- तनवीर जाफरी
गृहमंत्री अमित शाह ने ममता बनर्जी की इस आपत्ति का भी राजनैतिक लाभ उठाते हुए गत दिनों पश्चिमी बंगाल में एक सभा में आरोप लगाया कि 'बंगाल के अंदर माहौल ऐसा कर दिया गया है कि 'जय श्रीराम' बोलना गुनाह है। उन्होंने पूछा कि 'ममता दीदी, बंगाल में जय श्रीराम नहीं बोला जाएगा, तो क्या पाकिस्तान में बोला जाएगा?' गृह मंत्री का यह बयान बिना सोचे समझे भावनाओं में बह जाने वाले मतदाताओं पर ममता के 'राम विरोधी' होने का वह प्रभाव तो डाल सकता है जो अमित शाह चाहते भी हैं।
सृष्टि के नायक, सर्वव्यापी भगवान श्रीरामचन्द्र को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया है। पूरा विश्व भगवान श्रीरामचन्द्र जी को आस्था व सम्मान की नजरों से देखता है। विश्व के अलग-अलग धर्मों व विश्वासों से संबंध रखने वाले अनेकानेक लेखकों व कवियों ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का गुणगान किया है। विश्व के अनेक देशों में भगवान श्रीराम के मंदिर देखे जा सकते हैं। परन्तु दुर्भाग्यवश भारत में ही श्रीरामचन्द्र जी के नाम का इस्तेमाल आस्था के लिए कम परन्तु राजनीति के लिए अधिक किया जाने लगा है। अन्य धर्मों के लोगों की भगवान राम के प्रति आस्था व सम्मान की तो बात ही क्या करनी स्वयं हिन्दू धर्म में ही श्रीराम पर एकाधिकार जताने की होड़ सी मची हुई। ख़ास तौर पर देश के किसी भी राज्य में जब भी चुनाव करीब होते हैं उस दौरान राम के नाम का इस्तेमाल पूरे जोर-शोर से किया जाता है।
सर्वविदित है कि जब से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संरक्षण में विश्व हिन्दू परिषद ने चार दशक पूर्व अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का आंदोलन चलाया तब ही से उसके राजनैतिक संगठन भारतीय जनता पार्टी ने भगवान राम के नाम पर चुनावी राजनीति करनी शुरू कर दी। बावजूद इसके कि अब सर्वोच्च न्यायालय ने मंदिर निर्माण के रास्ते प्रशस्त कर दिए हैं और अब भगवान राम के नाम पर की जाने वाली राजनीति बंद हो जानी चाहिए परन्तु ठीक इसके विपरीत अभी भी राम नाम का सहारा लेकर चुनावों में बढ़त हासिल करने की कोशिश बदस्तूर जारी है। अंतर केवल इतना है कि अब राम के नाम पर राजनीति राम मंदिर निर्माण संबंधी नारों से नहीं बल्कि भगवान राम के नाम के 'जय कारों' को लेकर की जाने लगी है।
शीघ्र ही आम विधान सभा चुनावों का सामना करने जा रहा राज्य पश्चिम बंगाल आजकल श्रीराम के उत्तेजक नारों का सबसे बड़ा केंद्र बन चुका है। राज्य में भारतीय जनता पार्टी की ऐसी कोई भी रैली या जनसभा नहीं हो रही जहां उत्तेजना फैलाने के अंदाज से 'जय श्री राम' के नारे न लगाये जा रहे हों। गत माह कोलकाता में भारत सरकार द्वारा नेताजी सुभाषचंद्र बोस की 125 जयंती के मौके पर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था। इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व मुख्यमंत्री ममता बनर्जी दोनों ही मौजूद थे। यहां भी भाजपा समर्थकों द्वारा 'जय श्रीराम' का नारा लगाया गया।
ममता बनर्जी इस से इतना नाराज हो गईं कि उन्होंने अपना भाषण ही नहीं दिया और प्रधानमंत्री की मौजूदगी में अपनी आपत्ति व नाराजगी सार्वजनिक रूप से जताई। इस घटना के विषय में जब बी बी सी ने तृणमूल कांग्रेस की लोकसभा सदस्या महुआ मोइत्रा से प्रश्न किया कि-'क्या ममता बनर्जी का 'जय श्रीराम' के नारे को लेकर इस तरह अपनी नाराजगी जताना ठीक था? इस पर उनका जवाब था कि- 'उन्होंने जो किया वो बिल्कुल सही था। ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री हैं। और जिस कार्यक्रम में वो शामिल हो रही थीं, वह केंद्र सरकार का कार्यक्रम था। केंद्र सरकार चाहती है तो संविधान में संशोधन करे, उनके पास बहुमत है।
'सेक्युलर' शब्द को संविधान से हटा दे। हिंदू राष्ट्र बना दे, फिर कोई दिक़्कत नहीं होगी। जब तक हमारे संविधान में सेक्युलर शब्द है, आप किसी सरकारी कार्यक्रम में धार्मिक नारे नहीं लगा सकते। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि इससे 'हमें कोई दिक़्कत नहीं है। लेकिन हम क्या बोलेंगे और कैसे अपने धर्म का पालन करेंगे, ये हमारा निजी मामला है। जय श्रीराम, जय मां काली, जय मां दुर्गा बोलने में किसी को कोई दिक़्कत नहीं है। हम मां दुर्गा की पूजा करते हैं, मां काली की पूजा करते हैं, सिंह की सवारी करते हैं। कोई हमें ये नहीं बता सकता कि हम कैसे हिंदू धर्म को मानें। जिनको जय श्रीराम बोलना है, उनको बोलने दें। लेकिन आप आज जय श्रीराम क्यों कहते हैं? आप ख़ुद को हिंदू स्थापित करने के लिए नहीं कहते हैं। आप ये इसलिए बोलते हो क्योंकि देश के अल्पसंख्यक घबरा कर, डर कर दुम पीछे करके छिप जाएंगे. हमें दिक़्कत इस बात से है।'
यदि हम भारतीय समाज में सदियों से चले आ रहे भगवान श्रीराम के नाम को समाहित करते हुए संबोधनों पर नजर डालें तो हमें इनके उच्चारण में सद्भाव, विनम्रता, प्रेम व शिष्टाचार साफ़ तौर पर झलकता है। भारतीय समाज में एक दूसरे को देखकर 'राम-राम' बोले जाने की पुरानी परंपरा है। इसके अतिरिक्त 'सीता राम' और 'जय सिया राम' भी बोला जाता है। और यदि सामूहिक रूप से जयकारा भी लगाया जाता है तो उसमें भी 'श्रीरामचंद्र की' -'जय' का उद्घोष किया जाता है। उपरोक्त किसी भी संबोधन में किसी तरह के उकसावे या भड़काने अथवा आक्रामकता का नहीं बल्कि विनम्रता का एहसास होता है। परन्तु निश्चित रूप से राम मंदिर आंदोलन के समय से आंदोलनकारियों द्वारा सुनियोजित तरीके से प्रचारित किये गए 'जय श्रीराम' के नारे तथा इसके बोलने के अंदाज में वही आक्रामकता दिखाई देती है जिसका जिक्र महुआ मोइत्रा ने अपने साक्षात्कार में किया है।
गृहमंत्री अमित शाह ने ममता बनर्जी की इस आपत्ति का भी राजनैतिक लाभ उठाते हुए गत दिनों पश्चिमी बंगाल में एक सभा में आरोप लगाया कि 'बंगाल के अंदर माहौल ऐसा कर दिया गया है कि 'जय श्रीराम' बोलना गुनाह है। उन्होंने पूछा कि 'ममता दीदी, बंगाल में जय श्रीराम नहीं बोला जाएगा, तो क्या पाकिस्तान में बोला जाएगा?' गृह मंत्री का यह बयान बिना सोचे समझे भावनाओं में बह जाने वाले मतदाताओं पर ममता के 'राम विरोधी' होने का वह प्रभाव तो डाल सकता है जो अमित शाह चाहते भी हैं परन्तु उनका यह बयान दरअसल भगवान राम की महिमा, उनके सर्वव्यापी व सृष्टि के नायक होने पर ही सवाल खड़े करता है।
जब भगवान राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, सर्वव्यापी हैं, कण कण में समाए हुए हैं फिर आिखर उस पाकिस्तान में उनका जयकारा क्यों नहीं लग सकता जो कभी भारत का ही हिस्सा था और आज भी वहां भगवान राम सहित अनेक देवी-देवताओं के सैकड़ों मंदिर मौजूद हैं जहां आरती पूजा के बाद देवी-देवताओं के जयकारे लगाए जाते हैं। अपने चुनावी फायदे के लिए भगवान राम को किसी एक राजनैतिक दल की संपत्ति समझना अथवा उन्हें अयोध्या या पश्चिमी बंगाल तक सीमित रखना बिल्कुल ठीक नहीं है। ऐसा करना उनकी महिमा को कम करने तथा असीम को सीमित करने का प्रयास है। भगवान श्रीराम के नाम का प्रेम व सद्भावनापूर्ण जयकारा केवल अयोध्या, उत्तर प्रदेश या बंगाल में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में लग सकता है।