दिल्ली प्रदूषण : भारत की फजीहत

पिछले कई वर्षों से दिल्ली एवं एनआरसी में हर साल की सर्दियों में होने वाला स्मॉग (धुंध व धुंआ) लोगों के लिये अनेक तरह की समस्याएं लेकर आता है। इसके कारण दृश्यता इतनी कम हो जाती है कि कुछ ही मीटर की दूरी तक भी दिखाई देना बन्द हो जाता है।

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दिल्ली प्रदूषण  भारत की फजीहत
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देशबन्धु
Updated on : 2024-11-20 02:54:54

पिछले कई वर्षों से दिल्ली एवं एनआरसी में हर साल की सर्दियों में होने वाला स्मॉग (धुंध व धुंआ) लोगों के लिये अनेक तरह की समस्याएं लेकर आता है। इसके कारण दृश्यता इतनी कम हो जाती है कि कुछ ही मीटर की दूरी तक भी दिखाई देना बन्द हो जाता है। राष्ट्रीय महामार्ग पर अनेक हादसे होते हैं, ट्रेनें व जहाजों की उड़ाने या तो रद्द होती हैं या फिर विलम्ब से उनका परिचालन होता है। स्कूलों में अक्सर छुट्टियां दे दी जाती हैं। लोगों के स्वास्थ्य पर बहुत ही गम्भीर परिणाम पड़ते हैं। बड़ी संख्या में लोगों के बीमार होने की शिकायतें मिलती हैं। मौसम के ठंडा होने के साथ ही पूरे क्षेत्र में पराली जलाने के कारण गाढ़े धुंए की मोटी परत पूरे इलाके पर छा जाती है।

विभिन्न तरह की परेशानियों और समस्याओं को लेकर आने वाले प्रदूषण का असरकारक तोड़ अब तक न दिल्ली सरकार ढूंढ़ पाई है और न ही केन्द्र सरकार। पराली जलाने के आरोप में हरियाणा, पंजाब एवं उत्तर प्रदेश के कुछ किसानों के खिलाफ मामले दर्ज करने के अलावा अब तक ठोस कार्रवाई होती नहीं दिखी है। अब यह मामला अजरबैजान की राजधानी बाकू में जलवायु परिवर्तन पर चल रहे वैश्विक सम्मेलन सीओपी 29 में गूंज गया है जिसमें इस पर प्रदीर्घ मंथन तो हुआ ही, भारत की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेइज्जती भी हो गयी।

स्थिति की भयावहता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 24 घंटे का वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 294 पहुंच गया जो 'गम्भीर से अधिक' माना जाता है। कुछ इलाकों में यह 500 के ऊपर चला गया। पार्टिकूलेट पॉल्यूशन 1000 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से भी ज्यादा रहा। यह प्रदूषण ब्लैक कार्बन, ओज़ोन, जीवाश्म ईंधन और पराली के जलाने से होता है जो स्वास्थ्य के लिये बेहद खतरनाक है। इसमें सांस लेना मानों कई दर्जन सिगरेटें पीना है। इसका प्रतिकूल असर लाखों लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। पर्यावरण विशेषज्ञ इस दिशा में तत्काल और दीर्घकालिक उपाय अपनाने की ज़रूरत बतला रहे हैं। पिछले कुछ साल से ठंड के मौसम में इस प्रकार का स्मॉग इस पूरे क्षेत्र के वायुमंडल को चपेट में लेता है और इस पर हाय-तौबा मचती है। एक बार यह मौसम खत्म होने तथा स्मॉग साफ हो जाने के बाद लोग इसे भूल जाते हैं और सरकारें भी। क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला ने स्थिति की भयावहता पर तो प्रकाश डाला ही है, उन्होंने तंज कसा कि 'हम वैश्विक मुद्दों पर तो बात करते हैं लेकिन लाखों लोगों के स्वास्थ्य सम्बन्धी खतरों की ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं।' सम्भवत: उनका इशारा बाकू में भारत के प्रतिनिधित्व एवं वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न खतरों की ओर उसकी चिंताओं की ओर था, जबकि भारत की राजधानी में लाखों लोगों के स्वास्थ्य को गम्भीर खतरा है। दमा, फेफड़े में संक्रमण, एलर्जी आदि से पीड़ित लोगों के लिये यह मरण काल है।

दिल्ली-एनसीआर के इस मामले की अनुगूंज सीओपी 29 में जिस तरीके से सुनाई दी वह भारत के लिये पर्याप्त अपमानजनक थी। बहुत सी ऐसी बातें कही गयीं जो कई देशों के साथ सीधे भारत की ओर इशारा करती हुई उसे चोट पहुंचाने वाली रहीं। ग्लोबल क्लाइमेट एंड हेल्थ एलायंस के उपाध्यक्ष कर्टनी हार्वर्ड ने कनाडा के अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि 'पिछले वर्ष वहां के जंगलों में लगी आग ने 70 प्रतिशत आबादी के जीवन को खतरे में डाल दिया था और उस त्रासदी से निपटने में उस देश को निपटने में वित्तीय समस्या आई थी।' उनका कहना था कि 'जब एक समृद्ध देश को इतनी परेशानी हो सकती है तो गरीब देशों के बारे में अनुमान लगाया जा सकता है। इस स्थिति से निपटने के लिये गरीब देशों को वित्तीय मदद की ज़रूरत है।' पर्यावरणविद भावरीन कंधारी का कहना है कि 'सीओपी 29 को अपने दूसरे हफ्ते में शहरी जलवायु की ओर ध्यान देना होगा।' उन्होंने इस स्थिति को 'सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल' बतलाया।

दिल्ली-एनसीआर के वायु प्रदूषण पर सीओपी-29 में मुद्दा गरीब देशों के हवाले से उठा, जिससे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कई दावे हवा में उड़ गये। पहला यह कि मोदी भारत को एक बड़ी आर्थिक ताकत बतलाकर खुद की पीठ ठोंकते रहे हैं। साफ है कि अगुवा देश अब भी भारत को गरीब देशों की पंक्ति में ही खड़ा करते हैं। दूसरे, पीएम यह भी बताते रहे हैं कि भारत ने ग्रीन हाउस गैसों का स्तर देश में घटाया है। ऐसा वे कार्बन उत्सर्जन को भी शामिल करते हुए कहते रहे हैं। इतना ही नहीं, देश के भीतर व बाहर वे भारतीयों के जीवन स्तर में बढ़ोतरी का भी दावा करते हैं। चूंकि भारत में तो मोदी के पास एक प्रचार तंत्र है जिसमें उनकी कही बात को कोई काटने वाला नहीं होता, लेकिन ऐसे समिट में किसी प्रकार के राजनीतिक दबावों में या पक्षपातपूर्ण तरीकों से चर्चाएं नहीं होती। सम्भव भी नहीं है। यह जमावड़ा जलवायु विशेषज्ञों का होता है जो वैज्ञानिक आधार पर अपने आकलन एवं विश्लेषण प्रस्तुत करते हैं।

बेहतर होगा कि केन्द्र सरकार पर्यावरण संरक्षण करने तथा देशवासियों को ऐसे जानलेवा प्रदूषण से बचाने के स्थायी प्रबन्ध करे। एक बड़ी आबादी को ऐसी खतरनाक स्थिति में नहीं झोंका जा सकता। हर साल बढ़ रहे प्रदूषण की मूकदर्शक बनकर सरकार दिल्ली-एनसीआर के निवासियों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रही है।

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