• मैं अमृतकाल बोल रहा हूं

    सूत्रधार अमृतकाल बता रहा है कि जो भगदड़ के पहले माहौल था, वही भगदड़ के बाद का माहौल है। अर्थात न कुछ बदला है, न बदलेगा।

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    — सर्वमित्रा सुरजन
    सूत्रधार अमृतकाल बता रहा है कि जो भगदड़ के पहले माहौल था, वही भगदड़ के बाद का माहौल है। अर्थात न कुछ बदला है, न बदलेगा। भगदड़ के पहले योगी अपनी पूरी केबिनेट के साथ कुंभ आते हैं और डुबकियां लगाने की प्रतियोगिता होती है, एक-दूसरे पर पानी फेंकने की हंसी-ठिठोली होती है। अहाहा, कैसा दिव्य, भव्य दृश्य है जब संन्यासी मुख्यमंत्री के साथ पूरी केबिनेट आध्यात्म के रंग में रंग गई।

    बीआर चोपड़ा की महाभारत देखने वालों को याद होगा कि समय को सूत्रधार की भूमिका में रखा गया था। मैं समय हूं, -यहां से महाभारत की बात शुरु होती थी। इसी तरह मैं अमृतकाल हूं और मैं आपको महाकुंभ की अमरकथा सुनाने जा रहा हूं, इस वाक्य के सहारे अब नरेन्द्र मोदी, आदित्यनाथ योगी और पूरी की पूरी भाजपा चाहे तो प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ की घटनाओं को अमृतकाल के हवाले से सुना कर अपनी जिम्मेदारी से बच सकती है। वैसे भी जिम्मेदारियों को स्वीकार न करने का पुराना ट्रैक रिकार्ड नरेन्द्र मोदी का रहा है। गुजरात दंगों पर उनकी दलील थी कि कार के नीचे पिल्ला भी दबे तो बुरा लगता है। नोटबंदी में लोग परेशान हुए, लाइन में खड़े-खड़े कईयों की जान चली गई तो नरेन्द्र मोदी ने कहा कि 50 दिन का समय दो, फिर जिस चौराहे पर बुलाओगे आ जाऊंगा। लॉकडाउन में लोग अकाल मौत का शिकार बने तो नरेन्द्र मोदी ने ताली बजाने, दिया जलाने के लिए प्रेरित किया। कोरोना की दूसरी लहर में हजारों मौतें हुईं, लाशें नदियों में बहाई गईं, श्मशान घाटों पर कतारें लगने लगीं, लेकिन नरेन्द्र मोदी पीएम रिलीफ फं ड के जरिए मदद पहुंचाने का दावा करते रहे। प्रज्ञा ठाकुर ने गोडसे को महान बताया, तो श्री मोदी ने उन्हें दिल से माफ नहीं किया, लेकिन कोई कड़ी कार्रवाई भी नहीं की। गलवान में हमारे सैनिक शहीद हुए, लेकिन नरेन्द्र मोदी चीन को लाल आंख नहीं दिखा पाए। पुलवामा में आतंकी हमले में सैनिक शहीद हुए और नरेन्द्र मोदी जंगल में रोमांच के पल बिताते रहे। ओडिशा में तीन ट्रेनें आपस में टकराई और इस भयानक हादसे में 293 लोग मारे गए, तब नरेन्द्र मोदी खंभे से टिककर दुखी मुद्रा में फोन पर बात करते दिखे, लेकिन उसके बाद भी रेल हादसों पर कोई लगाम नहीं लगी, न ही रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव को उनके पद से हटाया गया, बल्कि तीसरी बार सरकार बनने पर उन्हें फिर से यही मंत्रालय सौंपा गया। 29 जनवरी 2025 मौनी अमावस्या पर प्रयागराज में भगदड़ मची, न जाने कितने लोग मारे गए, कितने घायल हुए और कितने लापता हुए, मगर नरेन्द्र मोदी कुछ घंटों बाद दिल्ली में चुनाव प्रचार करने लगे। उत्तर-पूर्वी दिल्ली में प्रचार करते हुए उन्होंने कांग्रेस और आप को जी भर के कोसा और लगे हाथ कुंभ में मारे गए लोगों के लिए कहा कि इस हादसे में हमें कुछ पुण्यात्माओं को खोना पड़ा। सवाल है कि क्या इसी अमृतकाल का झांसा देश को दिया गया है, जिसमें सरकारी लापरवाही का शिकार होकर जान गंवाने वालों को पुण्यात्मा कहो और वोट बटोरने में लग जाओ।

    सूत्रधार अमृतकाल कहेगा कि हे भारतवासियों, अब सवाल मत करना कि भगदड़ में मारे गए, कुचले गए लोगों को नरेन्द्र मोदी ने केवल पुण्यात्मा क्यों कहा, उन्हें शहीद क्यों नहीं कहा। क्योंकि धीरेन्द्र शास्त्री उर्फ बागेश्वर धाम बाबा के हिसाब से तो जो लोग कुंभ में नहीं आए, वे सब देशविरोधी हैं। यानी कुं भ में पहुंचने वाले लोग देशप्रेमी हैं और उन्हीं देशप्रेमियों में से कुछ ने मोक्ष हासिल करने की खातिर खुद ही भगदड़ मचाई और खुद ही अपनी शहादत दे दी। वर्ना भाजपा सरकार की व्यवस्था तो इतनी चाक चौबंद है कि लोगों को जरा भी तकलीफ नहीं है। कम से कम मोदी मीडिया का तो यही दावा है। मुख्यधारा के किसी चैनल ने इतने बड़े हादसे पर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री से इस्तीफे की मांग नहीं की। उनके हिसाब से ये काम विपक्ष का है। चैनल बता रहे हैं कि अधिकारियों ने तो आधी रात को ही चेतावनी दे दी थी कि स्नान कर लें, वर्ना बाद में भीड़ बढ़ेगी। लेकिन लोगों को नींद प्यारी थी, वे उठे ही नहीं और सुबह जब स्नान के लिए पहुंचे तो बैरिकेडिंग थी, जिसे लोगों ने तोड़ा और इस तरह भगदड़ मची। मीडिया ये भी बता रहा है कि छोटी-मोटी घटनाओं से आस्था पर फर्क नहीं पड़ा। लोग फिर से स्नान के लिए उमड़े। महाकुंभ में हेमा मालिनी, रामदेव और अन्य साधु-संत डुबकी लगा रहे हैं, ये तस्वीरें बुधवार को आईं। हेमा मालिनी सनातन पर ज्ञान दे रही हैं और रामदेव अमृतकाल और मौन का महत्व समझा रहे हैं। मीडिया इन्हें भरपूर कवरेज दे रहा है। मीडिया जब इतनी वफादारी से काम करता है तो फिर नरेन्द्र मोदी का सीना क्यों न 56 इंच का बरकरार रहे।

    सूत्रधार अमृतकाल बता रहा है कि जो भगदड़ के पहले माहौल था, वही भगदड़ के बाद का माहौल है। अर्थात न कुछ बदला है, न बदलेगा। भगदड़ के पहले योगी अपनी पूरी केबिनेट के साथ कुंभ आते हैं और डुबकियां लगाने की प्रतियोगिता होती है, एक-दूसरे पर पानी फेंकने की हंसी-ठिठोली होती है। अहाहा, कैसा दिव्य, भव्य दृश्य है जब संन्यासी मुख्यमंत्री के साथ पूरी केबिनेट आध्यात्म के रंग में रंग गई। योगी बाद में अमित शाह के साथ भी आते हैं, तब साधु-संतों की मंडली होती है, ये लोग भी डुबकियां लगाते हैं। भगवा वस्त्र, माथे पर तिलक, लटकती तोंदे, चेहरे पर किसी से मतलब न होने का भाव, शासन में होने की अकड़, सब तस्वीरों में कैद होता है। भगदड़ के बाद रामदेव और हेमा मालिनी की तस्वीरें आती हैं। तो कहां कुछ बदला है, आम लोगों के लिए पहले भी पांच-दस किलोमीटर चलने की व्यवस्था थी, भगदड़ के बाद भी वही व्यवस्था कायम रहेगी, ताकि पैदल चलें तो सेहत बनी रहे और संगम भूमि के दर्शन अच्छे से हो जाएं। भूख लगे तो भंडारे में हाथ पसार लो, थक जाओ तो जमीन पर बैठ जाओ। जिन लोगों को सत्ता सौंपी है, उनके सुख के लिए खुद थोड़ा सा कष्ट उठा लिया तो कौन सा पहाड़ टूट जाएगा। जब जनता अपने दिए टैक्स से हजारों करोड़ खर्च करके वीआईपी सुख-सुविधा का इंतजाम सरकार को करने दे चुकी है, तो क्या उन्हीं वीआईपी के लिए शारीरिक और मानसिक कष्ट नहीं उठा सकती। वीआईपी के लिए जान का बलिदान देने का मौका अमृतकाल में लगे महाकुंभ में आम जनता को मिला है। जो पुण्यात्माएं चली गईं, अब उनके पुण्य के हिसाब से सरकार कुछ मुआवजे का ऐलान कर देगी। फिर फरवरी में प्रधानमंत्री आएंगे, तब फिर वही डुबकी लगाने, तस्वीरें खींचने, दंडवत प्रणाम करने, अर्घ्य देने की तस्वीरें आएंगी। जनता भावुकता के साथ, गदगद होकर देखेगी कितना महान शासक इस देश को मिला है, जो धर्म की रक्षा के लिए सब कुछ दांव पर लगा सकता है, बल्कि लगा चुका है। लोग जिंदा बचें न बचें धर्म बचा रहना चाहिए।

    अमृतकाल में महाकुंभ की अमरकथा में मोदी-योगी नायक हैं और राहुल, मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे सवाल उठाने वाले लोग खलनायक हैं। खलनायक जनता के सवाल उठा रहे हैं, पूछ रहे हैं कि डुबकी लगाने से क्या रोजी-रोटी के सवाल हल हो जाएंगे और नायक भूख की बात को धर्म-विरोधी बता रहे हैं। भूखे पेट भजन न होए गोपाला, ले तेरी कंठी, ले तेरी माला, ये वाक्य अब बदल दिया जाए, यही अमृतकाल की मांग है, यही महाकुंभ की अमरकथा का सार है।

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