नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शिक्षा की पहुंच, समानता, गुणवत्ता, वहनीय शिक्षा, उत्तरदायित्व और नवाचार पर विशेष ध्यान दिया जाना सराहनीय है । अब छात्र रसायन शास्त्र के साथ संगीत और भौतिक शास्त्र के साथ पेंटिंग का औपचारिक कोर्स कर सकते हैं, जो कि भारत में अभी तक संभव नहीं था। नई शिक्षा नीति में शिक्षा पर जीडीपी का 6 प्रतिशत सार्वजनिक व्यय लक्ष्य रखा गया है।
बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय मुजफ्फरपुर के अर्थशास्त्र विभाग के तत्वावधान में विगत 3 से 5 अप्रैल 2021 तक इंडियन इकानॉमिक एसोसिएशन द्वारा प्रायोजित राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 पर भारत के अर्थशास्त्रियों का तीन दिवसीय सम्मेलन सम्पन्न हुआ। कोरोना संक्रमण के कारण अर्थशास्त्रियों के इस सम्मेलन का दो बार स्थगन किया जा चुका था। चूंकि मार्च 2021 तक भारत के अन्य राज्यों की तुलना में बिहार में कोविड-19 की दूसरी लहर बहुत धीमी चल रही थी, इसलिए इंडियन इकानॉमिक एसोसिएशन ने बिहार में तीन दिवसीय सम्मेलन का आयोजन उचित समझा था । यद्यपि कोरोना लहर के कारण दूर के प्रदेशों से सम्मेलन में हिस्सा लेनेवाले अर्थशास्त्रियों की संख्या कम थी तथापि दूर के नगरों के 50 अर्थशास्त्रियों ने वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से हिस्सा लिया। यहां पर सम्मेलन में शिक्षा नीति पर चर्चा का सार प्रस्तुुत किया जा रहा है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 केन्द्र सरकार द्वारा इसरो के प्रमुख डॉ. के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में जून 2017 में गठित समिति के मसौदे पर आधारित है जिसे समिति ने सार्वजनिक टिप्पणियों हेतु मानव संसाधन विकास मंत्रालय को मई 2019 में सौंपा था। मसौदा में शिक्षा नीति से संबंधित सार्थक सुझावों को शामिल करने के बाद जुलाई 2020 में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को घोषित किया गया। जुलाई 2020 में सरकार ने विभिन्न स्तर और विभिन्न विधाओं के शिक्षण संस्थानों से अपेक्षा व्यक्त की थी कि वे सम्मेलन और संगोष्ठियों का आयोजन करके सरकार को रचनात्मक सुझाव देंगे जिससे कि इसको अमलीजामा पहनाया जा सके। दुर्भाग्य से कोरोना संक्रमणजनित परिस्थितियों के कारण अधिकांश शिक्षण संस्थान और शैक्षणिक संगठन सुझाव देने हेतु विलंब से इन सम्मेलनों का आयोजन किया है।
यद्यपि शिक्षा नीति पर अर्थशास्त्रियों के इस सम्मेलन में फोकस उच्च शिक्षा पर रहा किंतु प्रारंभिक शिक्षा और स्कूली शिक्षा के सत्रों में समस्त महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर विस्तार से चर्चा हुई। नई शिक्षा नीति में प्रारंभिक शिक्षा को बहुस्तरीय खेल और गतिविधि आधारित बनाने को प्राथमिकता दी गई है। नई शिक्षा नीति में वर्तमान 6 से 18 वर्ष की आयु के बच्चों की 10 $ 2 स्कूली शिक्षा व्यवस्था के स्थान 3 से 18 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए 5$3$3$4 शैक्षणिक ढांचा दिया गया है। 3 से 6 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए आंगनबाड़ी के माध्यम से मुफ्त, सुरक्षित और गुणवत्तापूर्ण बाल्यावस्था देखभाल शिक्षा तथा 6 से 8 वर्ष की आयु तक के बच्चों के लिए प्राथमिक विद्यालयों में कक्षा 1 और 2 की शिक्षा प्रदान की जाएगी। सम्मेलन में एनसीईआरटी, नई दिल्ली, बिहार राज्य परिषद व स्कूली शिक्षा मंत्रालय के आमंत्रित अधिकारियों द्वारा विभिन्न पहलुओं पर व्यवहारिक सुझाव प्रस्तुत किए गए।
स्कूली शिक्षा प्रणाली के तहत नई शिक्षा नीति का लक्ष्य ड्रॉपआउट बच्चों की संख्या कम करने और सभी स्तर पर शिक्षा की सार्वभौमिक पहुंच सुनिश्चित करना है। मसौदे में कहा गया है कि कोर्स चुनाव में लचीलेपन के माध्यम से छात्रों को सशक्तबनाया जाएगा। स्कूली पाठयक्रम एवं शिक्षण को अधिगम समग्र, आनंददायी और रुचिकर बनाया जाएगा। स्कूली शिक्षा में शिक्षक को सबसे महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। वर्ष 2030 तक के अध्यापन के लिए इंटीग्रेटेड बी.एड. कोर्स अनिवार्य किया गया है। ग्रामों के मेधावी छात्रों को बी.एड. कोर्स में प्रवेश के लिए चयन करके उनको स्कॉलरशिप प्रदान करके शिक्षक बनने हेतु प्रेरित किया जाएगा। राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद वर्ष 2022 शिक्षकों के लिए राष्ट्रीय व्यावसायिक मानक का विकास किया जाएगा। कुल मिलाकर स्कूली शिक्षा से संबंधित नीति सराहनीय है।
नई शिक्षा नीति के तहत उच्च शिक्षा के क्षेत्र में स्नातक पाठयक्रम में महत्वपूर्ण सुधार किया गया है। इसके तहत 3 या 4 वर्ष के स्नातक कार्यक्रम में छात्र कई स्तरों पर पाठयक्रम को छोड़ सकेंगे और उन्हें उसी के अनुरूप उपाधि प्रदान की जाएगी। जैसे 1 वर्ष बाद सर्टिफिकेट, 2 वर्षों के बाद एडवांस डिप्लोमा, 3 वर्षों के बाद स्नातक डिग्री तथा 4 वर्षों के बाद शोध के साथ स्नातक। विभिन्न उच्च शिक्षण संस्थानों से प्राप्त अंकों या क्रेडिट को डिजिटल रूप से सुरक्षित रखने के लिए एक एकेडेमिक बैंक ऑफ क्रेडिट दिया जाएगा जिससे अलग-अलग संस्थानों में छात्रों के प्रदर्शन के आधार पर उन्हें डिग्री प्रदान की जा सके। छात्र जगत के लिए उक्त व्यवस्था बहुत लाभदायक सिद्ध होगी। चिकित्सा और कानूनी शिक्षा को छोड़कर पूरे शिक्षा क्षेत्र के लिए एक एकल निकाय के रूप में भारत उच्च शिक्षा आयोग का गठन किया जाएगा, जिसके कार्यों के प्रभावी निष्पादन के लिए विनियमन, मानक निर्धारण, वित्त पोषण और प्रत्यायन से संबंधित चार निकाय गठित किए जाएंगे।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे में दिए गए सुझाव अनुसार सबसे पहले केन्द्र सरकार ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दिया है और शिक्षा मंत्रालय ने कार्य करना प्रांरभ कर दिया है। शिक्षाशास्त्रियों का मानना है कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शिक्षा की पहुंच, समानता, गुणवत्ता, वहनीय शिक्षा, उत्तरदायित्व और नवाचार पर विशेष ध्यान दिया जाना सराहनीय है । अब छात्र रसायन शास्त्र के साथ संगीत और भौतिक शास्त्र के साथ पेंटिंग का औपचारिक कोर्स कर सकते हैं, जो कि भारत में अभी तक संभव नहीं था। नई शिक्षा नीति में शिक्षा पर जीडीपी का 6 प्रतिशत सार्वजनिक व्यय लक्ष्य रखा गया है। यह पुराना लक्ष्य सराहनीय होने के बावजूद वर्तमान परिस्थितियों में इसके वर्ष 2030 तक भी प्राप्त होने की संभावना कम ही है। नीति में ऐसे अनेक लक्ष्य हैं जो सराहनीय होने के बावजूद पूरे होने कठिन लगते हैं।
2014 के आम चुनाव में भाजपा ने अपने चुनावी घोषणापत्र में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति बनाने का वादा किया था। इसी बात को ध्यान में रखते हुए सरकार ने जून 2017 में नई शिक्षा नीति मसौदा तैयार करने के लिए डॉ. के. कस्तूरीरंजन की अध्यक्षता में समिति गठित की थी। 2019 में सरकार द्वारा नई शिक्षा के मसौदा पर सलाह मशविरा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े बुद्धिजीवियों ने बढ़कर हिस्सा लिया था। शिक्षा नीति में प्राचीन भारतीय भाषाओं की प्राथमिक और उच्च शिक्षा में सुविधा सरीखे बिन्दुओं पर आर.एस.एस. की स्पष्ट छाप दिखाई पड़ती है। कुछ शिक्षकों के अनुसार प्रस्तावित नए निकायों की स्थापना से विश्वविद्यालयों की स्वायत्ता समाप्त होने की संभावना है। देखने वाली बात यह होगी कि नई शिक्षा नीति का क्रियान्वयन किस प्रकार किया जाता है।
डॉ. हनुमन्त यादव