'1947 में आजादी हासिल करने के बाद से ही अन्य बहुत से क्षेत्रों के साथ शिक्षा जगत में भी एक नया वातावरण निर्मित करने की पहल हुई। अनेक नीतिगत निर्णय लिए गए और अनेक परियोजनाओं पर काम प्रारंभ हुआ।
उद्देश्य था एक ऐसी व्यवस्था का निर्माण जो देश की लोकतांत्रिक आकांक्षाओं के अनुकूल हो और जो वैश्विक पटल पर भी भारतीय मेधा की पहिचान कायम कर सके। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का गठन, आईआईएससी, आईआईटी, आईआईएम व अनेक नए विश्वविद्यालयों की स्थापना, कोठारी आयोग का गठन आदि इसी सोच की देन है। देश में बड़े पैमाने पर विद्यालय भी प्रारंभ किए गए जिसमें सरकारी व गैर-सरकारी दोनों क्षेत्रों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया।
यहां याद कर लेना प्रासंगिक होगा कि देश के प्रथम व द्वितीय उपराष्ट्रपति क्रमश: सर्वपल्ली राधाकृष्णन व डॉ. जाकिर हुसैन अपने समय के अत्यन्त प्रतिष्ठित शिक्षाविद थे। उन्होंने कालांतर में राष्ट्रपति पद को भी सुशोभित किया। इसमें जो राजनैतिक संदेश निहित था, वह स्पष्ट था।'
(देशबंधु में 22 फरवरी 2019 को प्रकाशित)
(अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय, रीवां द्वारा आयोजित अर्जुन सिंह व्याख्यानमाला में 15 फरवरी 2019 को मुख्य अतिथि का व्याख्यान)
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