महंगी पड़ेगी किसानों की गिरफ्तारी

एक आश्चर्यजनक कदम उठाते हुए पंजाब सरकार ने लगभग 100 किसान नेताओं की गिरफ्तारी कर शंभू-खनौरी बॉर्डर खाली तो करा दिया है

facebook
twitter
whatsapp
महंगी पड़ेगी किसानों की गिरफ्तारी
File Photo
देशबन्धु
Updated on : 2025-03-21 04:12:59

एक आश्चर्यजनक कदम उठाते हुए पंजाब सरकार ने लगभग 100 किसान नेताओं की गिरफ्तारी कर शंभू-खनौरी बॉर्डर खाली तो करा दिया है लेकिन अपनी मांगों को लेकर शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन कर रहे किसानों को गिरफ्तार करना न केवल केन्द्र सरकार को महंगा पड़ेगा बल्कि पंजाब की आम आदमी पार्टी (आप) सरकार के प्रति भी किसानों में नाराज़गी बढ़ेगी। पंजाब सरकार का यह कदम इसलिये हैरत में डालता है क्योंकि जहां एक ओर आप का समर्थन शुरू से ही किसान आंदोलन को रहा है, तो वहीं कुछ माह पहले सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार ने कहा था कि किसानों को हटाने या उनके खिलाफ कोई कार्रवाई करने से देश भर के किसानों में असंतोष फैलेगा जिससे स्थिति बेकाबू हो सकती है। इस कार्रवाई के बाद आंदोलन के और तेज होने का अनुमान है क्योंकि किसान नेताओं ने ऐलान किय़ा है कि वे अंतिम सांस तक लडें़गे। अचानक हुई इस कार्रवाई से यह भी सवाल उठ रहा है कि क्या केन्द्र सरकार पंजाब सरकार के कंधे पर रखकर बन्दूक चला रही है?

किसानों का एक प्रतिनिधि मंडल गुरुवार को चंडीगढ़ में केन्द्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान तथा केन्द्र सरकार के अधिकारियों से चर्चा कर लौट रहा था तभी उन्हें मोहाली में गिरफ्तार कर लिया गया। साथ ही पंजाब पुलिस के सैकड़ों जवानों द्वारा आंदोलन स्थल खाली कराने का एक्शन किया गया। इस कार्रवाई में जेसीबी और बुलडोज़रों का इस्तेमाल हुआ। अनशनकारी व उनके समर्थन में बैठे किसानों के टेंट भी उखाड़ दिये गये। किसान मजदूर मोर्चे का कार्यालय, मंच और कच्चे-पक्के निर्माण ध्वस्त हो गये। पुलिस का दावा है कि सुबह तक पूरा क्षेत्र खाली हो जायेगा। समीपवर्ती इलाकों की इंटरनेट सेवाएं बन्द कर दी गयी हैं। लगभग 100 गिरफ्तार लोगों में सरवन सिंह पंढेर तथा जगजीत सिंग डल्लेवाल भी हैं जो आंदोलन के शीर्ष नेता हैं। पंजाब के वित्त मंत्री ने जले पर नमक छिड़कते हुए कहा है कि 'जिन राजमार्गों पर किसानों ने पिछले कई माह से आंदोलन जारी कर रखा है, वह नागरिकों के आवागमन में बाधा पहुंचा रहा है। ये राजमार्ग प्रदेश की जीवन रेखाएं हैं। किसानों द्वारा इन्हें अवरूद्ध करने के कारण उद्योग एवं व्यवसायों पर बुरा असर पड़ रहा है।' उनका यह भी कहना है कि 'इससे युवाओं को रोजगार नहीं मिल रहे हैं।'

पिछले वर्ष 13 फरवरी को दिल्ली कूच करने निकले किसानों को जब रोका गया था तो उन्होंने शंभू-खनौरी बॉर्डर पर धरना दे दिया था। तब से यह आंदोलन वहां जारी था। एमएस स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार किसानों को उनके उत्पादों का न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की मांग को लेकर देश भर के कई किसान संगठन आंदोलनरत हैं। उल्लेखनीय है कि 9 अगस्त, 2020 से 11 दिसम्बर, 2021 तक देश भर में किसानों का ऐतिहासिक आंदोलन केन्द्र के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ हुआ था। इन कानूनों को वापस लेते हुए मोदी ने यह भी कहा था कि 'वे किसानों से केवल एक फोन कॉल की दूरी पर हैं। वे इस मामले पर कभी भी चर्चा करने के लिये तैयार हैं।' कई माह ठहरने तथा अधिकारियों से कई राउंड की बातचीत के बाद भी सरकार द्वारा कोई फैसला न लेने के कारण किसानों को फिर से सड़कों पर उतरना पड़ा है।

साफ है कि केन्द्र सरकार स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश वाला एमएसपी लागू नहीं करेगी क्योंकि मोदी के कारोबारी मित्रों की फूड प्रोसेस इंडस्ट्री में बड़े पैमाने पर उतरने की तैयारी है जिसके लिये ज़रूरी है कि किसानों के उत्पादों को कार्पोरेट के हाथों तक सस्ते दामों में पहुंचाया जाये। जो तीन कृषि कानून पास किये गये थे और किसानों के दबाव में वापस लिये गये, उनका मकसद देश की सुदृढ़ मंडी व्यवस्था को खत्म कर खाद्यान्नों पर उद्योगपतियों का पूरी तरह से आधिपत्य स्थापित करना था। इसलिये मोदी के लिये यह सम्भव नहीं है कि स्वामीनाथन की सिफारिश वाले सी-2 फार्मूले के अनुसार एमएसपी प्रदान करें जिससे किसानों का लाभ दोगुना हो। ऐसा करने पर कृषि उत्पादों पर कारोबारियों का वर्चस्व नहीं हो पायेगा। उल्लेखनीय है कि मोदी ने वायदा किया था कि 2022 तक किसानों की आय दोगुनी कर दी जायेगी। निजी हाथों में फसलों को बेचकर यह सम्भव नहीं है।

अकाली दल के नेता दलजीत सिंह चीमा ने पंजाब सरकार से पूछा है कि इस बैठक में क्या तय हुआ है? उनका यह शक वाजिब हो सकता है कि केन्द्र और राज्य द्वारा मिलकर यह कदम उठाया गया है। कांग्रेस नेताओं ने भी इस कदम की आलोचना की है। सम्भवत: यह कार्रवाई केन्द्र सरकार के इशारे पर हुई हो। हाल ही में दिल्ली सरकार से अपदस्थ होने के कारण आप की हालत डांवाडोल है। कोई भरोसा नहीं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा उनके प्रमुख सिपहसालार अमित शाह कब पंजाब में 'ऑपरेशन लोटस' चला दें। दिल्ली चुनाव हारने के बाद कई नेताओं की तिहाड़ जेल में वापसी भी हो सकती है। किसान आंदोलन मोदी सरकार के लिये प्रतिष्ठा का भी सबब है क्योंकि 11 वर्षों के कार्यकाल में यही एकमेव उदाहरण है जिसमें भारतीय जनता पार्टी की केन्द्र सरकार और सीधे कहें तो मोदी को करारी पराजय मिली थी।

बहरहाल, पंजाब सरकार के कंधे पर रखकर यह केन्द्र सरकार द्वारा बन्दूक चलाने का मामला हो सकता है। जो भी हो, इस दमन से किसानों के झुकने का सवाल ही पैदा नहीं होता। आश्चर्य नहीं होना चाहिये कि आंदोलन नये सिरे से फिर प्रारम्भ हो। सरकार को चाहिये कि गिरफ्तार किसानों को रिहा करे और वे वादे पूरे करे जो किसानों से किये गये थे।

संबंधित समाचार :