• कोई है जो बापू की तरह यूसीसी को भी समझाए?

    महाभारत के जिस पात्र को लेकर किंवदंती है कि वह आज भी जीवित है और नदी किनारे घूमते हुए लहूलुहान अवस्था में दिखाई भी दे जाते हैं

    Share:

    facebook
    twitter
    google plus

    - वर्षा भम्भाणी मिर्जा़

    बेशक, एक देश-एक कानून से किसे इंकार होगा लेकिन जब मुद्दे पर गंभीरता से चर्चा की बजाय इसे किसी बैल के सामने लाल कपड़े को हिलाने की तरह किया जाएगा तब कानून तो बन जाएगा लेकिन नागरिकों में उसके लिए अपनाने का भाव कैसे आएगा? क्यों सरकार यूनिफार्म सिविल कोड की कवायद को इस तरह आगे बढ़ाना चाहती है?

    महाभारत के जिस पात्र को लेकर किंवदंती है कि वह आज भी जीवित है और नदी किनारे घूमते हुए लहूलुहान अवस्था में दिखाई भी दे जाते हैं। वह हैं-द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा, लेकिन क्या वाकई केवल अश्वत्थामा के बारे में ऐसा कहा जा सकता है? धृतराष्ट्र के लिए नहीं? पुत्र मोह में समूचे युग को अंधे युग में बदल देने वाले धृतराष्ट्र तो जैसे कभी काल-कवलित हुए ही नहीं। तब राजे-रजवाड़ों में ज़िंदा रहे तो अब राजनीतिक पार्टियों में जब-तब प्रकट हो जाते हैं। महाराष्ट्र के कद्दावर नेता बाल ठाकरे के बेहद करीब थे उनके भतीजे राज ठाकरे। लेकिन शिवसेना की कमान मिली उनके पुत्र उद्धव ठाकरे को। अजित पवार भी चाचा शरद पवार के बहुत प्रिय और खास रहे लेकिन एक घड़ी ऐसी आई कि पार्टी की दावेदारी मिली बेटी सुप्रिया सुले को। सुप्रिया सुलझी हुई नेता हैं लेकिन महाराष्ट्र में उनकी पकड़ कोई खास नहीं है।

    अजित पवार महाराष्ट्र के बाहर पहचान नहीं रखते लेकिन महाराष्ट्र में उनकी साख रही है। अब जबकि वे राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) को तोड़कर जा चुके हैं, साख तब भी बरक़रार रहेगी? इससे पहले उद्धव की शिवसेना से टूटकर एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बन चुके हैं और अब अजित पवार उप-मुख्यमंत्री। भारतीय जनता पार्टी ने महाविकास अघाड़ी के दोनों ही अंगों को छिन्न -भिन्न कर अपनी सत्ता की छतरी में ले लिया है। राजनीति बुरी होती है, सियासत किसी की नहीं होती, सत्ता का नशा ख़राब होता है, आम जन ऐसी ही सोच रखता है राजनीति के बारे में; और 2019 से चला महाराष्ट्र का घटनाक्रम उसकी इसी सोच को और पुख्ता करने के साथ बरसों तक याद रखा जाने वाला साबित होगा। कौन भूल सकता है कि चुनाव के तुरंत बाद सुबह-सुबह देवेंद्र फडणवीस के साथ मिलकर अजित पवार शपथ ले चुके थे। फिर शरद पवार बड़ी मुश्किल से उन्हें समझा कर लाए थे। जनता इसलिए भी हैरत में है कि अभी तक तो वह शिवसेना के गद्दार विधायकों को ही सबक सिखाने वाली थी कि अब एनसीपी में भी दो फाड़ हो गई है। बड़ी दुविधा है कि कौन कम गद्दार है?

    असल में प्रधानमंत्री ने अपनी अमेरिका और मिस्र दौरे के बाद भोपाल में अपनी पहली सभा में जिन दो बातों का ज़िक्र किया था उनमें विपक्षी एकता पर तंज़ के साथ महाराष्ट्र के एनसीपी विधायकों को चेतावनी; और दूसरा था यूनिफार्म सिविल कोड यानी यूसीसी। महाराष्ट्र में कथित भ्रष्टाचार के इलाज में तो उनकी पार्टी ने इतनी तेजी दिखाई कि नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी को तोड़कर ही रख दिया। अब टूटा हुआ हिस्सा सरकार में है लेकिन यूसीसी अभी शेष है। प्रधानमंत्री ने कहा कि एक परिवार में दो कानून नहीं हो सकते। प्रधानमंत्री के ऐसा कहते ही उंघती हुई मशीनरी में जैसे ताज़गी आ गई। टीवी बहसबाज़ परेशान थे कि जलता हुआ मणिपुर उनका ध्यान नहीं खींचता, महिला पहलवानों पर बात करने से सरकार और ब्रजभूषण शरण सिंह की किरकिरी होती है, बढ़ती आर्थिक खाई पर बात कर नहीं सकते। बारिश में उधड़े भारत के शहर तो नियति है, कोई भी नया नरेटिव सेट हो नहीं रहा था। शुक्रिया प्रधानमंत्री जी का जिन्होंने एक मुद्दा दे दिया। ये और बात है कि सरकार खुद एक लॉ कमीशन का गठन 2018 में कर चुकी है जिसकी राय थी कि फिलहाल समान नागरिक संहिता न वांछनीय है और न ही संभव। शायद सामने दिख रहे चुनाव की मजबूरी है कि एक बार फिर इस मुद्दे को धूप दिखाने की कोशिश की गई है।

    बेशक, एक देश-एक कानून से किसे इंकार होगा लेकिन जब मुद्दे पर गंभीरता से चर्चा की बजाय इसे किसी बैल के सामने लाल कपड़े को हिलाने की तरह किया जाएगा तब कानून तो बन जाएगा लेकिन नागरिकों में उसके लिए अपनाने का भाव कैसे आएगा? क्यों सरकार यूनिफार्म सिविल कोड की कवायद को इस तरह आगे बढ़ाना चाहती है? बेशक शादी, तलाक, विरासत में हक़ को लेकर कई समुदाय अपनी महिलाओं के साथ अन्याय करते आए हैं। इसमें सुधार तो स्त्री सशक्तिकरण की दिशा में बहुत बड़े क़दम होंगे लेकिन क्या कोई बहस इस मकसद से चलाई भी जा रही है।

    गोवा एक उदाहरण है जहां आज़ादी के बाद से यूनिफार्म सिविल कोड लागू है। ऐसा वहां पुर्तगाली क़ानून हटाने के बाद किया गया था। कुछ अजीब प्रावधान यहां भी हैं कि अगर 25 साल की उम्र तक संतान नहीं हुई तब पति दोबारा शादी कर सकता है, तीस साल तक लड़का पैदा नहीं हुआ तब भी उस स्त्री का पति दूसरी शादी कर सकता है। अब कहा ये जा रहा है कि आदिवासियों को इससे अलग रखा जाएगा क्योंकि उत्तर-पूर्व के राज्यों ने एतराज़ जता दिया है। पंजाब के लिए भी पुनर्विचार की बात स्वीकारी गई है। जब इतने विरोधाभास जुड़ रहे हैं तो क्यों नहीं पहले विशेषज्ञ एक मसौदा बनाएं फिर बहस हो। अगर समान क़ानून भी यूं ही तुष्टिकरण की भेंट चढ़ेंगे तब 'पार्टी विथ द डिफरेन्स' कही जाने वाली भाजपा किस तरह खुद को कांग्रेस से अलग करेगी जहां इंदौर की शाहबानो को मुआवज़ा दिलवाने की बजाय कानून में संशोधन कर दिया गया था?

    दरअसल भाजपा इस मुद्दे को उठाकर आमजन में प्रचलित इस धारणा को धार देना चाहती है कि मुसलमानों में बड़ा हिस्सा बेहद दकियानूसी है और धर्मग्रंथों में कही बात को लकीर के फ़कीर की तरह मानता है। लोकतंत्र में बहुदलीय पार्टियों के साथ दिक्कत यह है कि सत्ता में आने की बाद भी वे पांचों साल विपक्ष में रहती हैं और पांचवें साल तो और भी ज़्यादा। देश हमेशा चुनावी मोड में ही नज़र आता है। अपने वोट बैंक को साधे रखने के लिए सरकारें देश की तरक्की को किस तरह प्रभावित करती हैं यह शोध का विषय हो सकता है। अभी तो यह 'एक के साथ एक मुफ्त' की तज़र् पर आता है।

    मुसलमानों की दकियानूसी वाली बात पर लौटते हैं। रास्ता फिर महात्मा गांधी की ओर देखने पर मिलता है क्योंकि बापू ही वे शख़्स रहे जिन्होंने गुलामी से आज़ाद हुए देश की देह पर दंगों के ज़ख्म देखे थे और लगातार लिख-बोल रहे थे। वे कूद गए थे उस दावानल में, जले ज़ख्मों पर मरहम लगाने। गांधी कहते हैं- 'सभी धर्म न्यूनाधिक सच्चे हैं। सबकी उत्पत्ति एक ही ईश्वर से है। फिर भी सारे धर्म अपूर्ण हैं क्योंकि वे हमें मनुष्य द्वारा प्राप्त हुए हैं और मनुष्य तो कभी पूर्ण नहीं होता।' इस हिसाब से इस्लाम भी एक अपूर्ण धर्म है।

    लगभग यही बात उन्होंने गीता प्रेस के संस्थापकों से भी कही थी जो मतभेद का कारण बनी। बापू सनातन धर्म के पैरोकार थे और नई सोच के वातायन हमेशा खुले रखते थे। गीता प्रेस ने गांधी की गीता पर आधारित अनासक्ति योग को छापने से मना कर दिया था। यह गीता के श्लोकों का सरल अनुवाद था जिसके मूल में था कि कर्म करते हुए निष्प्रभ या अनासक्त अवस्था में चला जाना ही 'अनासक्ति योग' है। बापू गीता को इतिहास से जोड़कर नहीं देखते थे और गीता प्रेस की राय इससे ठीक उलट थी।

    कालांतर में एक बार फिर गांधी फिर यही सुझाव देते हुए नज़र आते हैं कि इस्लाम की नैतिक शिक्षाओं को समझने के लिए ज़रूरी है कि पहले इस्लाम और इतिहास को अलग-अलग देखा जाए। साथ ही पैगम्बर और ख़लीफ़ाओं के जीवन से जुड़ी ग़लत धारणाओं से मुक्त हो उनके नैतिक अतीत को तलाशा जाए। महात्मा गांधी कहते हैं-'मैं मनुष्य हूं और ईश्वर से डरता हूं। ऐसी किन्हीं भी परिस्थितियों में मुझे ऐसे तरीकों (पत्थर मार कर अपराधी की जान लेने या आंख के बदले आंख लेना) की नैतिकता पर शंका करनी चाहिए। नबी के जीवन काल में और उस युग में चाहे कुछ भी प्रचलित रहा हो कुरान में इसका उल्लेख मात्र होने से ऐसे विशेष दंड का समर्थन नहीं किया जा सकता। हर धर्म के हर नियम को पहले विवेक और व्यापक न्याय की अचूक कसौटी पर कसना होगा तभी उस पर संसार की स्वीकृति मांगी जा सकेगी।' बापू कितनी सरलता से लकीर के फ़कीर होने के खतरों को समझा जाते हैं। एक जगह वे यह भी कहते हैं कि अगर हज़रत उमर खुद आज अपनी क़ब्र से उठकर आ जाएं तो इस्लाम के कथित अनुयायियों के ऐसे बहुत से कामों को वे निषिद्ध और अस्वीकार्य बताएंगे जो उनके भद्दे अनुकरण के रूप में किये जाते हैं। कैसी पितातुल्य समझाइश है ये और बापू के ये आख्यान हमारे पास लगभग सौ सालों से मौजूद हैं फिर भी आज दूर-दूर तक कोई ऐसा नहीं है जो सलीके से बात कर सके, सबको साथ जोड़कर।

    इस अमृतकाल में देश को यूं खदबदाते हुए रखना किस समझदारी के दायरे में आता है। इन मुद्दों को सिलसिलेवार सम्बोधित करने की ज़रूरत पर कौन ज़ोर देता हुआ दिखाई देता है? छेड़ने और धमकी की भाषा तो बदलाव और प्रगति की भाषा नहीं होती। इससे समाज में डर पैदा होता है। दो बार के शासन के बाद खुद पर इतना भरोसा होना चाहिए कि जनता ख़ुद आपके लिए रज़ामंद हो। रिपोर्ट कार्ड को ख़ुद गवाही देनी चाहिए। जनता को महसूस होना चाहिए कि उसके जीवन में सकारात्मक बदलाव आया है। नया क़ानून जनता की भलाई के लिए होगा और उसकी आवश्यकता को महसूस किया जा रहा है, ऐसा भी बताना चाहिए। एक परिवार में दो कानून मोहब्बत की भाषा नहीं है, परिवार को उद्वेलित करने की भाषा है जबकि हम सभी यह मानते हैं कि उनके पास जनता को अपनी भाषा से वश में करने का जबरदस्त हुनर है। मिर्जा़ ग़ालिब का एक शेर है-

    इस सादगी पर कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा,
    लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं।।
    (लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं)

    Share:

    facebook
    twitter
    google plus

बड़ी ख़बरें

अपनी राय दें