• कर्नाटक की जीत से विपक्षी एकता की शुरुआत

    विपक्ष का छोड़िए आज भाजपा के, संघ के नेता यह कहते हैं कि उनका अस्तित्व खत्म हो गया है। सिर्फ मोदी ही मोदी है। ऐसा नहीं है कि ममता और अखिलेश को यह खबर नहीं होगी कि कर्नाटक की जीत के बाद भाजपा और संघ में सुकून का भाव आया।

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    - शकील अख्तर
    विपक्ष का छोड़िए आज भाजपा के, संघ के नेता यह कहते हैं कि उनका अस्तित्व खत्म हो गया है। सिर्फ मोदी ही मोदी है। ऐसा नहीं है कि ममता और अखिलेश को यह खबर नहीं होगी कि कर्नाटक की जीत के बाद भाजपा और संघ में सुकून का भाव आया। अपनी पार्टी का जीतते रहना सबको अच्छा लगता है। चाहे जीत से ज्यादा कुछ मिले या न मिले। मगर जब नेता का अहंकार इतना बढ़ जाए कि वह मैं ही सब कुछ कर रहा हूं। मुझसे पहले कुछ भी नहीं हुआ।


    ममता बनर्जी और अखिलेश यादव नहीं आए उन्हें माफ कर देना चाहिए। बाकी जो देश भर के विपक्षी नेता आए उनकी राजनीतिक समझ को सलाम करना चाहिए।
    ममता और अखिलेश अपने-अपने राज्यों को लेकर डरे हुए हैं। उन्हें लगता है कि बीजेपी से लड़ते हुए कांग्रेस वहां स्थापित हो जाएगी। कांग्रेस को उनके इस विचार से खुश होना चाहिए और उनका सम्मान बढ़ा देना चाहिए। दोनों राज्यों पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में कांग्रेस बहुत कमजोर है। नगण्य की स्थिति में। लेकिन अगर वहां के दो बड़े क्षेत्रीय नेता यह सोच रहे हैं कि भाजपा के कमजोर होते ही वहां कांग्रेस मजबूत हो जाएगी तो ऐसी अच्छी सोच वालों को कांग्रेस को दोस्ती के लिए और मौके देते रहना चाहिए। और नाराज करने से बचना चाहिए।


    बाकी यह दोनों को सोचना होगा कि क्या कांग्रेस के मजबूत होने से उनके लिए उतना ही कठिन समय आएगा जैसा अभी भाजपा के राज में है! यह फैसला ममता और अखिलेश को ही करना होगा कि क्या सत्तर साल कांग्रेस के रहने पर विपक्ष मिट गया और क्या तीसरी बार मोदी के आने के बाद विपक्ष रह पाएगा?
    विपक्ष का छोड़िए आज भाजपा के, संघ के नेता यह कहते हैं कि उनका अस्तित्व खत्म हो गया है। सिर्फ मोदी ही मोदी है। ऐसा नहीं है कि ममता और अखिलेश को यह खबर नहीं होगी कि कर्नाटक की जीत के बाद भाजपा और संघ में सुकून का भाव आया। अपनी पार्टी का जीतते रहना सबको अच्छा लगता है। चाहे जीत से ज्यादा कुछ मिले या न मिले। मगर जब नेता का अहंकार इतना बढ़ जाए कि वह मैं ही सब कुछ कर रहा हूं। मुझसे पहले कुछ भी नहीं हुआ। भाजपा के पहले प्रधानमंत्री और आज तक के पार्टी में सबसे प्रिय नेता रहे अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल और उनकी जीवन भर की उपलब्धियों को भी कुछ न समझे तो लोगों में दु:ख और रोष स्वाभाविक है।


    कांग्रेस के राज में भाजपा विपक्ष में रही मगर हर नेता और संघ के लोग भी कहते हैं कि उनके सम्मान में कोई कमी नहीं होती थी। आज प्रेम और सम्मान दोनों ही चीजें नहीं हैं। इसलिए कर्नाटक की हार से भाजपा और संघ में राहत की भावना आई कि उनकी पूछ कदर बढ़ेगी। कर्नाटक के चुनाव में संघ कहीं सक्रिय नहीं था।


    कम लोगों को जानकारी होगी कि आरएसएस में नंबर दो की कुर्सी संभालने वाले दत्तात्रेय होसबाले कर्नाटक के ही हैं। और भाजपा के दक्षिण अभियान के प्रमुख कर्ताधर्ता रहे हैं। वे सर कार्यवाह हैं और यही वह पोस्ट है जो संघ में एक्जिक्यूटिव पोस्ट कहलाती है। सर संघचालक मोहन भागवत भी पहले इसी पद पर रह चुके हैं। और यहीं से उनका प्रमोशन हुआ था। कर्नाटक चुनाव में कहा जा रहा है कि भाजपा के कार्यकर्ता के साथ संघ के लोग भी सक्रिय नहीं थे। इसका कारण वही है जो देश भर में बताया जा रहा है। मध्य प्रदेश में जैसे भाजपा के पहले मुख्यमंत्री रहे कैलाश जोशी के पुत्र दीपक जोशी ने और दूसरे उनसे भी ज्यादा वरिष्ठ नेताओं सत्यनारायण सत्तन, वाजपेयी जी के भांजे अनूप मिश्रा और कईयों ने कहा कि अब भाजपा पहले जैसी नहीं रह गई है। कार्यकर्ता का सम्मान नहीं है।


    याद रखिए कि भाजपा देश की एकमात्र ऐसी पार्टी थी जिसमें परिवार की भावना थी। संघ के लोग और भाजपा के कार्यकर्ता एवं नेता भी पारिवारिक संबंध बनाते थे। और एक दूसरे का बहुत सम्मान करते थे। मगर अब जब ऊपर से किसी को नहीं पूछा जा रहा है तो नीचे भी वही भावना आ रही है। हर पार्टी का अपना एक मूल स्वभाव होता है। भाजपा और संघ का सम्मान था। परस्पर सम्मान और सबके साथ भी सम्मान का भाव। मगर जब आडवानी, मुरली मनोहर जोशी और बहुत सारों को उपयोगी न रहने के आधार पर अलग थलग कर दिया गया तो इसका मैसेज नीचे तक पहुंचा। और सामान्य कार्यकर्ता से लेकर नेताओं तक ने भाजपा की कर्नाटक पर एक ही बात कही कि यह तो होना ही था।


    खुल कर नहीं कह पाएं मगर आपसी बातचीत में कहते हैं कि राजनीति में या सार्वजनिक जीवन में क्यों आए थे? सम्मान के लिए। और अब अगर वही नहीं मिल रहा है तो फिर पार्टी के लिए काम करने से क्या फायदा? भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं में यह भाव है कि मनमोहन सिंह या कांग्रेस के किसी भी प्रधानमंत्री के पास जाने से काम भी होता था और सम्मान तो पूरा। आज प्रधानमंत्री मोदी यह सोचते हैं कि उनके आने के बाद से देश का भाग्य बदल गया। उन्होंने कहा ही था कि जब मैं भाग्यशाली हूं तो किसी दूसरे को चुनने का क्या मतलब? बाकी दूसरे लोगों ने तो उन्हें भगवान का अवतार, देवता जाने क्या घोषित किया ही है। यह अवस्था भक्त तो बना सकती है। मगर कार्यकर्ता को प्रेरित नहीं कर सकती।


    बंगलुरू पहुंचे विपक्ष के नेताओं शरद पवार, नीतीश कुमार, तेजस्वी, महबूबा मुफ्ती, एम के स्टालिन, येचुरी, फारुख अब्दुल्लाह, हेमन्त सोरेन, जयंत चौधरी और बहुत सारे लोगों ने इसी बात को समझा कि अब वह आखिरी जोर लगा देने का मौका आ गया है। टर्निंग पाइंट। कांग्रेस प्रतिस्पर्धी है, रहेगी। मगर बाकी दलों को खत्म नहीं करेगी। लोकतंत्र, संवैधानिक संस्थाएं, देश के सभी राजनीतिक दलों का सम्मान बचा रहेगा। चौबीस घंटे जेल का डर नहीं रहेगा। केन्द्रीय जांच एजेंसियां चाहे जब चाहे जिसके घर नहीं पहुंच जाएंगी। अभी जिस तरह सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर दिल्ली में अध्यादेश लाकर न्यायपालिका को भी खुला चेलेंज दिया गया है उसके बाद विपक्ष को कुछ कहने समझाने को नहीं बचता है। अब तो उन्हें खुद समझ में आ जाना चाहिए नहीं तो उन्हें मिट जाने से कोई नहीं रोक सकता। केजरीवाल के दो मंत्री मनीष सिसोदिया और सत्येन्द्र जैन जेल में हैं। खुद केजरीवाल कब तक बाहर हैं कोई नहीं जानता। अब अगर ऐसे में भी वे भाजपा और कांग्रेस को बराबर शत्रु समझेंगे और कांग्रेस से मदद नहीं मांगेंगे तो उनके लिए अपनी पार्टी को बनाए और बचाए रखना बहुत मुश्किल हो जाएगा। केजरीवाल सहित ममता और अखिलेश को समझना चाहिए कि कांग्रेस बड़ी पार्टी है। इसे खत्म करना संभव नहीं है और फिर उसके पास एक ऐसा नेता है जो डरता ही नहीं है। यह बहुत बड़ी बात है।


    राहुल अकेले देश में एक आश्वासन हैं कि वे अपने होते प्रधानमंत्री मोदी को चैन से नहीं बैठने देंगे। मोदी सहित पूरी सरकार, भाजपा, मीडिया और कभी-कभी विपक्ष में से भी केजरीवाल, ममता अखिलेश भी राहुल को निशाना बनाते हैं। मगर राहुल कभी विचलित नहीं होते। है तो यह पुरानी भारतीय परंपरा जहां एक व्यक्ति कई बार पूरी सत्ता से लड़ गया। महात्मा गांधी, रानी लक्ष्मीबाई और विरथ रघुवीरा!


    राहुल विपक्ष के लिए चैलेंज नहीं हैं। ऐसेट (शक्ति, संपदा) हैं। आज प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ कोई नहीं लड़ सकता। राहुल 9 साल से लगातार लड़ रहे हैं। खुद कांग्रेस में उनका विरोध हुआ। जिसकी वजह से 2019 में उन्हें अध्यक्ष पद छोड़ना पड़ा। उसके बाद भी खुलेआम पार्टी में जी-23 बना। सोनिया को पत्र लिखा गया। रोज मीटिंगें, सम्मेलन हुए। मगर वह बंदा नहीं डरा। पार्टी में ही गैर गांधी-नेहरू परिवार का अध्यक्ष बना दिया। आज वे खरगे ही सबसे सफल हैं। और सब देख रहे हैं कि राहुल उनके साथ मिलकर किस तरह काम कर रहे हैं। और कर्नाटक निकाल लिया।


    अब नीतीश कुमार और तेजस्वी बंगलुरु की सफलता को आगे ले जाने के लिए उन नेताओं से फिर मिल रहे हैं जो बंगलुरु नहीं पहुंचे। केजरीवाल से रविवार को मुलाकात हो गई। केजरीवाल को इस समय इस सहारे की जरूरत भी थी। बाकी आगे उन्हें खुद सोचना चाहिए कि 2024 तक मोदी से लड़ना है या कांग्रेस से!
    (लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)

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