- डॉ. हनुमन्त यादव
अप्रैल-मई 2021 अवधि में लॉक डाउन के कारण उत्पादन और बिक्री दोनों ही में गिरावट रही। सरकार द्वारा किए जाने वाले प्रयासों से कारपोरेट सेक्टर में भी जुलाई-2021 से सुधार की अपेक्षा की जा रही है। भारत सरकार देश में व्यापार अनुकूल वातावरण तैयार करने के लिए प्रतिबद्ध है, जिससे कि आवश्यक क्रियाकलापों और विनिमार्ण के क्षेत्रों में देश को वैश्विक केन्द्र बनाया जा सके।
कोविड-19 महामारी के कारण भारतीय औद्योगिक अर्थव्यवस्था को 2020 और 2021 के दो वर्षों में जिस संकट का सामना करना पड़ा है, उसे इस सदी का भयंकर संकट कहा जा सकता है। हर देश चाहता है कि उसे ऐसा संकट दुबारा देखना न पड़े । भारत में दो साल के कोरोना की तीन लहरों के संकट में अरबों लोगों की जीविका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। दोनों ही वर्षों में उद्योग क्षेत्र ने ही इस संकट का भार सब से अधिक झेला है । लॉकडाउन की अवधि में औद्योगिक उत्पादन और रोजगार में सबसे अधिक गिरावट देखी गई है। अभी कोरोना की दो लहर पूरी होने जा रही है तथा अगस्त 2021 से तीसरी लहर चलने की संभावना है। दो-तीन माह के लॉक-डे के बाद अब भारत सरकार के द्वारा जो चिकित्सा अधोसंरचना विकसित करने की तैयारी की जा रही है, उससे ऐसा लगता है कि यदि कोरोना संबंधित अन्य प्रकोप नहीं हुआ तो दिसंबर- 2021 तक इस पर काबू पाया जा सकेगा।
कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी उत्पादों, उर्वरक, इस्पात, सीमेंट और विद्युत जैसी अधोसंरचनाओं को सम्बल देने वाले आठ प्रमुख उद्योग, औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में कुल 40 प्रतिशत भार रखते हैं। राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के कारण वर्ष 2020 और 2021 में इन आठ महत्वपूर्ण सूचकांकों ने सबसे कम वृद्धि दर्ज की। अब इन सूचकांकों में सुधार होना प्रारंभ होता दिखाई दे रहा है। आशा की जाती है कि कोरोना की तीसरी लहर के बावजूद दिसंबर-2021 तक उत्पादन और रोजगार के पूर्व स्तर की ओर बढ़ने के कारण सूचकांक में अपेक्षित सुधार हो जाएगा। उद्योगों के उत्पादन में गिरावट के कारण उद्योगों को बैंक ऋ ण भी वर्ष 2019 की तुलना में नीचा रहा है। अक्टूबर-दिसंबर 2021 तिमाही में औद्योगिक बैंक ऋण में सुधार अपेक्षित है। 2020-21 में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का उत्पादन एवं राजस्व भी प्रभावित हुआ है। आत्मनिर्भर भारत मिशन के तत्वावधान में, सरकार ने व्यवसायिक गतिविधियों में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की भागीदारी को युक्तिसंगत बनाने का प्रस्ताव दिया है।
भारत में कारपोरेट सेक्टर के कार्य निष्पादन पर आरबीआई रिपोर्ट के अनुसार, मेन्यूफेक्चरिंग सेक्टर में मांग की स्थिति कोरोना महामारी के कारण देश व्यापी लॉकडाउन किया गया। इसके कारण 2019-20 की तुलना में 2020-21 में हर तिमाही में संकुचन की स्थिति रही। यद्यपि 2021 की मार्च तिमाही में इसमें सुधार हुआ था, किंतु अप्रैल-मई 2021 अवधि में लॉक डाउन के कारण उत्पादन और बिक्री दोनों ही में गिरावट रही। सरकार द्वारा किए जाने वाले प्रयासों से कारपोरेट सेक्टर में भी जुलाई-2021 से सुधार की अपेक्षा की जा रही है। भारत सरकार देश में व्यापार अनुकूल वातावरण तैयार करने के लिए प्रतिबद्ध है, जिससे कि आवश्यक क्रियाकलापों और विनिमार्ण के क्षेत्रों में देश को वैश्विक केन्द्र बनाया जा सके। वर्षों पुराने विद्यमान नियमों और विनियमों को सरल और युक्तिसंगत बनाने हेतु बहुत सारे कदम उठाए गए हैं। ईज ऑफ डुइंग बिजिनेस रिपोर्ट-2020 के अनुसार वर्ष 2019 तकं विश्व के 190 देशों में भारत हर वर्ष प्रगति करता रहा है। वर्ष 2019 में भारत को 63वां स्थान प्राप्त हुआ है।
लोहा एवं इस्पात, सीमेंट, कपड़ा, चीनी, कागज, औषधि, सूचना प्रौद्योगिकी, वाहन, रसायन, चाय एवं सैनिक साज-सामान ये भारत के प्रमुख उद्योग हैं। यहां पर इन उद्योगों की जिस स्थिति पर चर्च की जा रही है, वह 2018-19 की है। उद्योग के लिए प्रतिरक्षा विभाग के अंतर्गत भारत में सैनिक साज-सामान उद्योग बड़ी तेजी से उभर रहा है। गैर-सैनिक उद्योगों में पहले स्थान पर लौह एवं इस्पात उद्योग रहा है जो दूसरे बड़े से मझौले उद्योगों को उनकी जरूरत के लिए सामग्री पूर्ति करने के साथ ही दूसरे देशों को इस्पात निर्यात भी करता है। कपड़ा उद्योग भारत का सबसे पुराना उद्योग है। अब यह आधुनिक प्रतिस्पर्धा में ठहरने के लिए कपड़े से विभिन्न प्रकार की निर्मित सामग्री तैयार करता है। 360 बिलियन डॉलर के इस उद्योग में 450 लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है। आयात राजस्व में वस्त्रोद्योग का वर्तमान हिस्सा 15 प्रतिशत है। सूचना प्रौद्योगकी उद्योग में 177 बिलियन डॉलर की पूंजी लगी हुई और वर्तमान में में 41 लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ।
55 बिलियन डॉलर का भारतीय औषधि उद्योग विश्व में 6वें स्थान पर है। भारत दुनिया में हर साल 20 बिलियन डॉलर मूल्य की वैक्सीन विदेशों को निर्यात करता है। भारतीय स्वचलित वाहन उद्योग का वार्षिक उत्पादन 300 मिलियन डॉलर के वाहनों का है जिसमें दुपहिया वाहन भी शामिल है। भारत का वाहन उद्योग का स्थान दुनिया के 7 वें बड़े निर्माता के स्थान पर है। इन वाहनों की सालाना उत्पादन 2 करोड़़ 67 लाख है तथा 67 लाख कर्मियों को रोजगार मिला हुआ है। भारतीय इंजीनियरिंग उद्योग निर्माण एवं विद्युत सामग्री दोनों का उत्पादन और निर्यात करता है। वर्तमान में भारतीय इंजीनियरिंग उद्योग हर साल 81 बिलियन डॉलर मूल्य का साज-सामान निर्यात कर रहा है। इसमें 2019 में 40 लाख लोगों को रोजगारी मिला हुआ था। भारतीय रसायन एवं पेट्रोलियम उद्योग में 118 मिलियन डॉलर की पूंजी लगी हुई है तथा इस उद्योग का भारत के निर्यात राजस्व में 9 प्रतिशत हिस्सा है।
भारतीय कागज उद्योग का 600 बिलियन डालर का बाजार है। चाय उद्योग का वार्षिक टर्न ओवर 10 हजार करोड़ रुपये का है। यहां पर मैंने भारत के बड़े उद्योगों की मुख्य बिन्दु अतिसंक्षिप्त में चर्चा करने का प्रयास किया।
1990 से पूर्व भारत में औद्योगिक लायसेंस और परमिट व्यवस्था थी जिसका सरकार बड़ी कड़ाई से पालन करती थी। उसके कारण बड़े उद्योगों और छोटे उद्योगों, सरकारी उद्योगों और निजी उद्योगों के बीच रेखा खिंची हुई थी। 1990 के बाद धीरे-धीरे लायसेंस, परिमट, केन्द्रीकरण व्यवस्था समाप्त होती गई तथा कार्यकुशलता को प्राथमिकता मिलती गई। कुछ खास राष्ट्रहित क्षेत्रों को छोड़कर सार्वजनिक क्षेत्रों का भी एकाधिकार समाप्त होता गया है। अब उद्योगों में पूंजी निवेश पर मुनाफा होना जरूरी है जिससे कि पूंजी शेयर होल्डर को लाभांश मिल सके।
भारत के बड़े उद्योग खासकर वाहन उद्योग चीन में निर्मित सैंकड़ों छोटे कल पुर्जे अपनी मशीनों में उपयोग करते हैं। अमेरिका, इंग्लैड, जर्मनी आदि देशों के लोकप्रिय ब्रांड नाम वाले कल पुर्जे वाहन एवं अन्य उद्योगों में उपयोग होनेवाली मशीनों के लिए सस्ते होने के कारण चीन से आयात हो रहे हैं, उदाहरण के लिए छोटे एवं बड़े सभी वाहनों की बैटरियां। पिछले एक साल से चीन से आयात होने वाले इन कल-पुर्जों का आयात नहीं हो पाने के कारण उपयोगकर्ता उद्योगों का उत्पादन रुका पड़ा है और ये उद्योग चीन से इन कल पूर्जों के आयात की इंतजार कर रहे हैं। भारत में सरकार द्वारा निर्धारित मजदूरी दर अधिक होने एवं अन्य नियमों के कड़ाई से पालन के कारण इन वस्तुओं की उत्पादन लागत अधिक आती है, इसलिए ये उद्योग चीनी वस्तुओं का उपयोग कर रहे हैं।