारक (डिफ्लेटर) द्वारा किया जाता है। यह आंकड़ा केवल 1.6 प्रतिशत बताया गया है जो लगभग कोई मुद्रास्फीति नहीं दर्शाता है, लेकिन निश्चित रूप से यह वास्तविकता से कम एक सकल अनुमान है। अगर जीडीपी ग्रोथ 8.4 फीसदी है तो नॉमिनल जीडीपी ग्रोथ कम से कम 12 या 13 फीसदी रहने की उम्मीद होनी चाहिए। यह एक साल पहले की तुलना में दिसंबर तिमाही में केवल 10 प्रतिशत अधिक थी। जीडीपी अपस्फीतिकारक बहुत कम है।
चाहे वह जीडीपी और जीवीए विकास दर के बीच का अंतर हो या जीडीपी और उपभोग खर्च के बीच या अपेक्षाकृत कम क्षेत्रीय दर या बहुत कम अपस्फीतिकारक हो, ये सभी समग्र जीडीपी डेटा को अधिक बारीक और उच्च आवृत्ति वाले क्षेत्रीय डेटा के साथ त्रिभुजाकार बनाने की आवश्यकता की ओर इशारा करते हैं। यह वास्तविक समय के आधार पर डेटा एकत्र करने वाली मशीनरी में बड़े पैमाने पर बदलाव करने की आवश्यकता पर बल देते हैं।(लेखक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री हैं। सिंडिकेट: द बिलियन प्रेस)