- डॉ.अजीत रानाडे
राउंड ट्रिपिंग की प्रवृत्ति, जहां व्यापारियों को अनाज सस्ते में खरीदने और बाद में उच्च खरीद कीमतों पर सरकार को फिर से बेचने के लिए प्रोत्साहन मिलता है। 1990 के दशक के बाद के दशकों में प्रौद्योगिकी और अधिक हस्तक्षेप सतर्कता के साथ कुछ समस्याओं को हल किया गया है। लेकिन यह एक भयावह समस्या बनी हुई है जिसके समाधान की आवश्यकता है।
इस महीने की शुरुआत में एक चुनावी रैली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक महत्वपूर्ण घोषणा की थी कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के रूप में जानी जाने वाली मुफ्त भोजन योजना को पांच साल तक बढ़ाया जाएगा। इस घोषणा का अनुमोदन अभी कैबिनेट में होना है। यह योजना अपने वर्तमान स्वरूप में पिछले कैबिनेट निर्णय के अनुसार दिसंबर 2023 में समाप्त होने वाली है। उम्मीद थी कि कैबिनेट के अनुमोदन के बाद यह योजना अब इसे दिसंबर से आगे पांच साल तक बढ़ा दी जाती पर खाद्य मंत्रालय का आदेश एक वर्ष की अवधि का उल्लेख करता है। इसके तहत भारत की 81.4 करोड़ लोगों को प्रति माह प्रति व्यक्ति पांच किलो मुफ्त राशन प्रदान दिया जाता है। पीएमजीकेएवाई का आरंभ कोविड-19 महामारी के दौरान खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे परेशान परिवारों को आपातकालीन राहत प्रदान करने के लिए किया गया था। इसे 2013 में पारित पहले से मौजूद खाद्य सुरक्षा कानून (राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम) के साथ जोड़ा गया था, जो पात्र परिवारों को अत्यधिक सब्सिडी वाले खाद्यान्न प्रदान करता था, जिसमें ग्रामीण भारत का दो तिहाई और शहरी भारत का आधा हिस्सा शामिल था।
खाद्य सुरक्षा कार्यकर्ताओं के एक दशक से अधिक लंबे अभियान के बाद एनएफएसए को संसद में पारित किया गया था जो भुखमरी और भूख के साथ सह-अस्तित्व वाले सरकारी अनाज भंडार में एकाधिकार खरीद योजना के कारण अनाज के बढ़ते स्टॉक से चिंतित थे। कोविड के दौरान सरकार ने एनएफएसए के तहत पात्रता को दोगुना कर दिया और दोगुना आबंटन पूरी तरह से मुफ्त कर दिया। इसलिए 'अत्यधिक सब्सिडीÓ में मिलने वाले यानी क्रमश: 3, 2 और 1 रुपये प्रति किलो वाले चावल, गेहूं और मोटे अनाज लाभार्थियों को पूरी तरह से मुफ्त में मिलने लगे। इस सीमा तक सरकार पर वृद्धिशील राजकोषीय बोझ कम था क्योंकि अनाज पर वैसे भी अत्यधिक सब्सिडी दी जा रही थी। यह मुफ्त अनाज योजना ही है जिसने बड़ी संख्या में परिवारों को उच्च खाद्य मुद्रास्फीति से सुरक्षा दी है। यदि इसके बजाय प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के रूप में एक निश्चित राशि दी जाती है तो खाद्यान्न की बढ़ती लागत उन्हें तेजी से अवहनीय बना देगी।
पीएमजीकेएवाई (जिसका नाम कोविड के पहले आवश्यक एनएफएसए प्लस समान आबंटन था) को चार चरणों में कई बार विस्तारित करने के बाद सरकार ने अतिरिक्त घटक (जिसने पात्रता को दोगुना कर दिया था) को बंद करने का फैसला किया और अब केवल एनएफएसए कानून द्वारा गारंटीकृत घटक देता है। लेकिन इसकी कीमत 3, 2 या 1 रुपये तय करने के बजाय यह पूरी तरह फ्री हो गई है और एनएफएसए का नाम बदलकर (शायद अनौपचारिक रूप से) पीएमजीकेएवाई कर दिया गया है। अब एक चुनावी रैली के दौरान प्रधानमंत्री की घोषणा के कारण इसने एक चुनावी वादे को पूरा करने की छवि हासिल कर ली है। लेकिन अगर कैबिनेट वैसे भी 'मुफ्त' योजना को पांच साल तक बढ़ाने जा रही थी तो आदर्श आचार संहिता खत्म होने तक इंतजार क्यों नहीं किया गया? ऐसा प्रतीत होता है कि सत्तारूढ़ दल को ऐसी योजना के लिए श्रेय लेने में अनुचित लाभ मिलता है जिसे जल्द ही कैबिनेट द्वारा पारित किया जाना चाहिए था।
इससे संबंधित कई मुद्दे हैं जिन पर चर्चा करने और बोलने की जरूरत है। सबसे पहले, यह निर्णय देश के भविष्य के राजस्व के कम से कम 110 खरब रुपये की प्रतिबद्धता को व्यक्त करता है। क्या यह आर्थिक रूप से टिकाऊ है? क्या मुफ्त देने के बजाय अनाज की कीमतों को थोड़ा अधिक बढ़ाया नहीं जा सकता है? यहां तक कि एनएफएसए में भी कीमतों में संशोधन की परिकल्पना की गई थी। 2015 से 2022 के दौरान औसत खाद्य मूल्य सूचकांक में 45 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और इसमें भी सिर्फ गेहूं की कीमतों में वृद्धि अधिक हो सकती है। सरकार को विभिन्न प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए करीब 10 करोड़ टन अनाज की वार्षिक खरीद का प्रबंधन करना होगा। अनाज मंडी के खरीद पक्ष पर इतना बड़ा एकाधिकारवादी हस्तक्षेप स्थिति को अत्यधिक बिगाड़ने वाला साबित होगा। भंडारण और वितरण के बोझ के बारे में तो बात नहीं करते हैं। इसके अलावा गेहूं और चावल के न्यूनतम समर्थन मूल्य का बोझ बढ़ता रहेगा। क्या खरीद का विकेन्द्रीकरण किया जा सकता है और इसे राज्यों को दिया जा सकता है? क्या कुछ योजनाओं को नकद के प्रत्यक्ष हस्तांतरण द्वारा प्रतिस्थापित किया जा सकता है?
दूसरा मुद्दा भूख और कुपोषण के बारे में है। वार्षिक ग्लोबल हंगर इंडेक्स रैंकिंग में भारत को मिलने वाले खराब रैंक पर भारतीय अधिकारियों को आपत्ति है। वे शिकायत करते हैं कि सूचकांक बच्चों के शारीरिक विकास और बौनेपन को अनुचित महत्व देता है और यह कि भारत में कुपोषण की समस्या है, भूख की समस्या नहीं। शब्दार्थ को छोड़ दें तो निश्चित रूप से सरकारी नीति में केवल अनाज पर ही नहीं बल्कि सूक्ष्म पोषक तत्वों, दूध, अंडे या मांस के रूप में प्रोटीन के संतुलित सेवन और मध्याह्न भोजन कार्यक्रम को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। नीति आयोग ने बहु-आयामी दृष्टिकोण का उपयोग करते हुए अनुमान लगाया है कि गरीबी 15 प्रतिशत से नीचे आ गई है। यदि ऐसा है तो फिर 58 प्रतिशत भारतीयों को मुफ्त भोजन क्यों मिल रहा है? या यहां तक कि अगर उनकी खाद्य सुरक्षा की जरूरतों को पूरा करना है, तो क्या यह प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण द्वारा बेहतर नहीं होगा?
तीसरा मुद्दा यह है कि क्या हमें खाद्य और पोषण सुरक्षा के संबंध में लक्ष्य केन्द्रीत दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। एनएफएसए राशन वितरण, दुकानों की सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से लागू किया जाता है और सार्वभौमिक बन गया है। वास्तव में पहले संस्करण में एनएफएसए को केवल 100 सबसे पिछड़े जिलों में लागू किया जाना था। इसे चुनावी हथकंडे के रूप में पूरे देश में लागू किया गया। 1960 के दशक से लागू मूल पीडीएस को 1990 के दशक के मध्य में लक्षित पीडीएस (टीपीडीएस) के साथ बदलकर सुधार करने की मांग की गई थी। लेकिन इसके लिए केंद्र सरकार के संसाधनों का उपयोग करते हुए देश के कुछ (पिछड़े) क्षेत्रों का पक्ष लेने के लिए कठोर राजनीतिक निर्णयों की आवश्यकता है। चूंकि प्रमुख रूप से उत्तरी राज्यों और हिंदी बेल्ट में अधिक पिछड़ापन है इसलिए इस तरह का लक्ष्य केन्द्रित दृष्टिकोण अंतर-राज्य निष्पक्षता और संघवाद को सहकारी और निष्पक्ष तरीके का मार्गदर्शन करने जैसे जटिल मुद्दों को उठाता है। बहरहाल यह तय है कि सार्वभौमिक एनएफएसए में कुछ सुधार करने की आवश्यकता है।
चौथा मुद्दा यह है कि क्या यह खाद्य सुरक्षा प्रणाली में व्यापक आमूलचूल परिवर्तन का समय है। एकाधिकार खरीद प्रणाली का उद्देश्य तीन उद्देश्यों को पूरा करना है- किसानों को (समय-समय पर संशोधित न्यूनतम समर्थन मूल्य के माध्यम से) पर्याप्त मूल्य का भुगतान, गरीब परिवारों को (उनके राशन पात्रता के माध्यम से) खाद्य सुरक्षा और (कीमतों पर नीचे की ओर दबाव डालने के लिए बाजार में आवधिक थोक बिक्री के माध्यम से) खाद्य मूल्य स्थिरता। मतलब एक तीर से तीन शिकार। इसके कारण कई समस्याएं उत्पन्न होती हैं। जैसे कि पंजाब में गहन रासायनिक खेती जो अप्रत्यक्ष रूप से पराली जलाने से जुड़ी हुई है। उच्च भंडारण लागत और परिणामस्वरूप नुकसान। राउंड ट्रिपिंग की प्रवृत्ति, जहां व्यापारियों को अनाज सस्ते में खरीदने और बाद में उच्च खरीद कीमतों पर सरकार को फिर से बेचने के लिए प्रोत्साहन मिलता है। 1990 के दशक के बाद के दशकों में प्रौद्योगिकी और अधिक हस्तक्षेप सतर्कता के साथ कुछ समस्याओं को हल किया गया है। लेकिन यह एक भयावह समस्या बनी हुई है जिसके समाधान की आवश्यकता है।
(लेखक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री हैं। सिंडिकेट : दी बिलियन प्रेस)