- एल एस हरदेनिया
उच्च न्यायालय और विद्युत मंडल के अतिरिक्त अन्य विभागों के मुख्यालय भी प्रदेश के अन्य शहरों में बनाये गये। रीवा विंध्यप्रदेश की राजधानी था। उसकी अपनी पृथक विधानसभा, मंत्रिपरिषद और कार्यपालिका थी। इंदौर और ग्वालियर, दोनों राज्यों की मिलीजुली विधानसभा और मंत्रिपरिषद थी। तदनुसार कभी इंदौर और कभी ग्वालियर क्षेत्र से मुख्यमंत्री बनाये जाते थे।
भाषा के आधार पर राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिश पर 1 नवम्बर 1956 को मध्यप्रदेश का गठन हुआ जिसमें महाकौशल, छत्तीसगढ़, ग्वालियरए इंदौर, रीवा एवं भोपाल आदि क्षेत्रों को शामिल किया गया। मध्यप्रदेश के गठन के पूर्व आजाद भारत के पहले आमचुनाव संपन्न हो चुके थे। चुनाव में सेन्ट्रल प्राविन्स, ग्वालियर-इंदौर की मिलीजुली, रीवा और भोपाल की विधानसभाओं के चुनाव हुए और इन राज्यों में मंत्रिपरिषदों का गठन हुआ। सबसे छोटी विधानसभा, मात्र तीस सदस्यीय भोपाल में गठित हुई। मंत्रिपरिषद भी उतनी ही छोटी थी। डॉ शंकरदयाल शर्मा मुख्यमंत्री बने। वे पूरे देश में सबसे ज्यादा शिक्षित और सबसे युवा मुख्यमंत्री थे। उस समय उनकी आयु मात्र 34 वर्ष थी। उससे थोड़ी बड़ी विधानसभा रीवा की बनी। भोपाल में राज्यपाल की नियुक्ति नहीं की गई परंतु रीवा के राज्यपाल को लेफ्टिनेंट गवर्नर कहा गया। परन्तु अन्तत: इन इकाइयों को मिलाकर 1956 में नया मध्यप्रदेश राज्य किया गया।
विलय होने वाली इकाइयों के मुख्यमंत्रियों में सबसे शक्तिशाली रविशंकर शुक्ल थे। उन्हें डॉ. शर्मा ने भोपाल में राजधानी बनाने पर राजी कर लिया। इफरात में भूमि की उपलब्धता के अलावा दो और बातें भोपाल के पक्ष में गईं। वे थीं विधानसभा और राज्यपाल के निवास के लिए उपयुक्त भवनों की उपलब्धता। जिस भवन को मिन्टो हॉल कहा जाता था उसका निर्माण भोपाल के नवाब ने लार्ड मिन्टो के सम्मान में करवाया था। कार्यालयों एवं निवास हेतु भी अनेक भवन उपलब्ध थे। इसके अतिरिक्त भोपाल भौगोलिक दृष्टि से मध्यप्रदेश के बीचों-बीच स्थित था।
भोपाल को राजधानी बनाने के बाद राज्य के भावनात्मक एकीकरण की चुनौती उपस्थित हुई। राज्य सरकार के विभिन्न विभागों के मुख्यालयों को अलग-अलग शहरों में स्थापित करने का निर्णय किया गया। किंतु इससे प्रदेश के बुनियादी हितों पर दुष्प्रभाव पड़ा। मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय जबलपुर में स्थापित किया गया। अब इसकी दो बेन्चें ग्वालियर व इंदौर में हैं। परंतु राजधानी भोपाल इनसे वंचित है जिसके कारण नागरिकों को काफी असुविधा होती है। महाधिवक्ता कार्यालय भी जबलपुर में स्थित है। जब भी कोई ऐसा उलझनपूर्ण मामला होता है जिसमें राज्य सरकार को महाधिवक्ता के परामर्श की आवश्यकता होती है, तो उन्हें भोपाल आना पड़ता है। जबलपुर को प्रसन्न करने के लिए उसे मध्यप्रदेश विद्युत मंडल का मुख्यालय भी बनाया गया जिसका लाभ राज्य को मिला क्योंकि विद्युत मंडल के अध्यक्ष को स्वतंत्र रूप से बिना राजकीय हस्तक्षेप के काम करने का मौका मिला। आज मध्यप्रदेश में यथेष्ट मात्रा में बिजली का उत्पादन होने लगा है।
उच्च न्यायालय और विद्युत मंडल के अतिरिक्त अन्य विभागों के मुख्यालय भी प्रदेश के अन्य शहरों में बनाये गये। रीवा विंध्यप्रदेश की राजधानी था। उसकी अपनी पृथक विधानसभा, मंत्रिपरिषद और कार्यपालिका थी। इंदौर और ग्वालियर, दोनों राज्यों की मिलीजुली विधानसभा और मंत्रिपरिषद थी। तदनुसार कभी इंदौर और कभी ग्वालियर क्षेत्र से मुख्यमंत्री बनाये जाते थे। इन दोनों शहरों में अनेक महत्वपूर्ण विभागों के मुख्यालय बनाये गये। परंतु संयोग यह हुआ कि इन दोनों शहरों में ऐसे विभागों, परिषदों और मंडलों के मुख्यालय बनाये गये जो मध्यप्रदेश सरकार की आय के प्रमुख स्त्रोत थे।
जैसे ग्वालियर को लें। ग्वालियर में राजस्व मंडल आयुक्त भू अभिलेख एवं बंदोबस्त, परिवहन आयुक्त, राज्य अपीलीय अधिकरण व आबकारी आयुक्त के कार्यालय स्थापित किये गये। परिवहन आयुक्त एवं आबकारी आयुक्त के कार्यालय राज्य सरकार की आय के प्रमुख स्त्रोत हैं परंतु इन दोनों कार्यालयों के मुखियाओं का काफी समय भोपाल में बीतता है। इससे राज्य शासन और ग्वालियर स्थित अधिकारियों के बीच समन्वय में कठिनाई होती है और इन दोनों संस्थाओं की आय और बढ़ाने में बाधा उत्पन्न होती है। इसी प्रकार इंदौर में भी ऐसे कई कार्यालय हैं जो सरकार की आमदनी के बड़े स्त्रोत हैं। इंदौर में मध्यप्रदेश वाणिज्यिक कर अपील बोर्ड, आयुक्त वाणिज्यिक कर, श्रम आयुक्त, संचालक कर्मचारी राज्य बीमा सेवाएं, औद्योगिक स्वास्थ्य सेवाएं, मध्यप्रदेश वित्त निगम, शिकायत निवारण प्राधिकरण ; सरदार सरोवर परियोजना, औद्योगिक न्यायालय, मध्यप्रदेश लोकसेवा आयोग आदि कार्यालय हैं। स्पष्ट है कि बेहतर शासन व्यवस्था के लिए इसमें से कुछ कार्यालयों को अब भोपाल लाने पर विचार करना चाहिए।
सन् 2000 में छत्तीसगढ़ के मध्यप्रदेश से अलग होने के बाद उस क्षेत्र के बड़े कारखानों जैसे भिलाई इस्पात संयंत्र, एनटीपीसी के बिजली घरों आदि से प्राप्त होने वाले कर व लौह अयस्क, कोयले व अन्य खनिजों की खदानों की रायल्टी से मध्यप्रदेश वंचित हो गया। छत्तीसगढ़ क्षेत्र में इस्पात संयंत्र की स्थापना का मुख्य कारण था वहां लौह अयस्क के अपार भंडार का होना। इसके अतिरिक्त बस्तर में बैलाडीला कारपोरेशन की स्थापना की गई जो लौह अयस्क और कोयले की खदानों की देखरेख करती थी। बिलासपुर के पास एल्युमिनियम का बड़ा कारखाना था। सार्वजनिक क्षेत्र में स्थापित इन कारखानों का जो लाभ होता था उसका एक बड़ा हिस्सा मध्यप्रदेश को मिलता था। आमदनी में आई इस कमी की भरपाई करने के लिए नये उपाय करने होंगें।
कृषि के क्षेत्र में भी छत्तीसगढ़ का महत्वपूर्ण स्थान था। छत्तीसगढ़ में इतना चावल उत्पादित होता था कि प्रदेश में खपत के बाद उसका निर्यात भी होता था। इन सब साधनों की उपलब्धता के कारण मध्यप्रदेश की आर्थिक स्थिति काफी सुखद थी। छत्तीसगढ़ के पृथक होने के बाद मध्यप्रदेश की वित्त में काफी कमी आई है।
मध्यप्रदेश का एक बड़ा हिस्सा आवागमन के लिए सड़कों पर ही निर्भर है। इस हिस्से में अब तक रेल पटरियों का जाल नहीं बिछ पाया है, जिससे राज्य का विकास बाधित है। रेल मार्ग के विस्तार के बिना राज्य का तेज गति आर्थिक विकास संभव नहीं।