• हंसी में उड़ते गंभीर सवाल

    राष्ट्रवाद और धर्म के नाम पर चल रहे इस उन्माद में ही जरूरी मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाया जा रहा है

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    - सर्वमित्रा सुरजन

    राष्ट्रवाद और धर्म के नाम पर चल रहे इस उन्माद में ही जरूरी मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाया जा रहा है। पबजी हो या फौजी इसमें असली कमाई ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों की है और इसके जरिए एक पूरी पीढ़ी को मानसिक तौर पर गुलाम बनाया जा रहा है। आजादी का अमृतवर्ष मना रही सरकार को सोचना चाहिए कि जिन सवालों को हंसी में उड़ाया गया या उड़ाया जा रहा है, वो भावी पीढ़ियों के लिए कितने खतरनाक साबित हो रहे हैं।

    2019 का वाकया है। प्रधानमंत्री मोदी परीक्षाओं से पहले विद्यार्थियों और अभिभावकों से परीक्षा पर चर्चा कार्यक्रम के तहत मुखातिब थे। इस दौरान एक मां ने अपने बेटे के पढ़ाई से भटकते ध्यान पर चिंता जतलाते हुए कहा कि 'मेरा बेटा 9वीं क्लास में पढ़ता है, पहले वो पढ़ने में बहुत अच्छा था, पिछले कुछ समय से ऑनलाइन गेम्स के प्रति उसका झुकाव ज़्यादा बढ़ गया है। जिसकी वजह से उसकी पढ़ाई पर फ़र्क़ पड़ रहा है। कृपया मेरा मार्गदर्शन करिए कि मैं क्या करूं'। इस सवाल के पूरा होने के तुरंत बाद प्रधानमंत्री मोदी ने पूछा था कि, 'ये पबजी वाला है क्या?' पूरा हॉल ठहाकों से गूंज उठा था। मोदीजी के समर्थक और प्रशंसक इस बात पर गदगद थे कि प्रधानमंत्री जी को आज के बच्चों की आदतों और पसंद के बारे में कितना पता है। एक गंभीर समस्या पर गंभीर सवाल, हंसी में उड़ गया।

    हालांकि इसके बाद जब चीन से सीमा विवाद हुआ और भारत सरकार को अपना दम दिखाना था, तो बहुत सारे चीनी ऐप्स बंद कर दिए गए थे। सरकार की फिर वाहवाही हुई कि कितनी मजबूत सरकार है, चीन का आर्थिक बहिष्कार कर उसे सबक सिखा दिया। हालांकि चीन से व्यापार अलग-अलग तरीकों से चालू है, सीमा पर चीन की हलचलें भी जारी हैं और पबजी अपने नुकसान अब भी दिखा रहा है। बल्कि अब एक ऐसा वाकया सामने आया है, जिससे ऑनलाइन खेले जाने वाले तमाम खेलों पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।

    लखनऊ में पबजी की लत के शिकार 16 साल के एक बच्चे ने गेम खेलने से रोकने पर अपनी मां की ही गोली मार कर हत्या कर दी। लड़के के पिता जूनियर कमीशंड ऑफिसर हैं और फिलहाल पश्चिम बंगाल में तैनात हैं। अपने पिता की लाइसेंसी पिस्तौल से ही मां की गोली मार कर हत्या कर दी। बच्चे ने शनिवार-रविवार की दरमियानी रात तीन बजे इस घटना को अंजाम दिया और लाश को घर के एक कमरे में बंद करके रख दिया। गोली मारे जाने के वक्त बच्चे की नौ साल की बहन भी वहां मौजूद थी। उसने बहन से कहा कि वह इस बारे में किसी को न बताए वरना इसका अंजाम बुरा होगा। बच्चे ने लाश से आने वाली बदबू को दबाने के लिए रूम फ्रेशनर का इस्तेमाल किया था। लेकिन जब बदबू फैल गई, तो फिर उसने अपने पिता को मां की मौत के बारे में सूचित किया और इसके लिए मनगढ़ंत कहानियां बनाई कि यह काम घर में आने वाले एक इलेक्ट्रीशियन का है। लेकिन इलेक्ट्रीशियन से पता करने पर ये बात झूठी निकली। बच्चा ज़्यादा देर तक पुलिस को गुमराह नहीं कर पाया और उसने सच्चाई उगल दी।

    16 बरस के इस नाबालिग को अब जीवन में किस तरह के हालात में रहना पड़ेगा, उसका भविष्य क्या होगा, किस तरह वह जीवन भर हत्यारे का ठप्पा लगाकर जिएगा, क्या कभी वह नौकरी कर पाएगा, क्या कभी उसका कोई परिवार होगा, मां का साथ तो उसने खुद खत्म कर लिया, अब उसके पिता उसके साथ किस तरह रहेंगे, उसकी छोटी बहन की मानसिक स्थिति कैसी होगी, कैसे दो-तीन दिन तक उसने अपनी मां की मौत की बात छिपाई होगी, अब वो किस तरह पढ़ाई कर पाएगी या अपना कॅरियर बना पाएगी, ऐसे कई सारे सवाल इस एक घटना से उठे हैं। मगर इनके जवाब अभी कोई नहीं जानता। समाज के लिए यह दो-तीन दिन की चर्चा का विषय है कि एक बेटे ने अपनी मां की हत्या कर दी, कोई इसे घोर कलयुग बताएगा, सरकार इस पर कोई घिसा-पिटा बयान जारी कर देगी और पुलिस कानून की किताब के मुताबिक इस पर कार्रवाई करेगी। मगर इससे एक गंभीर समस्या के निवारण का कोई भी सिरा हाथ नहीं आएगा। समस्या वहीं की वहीं रह जाएगी।

    भारत में इससे पहले भी आनलाइन गेमिंग से जुड़ी गंभीर घटनाएं हो चुकी है। 2019 में कर्नाटक में एक 21 वर्षीय युवक ने अपने पिता की सिर काटकर हत्या कर दी थी, क्योंकि उन्होंने उसे पब जी खेलने से रोका था। पिछले साल मध्यप्रदेश के छतरपुर में ऑनलाइन गेम में 40 हजार रुपए गंवाने के बाद 13 बरस के लड़के ने आत्महत्या कर ली थी। उसकी मां को जब जानकारी हुई कि आनलाइन गेम के लिए उसने पैसे खर्च किए हैं, तो उन्होंने उसे डांटा था, जिस पर उसने अपने ही प्राण ले लिए। इससे पहले सागर ज़िले में एक 12 साल के बच्चे ने उस वक्त आत्महत्या कर ली थी, जब उसके पिता ने अधिक गेम खेलने के कारण उससे मोबाइल फ़ोन छीन लिया था। मनोवैज्ञानिक इंटरनेट पर खेले जाने वाले खेलों के नुकसान को समझ रहे हैं और लगातार इस बारे में आगाह कर रहे हैं। दिल्ली हाईकोर्ट में इस पर एक याचिका भी दायर की गई थी, जिस पर दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को बच्चों को ऑनलाइन गेम की लत से बचाने के लिए एक राष्ट्रीय नीति बनाने के लिए कहा था।

    कोरोना में लॉकडाउन के दौरान बच्चों को पढ़ाई के लिए मोबाइल का इस्तेमाल करना पड़ा और इसमें वो खेल खेलने के भी आदी हो गए। इस वजह से उनमें अवसाद, चिड़चिड़ापन और गुस्सा भी बढ़ गया। मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक़ ये समस्या उन बच्चों में ज़्यादा देखी जा रही है, जिनके मां-बाप दोनों काम पर जाते हैं। एक शोध के मुताबिक, जो बच्चे बंदूक से हिंसा वाले वीडियो गेम देखते और उन्हें खेलते हैं, उनमें बंदूक को पकड़ने और उसका ट्रिगर दबाने की ज्यादा इच्छा तेज हो जाती है। एक शोधकर्ता ने 200 से ज्यादा बच्चों में से 50 प्रतिशत को अहिंसक वीडियो गेम और 50 प्रतिशत को बंदूक से हिंसा वाले वीडियो गेम खेलने पर किया गया था। इसके कुछ देर बाद ही देखा गया कि हिंसक गेम खेलने वाले 60प्रतिशत बच्चों ने तुरंत बंदूक को पकड़ लिया है। जबकि अहिंसक खेल खेलने वाले सिर्फ 44 प्रतिशत बच्चों ने बंदूक पकड़ी।

    इस तरह के कई शोध हो रहे हैं और आगे भी होते रहेंगे, लेकिन इनका कोई परिणाम तभी निकलेगा, जब इस पर सरकार गंभीरता से कोई नीति बनाएगी। चीन को सबक सिखाने के लिए भारत में पबजी पर प्रतिबंध तो लगाया गया लेकिन इसके तहत सि$र्फ मोबाइल वर्जन प्रतिबंधित था। रिपोर्टों के मुताबिक इसका डेस्कटॉप वर्जन उपलब्ध था। हालांकि मोबाइल पर पबजी वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क यानी वीपीएन का इस्तेमाल कर खेला जा सकता है। और जिन्हें इसकी लत है, वो किसी भी तरह इसे खेल ही लेता है।

    पबजी पर प्रतिबंध जब लगा तो कुछ ही समय में अक्षय कुमार ने फौजी नाम का खेल बाजार में लाने की तैयारी कर ली। इसे भारत में बने होने के कारण आत्मनिर्भर भारत से जोड़ा गया, इसमें जबरदस्ती देशभक्ति दिखाने की कोशिश की गई। राष्ट्रवाद और धर्म के नाम पर चल रहे इस उन्माद में ही जरूरी मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाया जा रहा है। पबजी हो या फौजी इसमें असली कमाई ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों की है और इसके जरिए एक पूरी पीढ़ी को मानसिक तौर पर गुलाम बनाया जा रहा है। आजादी का अमृतवर्ष मना रही सरकार को सोचना चाहिए कि जिन सवालों को हंसी में उड़ाया गया या उड़ाया जा रहा है, वो भावी पीढ़ियों के लिए कितने खतरनाक साबित हो रहे हैं।

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