नेसार नाज़ के कहानी संकलन का शीर्षक है- हांफता हुआ शोर । इसमें कुल जमा ग्यारह कहानियां हैं। संकलन की प्रस्तावना जाने-माने कवि-कथाकार अनवर सुहैल ने लिखी है। उन्होंने इन्हें छोटे फलक की बड़ी कहानियां निरुपित किया है।
सुहैल नेसार नाज़ को एक तरफ मंटों और दूसरी तरफ प्रेमचंद की परंपरा से जोड़ते हैं। उन्होंने जो स्थापना की है उसकी विवेचना सुधी समीक्षक करेंगे। मैंने जब इन रचनाओं को पढ़ा तो एकबारगी ही प्रभावित हुआ। संकलन की पहली कहानी का शीर्षक है 'पुल'। यह न नदी का पुल है, न सड़क का, न रेलवे का पुल। यह भौतिक पुल नहीं है, अपितु मनुष्य को मनुष्य से जोडऩे वाला अदृश्य सेतु है।
पुल एक ऐसी कहानी है जो आज के समय की है और जिसकी आज जैसी आवश्यकता पहले कभी नहीं थी। एक ही बस्ती में रहने वाला एक हिन्दू ब्राम्हण परिवार और दूसरा एक मुसलमान परिवार। दोनों परिवारों के बीच बातचीत का रिश्ता है, सुख-दुख में काम आने का भी रिश्ता है, लेकिन धर्म की एक दूरी दोनों के बीच कहीं बनी हुई है। सुगरा बी और सुबहान का बेटा इस खाई को पाटने के लिए पुल बन जाता है।
पंडिताइन को उस मासूम बच्चे को देखकर ससुराल चली गई बेटी का बचपन याद आता है और पंडित जी भी महसूस करते हैं कि बच्चे तो भगवान का रूप हैं। इस बच्चे से दूरी बनाने के बाद उन्हें अहसास होता है कि वे जिंदगी की एक मिठास से मरहूम हो गए थे।
(अक्षर पर्व जून 2018 अंक की प्रस्तावना)
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