- डॉ. हनुमन्त यादव
जब बाजार में वस्तुओं की मांग की तुलना में मुद्रा की पूर्ति अधिक हो जाती है तो वह मुद्रा स्फीति कहलाती और मुद्रा की मांग की तुलना में पूर्ति कम होने को मुद्रा संकुचन कहा जाता है। आर्थिक नीतियों में राजकोषीय नीति और मौद्रिक नीति सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती हैं क्योंकि ये सभी प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं के मूल्यों को संचालित एवं नियंत्रित करती है। भारत में राजकोषीय नीति वित्त मंत्रालय द्वारा तैयार की जाती है जबकि जबकि मौद्रिक नीति को भारतीय रिजर्व बैंक तैयार करता है।
वर्ष 2014-15 में वस्तुओं एवं सेवाओं की खुदरा कीमतों में औसतन 5.9 प्रतिशत वृद्धि हुई थी। इसके बाद हर साल कीमतों में वृद्धि दर में कमी आती गई और वर्ष 2018-19 में गिरकर 3.4 प्रतिशत पर आ गई किंतु वर्ष 2019-20 में खुदरा कीमतों में वृद्धि दर बढ़कर 4.8 प्रतिशत हो गई। सरल शब्दों में कहा जा सकता है कि वर्ष 2014 से 2018 की पांच साल की अवधि में वस्तुओं की थोक एवं खुदरा कीमतें की दोनों ही वृद्धि दर गिरावट की ओर अग्रसर थीं, किंतु वर्ष 2019 से इनमें बढ़ने की प्रवृत्ति दिखाई देने लगी। कोविड-19 महामारी के देशव्यापी संक्रमण को रोकने के लिए सरकार द्वारा लॉक डाउन घोषित कर कड़ाई से पालन के कारण उत्पादन में गिरावट के कारण अप्रैल से दिसंबर 2020 की 9 माह की अवधि में खुदरा कीमतों में वृद्धि दर औसतन 6.6 प्रतिशत रही। इस प्रकार खुदरा कीमतों में वृद्धि दर 6 वर्ष पूर्व की स्थिति में पहुंच गई है। संतोष की बात है कि जनवरी से मार्च 2021 की अवधि में खुदरा कीमतों में वृद्धि दर घटकर 5.2 प्रतिशत रहने की संभावना है।
खुदरा कीमतों में वृद्धि दर की गणना के लिए शिमला स्थित लेबर ब्यूरो द्वारा उपभोक्ता मूल्य सूचकांक अर्थात सीपीआई इंडेक्स तैयार किया जाता है। यह एक भारित सूचकांक होता है, जिसमें दैनिक उपयोग में आनेवाले खाद्यान्न, अनाज, सब्जी फल, खाद्य तेल, प्रसाधन सामग्री, विभिन्न प्रकार की सेवाओं के खुदरा मूल्य सूचकांक बनाया जाता है और उसके बाद उपभोक्ता के लिए उन वस्तुओं के महत्व के अनुसार उनको भार दिया जाता है, उसके बाद उपभोक्ता मूल्य सूचकांक तैयार किया जाता है। वर्ष 2020 में वस्तुओं की खुदरा कीमतों में हुई 6.6 प्रतिशत उच्च वृद्धि दर के लिए कोविड-19 महामारी का अभिशाप जिम्मेदार रहा। इस उच्च दर में खाद्य पदार्थों की कीमतों में हुई लगभग 10 प्रतिशत उच्च वृद्धि दर का योगदान रहा। खाद्य पदार्थों में सब्जी की कीमतों की वृद्धि दर अति उच्च 11.0 प्रतिशत रही। सोने और चांदी की कीमतों में आने वाले उतार-चढ़ाव का भी उच्च वृद्धि दर में योगदान रहा। वर्ष 2020 में विविध सेवाओं की वृद्धि दर 9.4 प्रतिशत रही।
दूसरा महत्वपूर्ण सूचकांक थोक मूल्य सूचकांक होता है जो एक देश में उपभोग की जानेवाली वस्तुओं की थोक कीमतों पर आधारित होता है। खुदरा मूल्य सूचकांक के समान यह भी भारित सूचकांक है। थोक कीमतों में वृद्धि दर को अर्थशास्त्र में मुद्रा स्फीति दर नामकरण किया गया है। दरअसल अर्थशास्त्री मुद्रा स्फीति को एक मौद्रिक घटनाक्रम मानते हैं। जब बाजार में वस्तुओं की मांग की तुलना में मुद्रा की पूर्ति अधिक हो जाती है तो वह मुद्रा स्फीति कहलाती और मुद्रा की मांग की तुलना में पूर्ति कम होने को मुद्रा संकुचन कहा जाता है। आर्थिक नीतियों में राजकोषीय नीति और मौद्रिक नीति सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती हैं क्योंकि ये सभी प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं के मूल्यों को संचालित एवं नियंत्रित करती है। भारत में राजकोषीय नीति वित्त मंत्रालय द्वारा तैयार की जाती है जबकि जबकि मौद्रिक नीति को भारतीय रिजर्व बैंक तैयार करता है। मौद्रिक नीति में मुद्रा एवं साख की आपूर्ति दोनों शामिल होते हैं।
वैश्विक स्तर पर कोविड-19 के फैलने तथा अमेरिका व यूरोप के विकसित अर्थव्यवस्था वाले देशों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुई कच्चे खनिज तेल की कीमतों में गिरावट के कारण आर्थिक सुस्ती के कारण मुद्रास्फीति का स्वरूप कमजोर रहा। किंतु भारत में ग्रामीण एवं नगरीय दोनों ही क्षेत्रों में मूल्य वृद्धि दर उच्च रही। वित्त मंत्रालय के वर्ष 2019-20 के आर्थिक सर्वेक्षण प्रकाशन में एक नया शब्द थाली का अर्थशास्त्र गढ़ा गया था। यदि सामान्य शाकाहारी परिवार और मांसाहारी में घर पर ही शाकाहारी भोजन बनाया जाय तो उसकी गणना की गई। उस समय ग्रामीण क्षेत्र में शाकाहारी भोजन थाली की कीमत 21.50 रुपए और मांसाहारी भोजन थाली कीमत 29.50 रुपए तथा नगरीय क्षेत्र में शाकाहारी भोजन थाली की कीमत 23.50 रुपए और मांसाहारी भोजन थाली की कीमत 31.00 रुपए आंकी गई थी। कोविड-19 ने भोजन थाली लगभग 25 प्रतिशत महंगी कर दिया। कोविड-19 के कारण एक ओर तो एक चौथाई परिवारों ने आजीविका खोई और लगभग 50 प्रतिशत परिवारों की आमदनी यथावत रही किंतु उनका भोजन महंगा हो गया।
भारत में वर्ष 2020 के कोविड-19 काल में राज्यों में महंगाई वृद्धि में एक समान नहीं थी। पूर्वोत्तर के राज्यों में महंगाई अर्थात वस्तुओं और सेवाओं की खुदरा कीमतों में वृद्धिदर 9 से 11 प्रतिशत उच्च रही वहीं पर दिल्ली, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, कर्नाटक और गुजरात में वृद्धि दर 3 से 5 प्रतिशत रही जो भारत के राज्यों में निम्न रही। बिहार, उत्तराखंड, ओडिशा, आंध्रप्रदेश और पश्चिम बंगाल में 7 से 9 प्रतिशत रही। लगभग सभी राज्यों में ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में नगरीय क्षेत्रों में महंगाई में वृद्धि 10 से 15 प्रतिशत अधिक रही। चूंकि कोरोना काल में उपभोक्ता वस्तुओं की महंगाई में खाद्य पदार्थों की कीमतों में उल्लेखनीय वृद्धि का योगदान रहा है, इसलिए सरकार द्वारा कीमतों में स्थिरता लाने के लिए अनेक कदम उठाए गए, जैसे कि प्याज के निर्यात पर रोक, प्याज की जमाखोरी पर रोक और दाल के आयात पर लगे प्रतिबंधों पर ढिलाई, आदि।
अर्थशास्त्रियों का मानना है कि कीमतों मे वृद्धि को रोकने के लिए अल्पावधि उपायों के अलावा सरकार को मध्यम से दीर्घावधि उपायों में पूंजी निवेश करने की आवश्यकता है, जैसे कि विकेन्द्रीकृत शीत भंडारण की सुविधाओं के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के भंडारणों को उत्पादन केन्द्रों पर उपलब्ध कराना, किसानों को उर्वरकों के विवेकशील इस्तेमाल हेतु शिक्षित करना, समय पर फसलों की सिंचाई करना और पोस्ट-हार्वेस्ट तकनीक आदि ग्रीन्स पोर्टल की हानि को रोकने के लिए जरूरी है।
प्याज के बम्फर स्टॉक नीति की समीक्षा की जानी चाहिए। नुकसान को कम करने के लिए उपजों को समय पर बाजार में भेजना सुनिश्चित करने के लिए कुशल प्रबंधन प्रणाली विकसित करना जरूरी है। ये उपाय सामान्य काल में तो जरूरी हैं ही किंतु कोविड-19 ने इन उपायों का महत्व बढ़ा दिया है। सरकार ने इन उपायों के क्रियान्वयन की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी है। चूंकि आर्थिक विकास के लिए 3 प्रतिशत तक की मुद्रा स्फीति को जरूरी माना जाता है, इस तथ्य को देखते हुए कहा जा सकता है कि वर्ष 2021-22 में मुद्रा स्फीति नियंत्रित रहेगी। आम उपभोक्ता के हित में खुदरा महंगाई पर नियंत्रण जरूरी है, इस पर भी नियंत्रण की पूरी संभावना है।