बुधवार की सुबह देश की जनता को महंगाई एक और झटका मिला है। अब 14.2 किलो के घरेलू रसोई गैस सिलेंडर की कीमतों में 50 रुपये प्रति सिलेंडर की वृद्धि हुई है। जबकि 5 किलो घरेलू सिलेंडर की कीमत में 18 रुपये प्रति सिलेंडर की बढ़ोतरी की गई है। इससे पहले पिछले सप्ताह जीएसटी परिषद में किए गए फैसलों के अनुसार, अब दही, पनीर, शहद, मांस और मछली जैसे डिब्बा बंद और लेबल-युक्त खाद्य पदार्थों पर माल एवं सेवा कर (जीएसटी) लगेगा। सूखा मखाना, सोयाबीन, मटर जैसे उत्पाद, गेहूं और अन्य अनाज, गेहूं का आटा, मुरी, गुड़, और जैविक खाद जैसे उत्पादों पर पांच प्रतिशत जीएसटी लगेगा। इसका मतलब है कि जीएसटी की नई दरें लागू होने के बाद अब रोजमर्रा की ये उपभोक्ता सामग्री महंगी हो जाएगी और आम आदमी के लिए जीवन में कठिनाइयां कुछ और बढ़ जाएंगी। केंद्र सरकार तो जीएसटी को विकास के लिए जरूरी मानती है।
प्रधानमंत्री मोदी ने संसद में आधी रात को जीएसटी लागू करते हुए इसे आर्थिक आजादी कहा था। लेकिन ये कैसी आजादी है, जिसमें जनता खुद को जकड़ा हुआ महसूस कर रही है, इसका जवाब सरकार के पास नहीं होगा। लोगों को होने वाली परेशानी पर विपक्षी दल कांग्रेस ने सवाल किया है कि क्या सरकार अर्थव्यवस्था में इतनी महंगाई के समय आटे, गुड़, या छाछ पर 5 प्रतिशत कर लगाकर लोगों का जीवन स्तर खत्म करना चाहती है? वहीं कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट किया, ''स्वास्थ्य बीमा पर जीएसटी 18 प्रतिशत, अस्पताल में कक्ष पर जीएसटी 18 प्रतिशत। हीरे पर जीएसटी 1.5 प्रतिशत। 'गब्बर सिंह टैक्स' इस बात का दुखद स्मरण कराता है कि प्रधानमंत्री किसका ख्याल रखते हैं।''
गौरतलब है कि राहुल गांधी ने जीएसटी को गब्बर सिंह टैक्स कहा है, क्योंकि ये लोगों को डराता है। अब वो अस्पताल और हीरे पर जीएसटी की दरों का जिक्र करते हुए याद दिला रहे हैं कि इस देश में किन लोगों का ख्याल रखा जाता है। भाजपा इन टिप्पणियों को राजनीति से प्रेरित बता सकती है, लेकिन ये सच किसी से छिपा नहीं है कि इस देश के जिन लोगों का नाम फोर्ब्स की सूची में दर्ज है, उनकी दौलत कितनी तेजी से बढ़ी है और दूसरी ओर देश में करोड़ों लोग किस तरह गरीबी का शिकार हो गए हैं। इन लोगों के लिए चंद किलो मुफ्त राशन की व्यवस्था कर उसे राहत पैकेज का नाम दिया जा रहा है। जबकि लोककल्याणकारी राज्य का दायित्व इससे कहीं अधिक होता है। आम आदमी को महंगाई का दर्द महसूस न हो, इसके लिए धर्म की अफीम लगातार उसकी रगों में डाली जा रही है। नूपुर शर्मा के बयान के बाद से देश में किस तरह का माहौल बन चुका है, इससे हर कोई वाकिफ है। अदालत ने नूपुर शर्मा को कड़ी फटकार लगाई है, उन्हें माफी मांगने कहा है। नूपुर शर्मा के खिलाफ देश के कई थानों में शिकायत दर्ज है और अब एक नए विवाद ने आग पकड़ ली है। इस बार विवाद के घेरे में टीएमसी सांसद महुआ मोईत्रा आ चुकी हैं।
दरअसल पिछले दिनों भारतीय मूल की कनाडा में रहने वाली फिल्ममेकर लीना मणिमेकलाई ने मां काली डॉक्यूमेंट्री फिल्म को लेकर एक विवादित पोस्टर जारी किया था। जिस पर देश में हंगामा खड़ा हुआ था। लीना मणिमेकलाई के खिलाफ सोशल मीडिया पर मुहिम छिड़ गई और कई जगह शिकायतें दर्ज हुई। अयोध्या के एक महंत ने तो सिर तन से जुदा करने तक की धमकी दे डाली। वैसे बुधवार सुबह ही नूपुर शर्मा को ऐसी ही धमकी देने वाले अजमेर दरगाह के खादिम सलमान चिश्ती को पुलिस ने गिरफ्तार किया है। कानून हाथ में लेने की बात जो भी शख्स करे, उस पर ऐसी ही कार्रवाई होनी चाहिए। किसी के भी बयान या कार्यों से अगर किसी की धार्मिक भावना को ठेस पहुंची है या कोई और आपत्ति हो, तो उसका निराकरण करने के लिए अदालत ही सही जगह है।
सड़कों पर इंसाफ की बात करने वाले संविधान और लोकतंत्र दोनों का अपमान करते हैं औऱ उन्हें उसकी सजा मिलनी ही चाहिए। बहरहाल, मां काली के पोस्टर विवाद पर एक टीवी चैनल के कार्यक्रम में महुआ मोईत्रा से सवाल किया गया। आयोजकों को इस बात का भान रहा ही होगा कि वे एक विवादित मुद्दे पर सवाल पूछ रहे हैं, फिर भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उपयोग करते हुए उन्होंने सवाल पूछे और उसी अधिकार के तहत महुआ मोईत्रा ने इस विवाद और मां काली के बारे में अपनी राय रखी। लेकिन अब उनके खिलाफ हंगामा मच गया है। टीएमसी को नीचा दिखाने की फिराक में लगी भाजपा ने इस मुद्दे को लपकने में कोई देरी नहीं की। कई भाजपा शासित राज्यों में महुआ मोईत्रा के खिलाफ शिकायत हुई है, और भाजपा नेता उनकी आलोचना कर रहे हैं। खासकर प.बंगाल में भाजपा जमकर विरोध प्रदर्शन कर रही है। महुआ मोईत्रा के साथ-साथ ममता बनर्जी को भी निशाने पर लिया जा रहा है।
जाहिर है नूपुर शर्मा विवाद में फंसी भाजपा को एक अच्छा मौका मिला है कि वह अपने विरोधियों पर पलटवार कर सके। ये साफ नजर आ रहा है कि ये मुद्दा धर्म की रक्षा से अधिक राजनैतिक लाभ उठाने का है। वैसे महुआ मोईत्रा अपनी पार्टी के सहयोग के बिना अपने बयान पर अटल हैं और उन्होंने जाहिर कर दिया है कि वे मां काली की भक्त हैं, इसलिए किसी से नहीं डरेंगी। नूपुर शर्मा की तरह महुआ मोईत्रा का विवाद भी लंबा खिंचता है या इसका कुछ और नतीजा निकलता है, ये कुछ दिनों में पता चल जाएगा। सवाल ये है कि इस तरह से धार्मिक विवादों से देश को क्या हासिल होगा।
क्या ये विवाद रोजी रोटी का सवाल हल कर सकते हैं या महंगाई कम कर सकते हैं या मां काली के अपमान के नाम पर बवाल करने वाले लोग इस देश की महिलाओं को सुरक्षित माहौल देने का वादा कर सकते हैं। देश की समस्याएं हल होने की जगह बढ़ती जा रही हैं। आम आदमी के लिए जीवन कठिन होता जा रहा है, लेकिन धार्मिक विवाद खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहे। क्या भाजपा इसी तरह देश चलाना चाहती है।