• बुरा न मानो होली है

    इस बदलाव को लाने के लिए मोदीजी ने कहा था कि देश नहीं बिकने दूंगा। लोगों ने भी इस बात पर यकीन कर लिया था। अब देश कोई बिकने की चीज तो है नहीं। वैसे भी नेहरूजी ने इस देश की जनता को ही भारत माता कहा था।

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    वैसे भी देश बदल रहा है। इस बदलाव को लाने के लिए मोदीजी ने कहा था कि देश नहीं बिकने दूंगा। लोगों ने भी इस बात पर यकीन कर लिया था। अब देश कोई बिकने की चीज तो है नहीं। वैसे भी नेहरूजी ने इस देश की जनता को ही भारत माता कहा था। यानी हमीं ये देश हैं, अब अपने आपको कोई कैसे बिकने देगा। मगर लोग इस बात को भूल गए कि मोदी है तो मुमकिन है।

    16वीं सदी में एक भविष्यवक्ता हुए थे नास्त्रेदमस, जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने आने वाली कई सदियों तक दुनिया में कब, कहां, क्या होगा, कैसे युद्ध होंगे, कौन सी प्राकृतिक आपदाएं आएंगी, किस तरह दुनिया खात्मे की ओर बढ़ेगी, इन सबके संकेत दे दिए थे। भारत भाग्यशाली है कि उसे भी इस सदी में एक भविष्यवक्ता का शासन देखने मिल रहा है। हमारे प्रधानमंत्री हर बात की सटीक भविष्यवाणी कर देते हैं। भले ही राजनैतिक पंडित कोई भी अनुमान लगाएं, पत्रकार रिपोर्टिंग कर जमीनी हालात कैसे भी बताएं, होता वही है, जो मोदीजी कहते हैं। अब देखिए पिछले महीने फरवरी में ही मोदीजी ने कहा था, कि 10 मार्च को जीत की होली मनाएंगे। सबको लगा कि ऐसा कैसे होगा। मोदीजी की रैलियों से ज्यादा भीड़ तो अखिलेश की सभाओं में जुट रही है। किसान पहले ही नाराज हैं और लखीमपुर मामले के बाद तो भाजपा का पत्ता साफ होना तय है, मगर मोदीजी की वाणी का कमाल देखिए कि लखीमपुर की तो सभी सीटें भाजपा को मिली ही, उप्र में भाजपा फिर से सत्ता में आ गई।

    राजनैतिक विश्लेषकों के विश्लेषण धरे के धरे रह गए। अब ईवीएम में गड़बड़ी की शिकायत करो या सोशल मीडिया प्लेटफार्म से भाजपा को मिली मदद का रोना रोओ, जीतने के बाद सिकंदर तो भाजपा ही कहलाएगी। वैसे सिकंदर से याद आया कि मोदीजी केवल भविष्यवाणियां नहीं करते, इतिहासवाणी भी करते हैं। यानी मन की बात के साथ-साथ कल की बात करने में भी उन्हें महारत हासिल है। अब वो कल चाहे आने वाला हो या बीता हुआ हो। याद है न सिकंदर को उन्होंने न केवल बिहार तक पहुंचा दिया था, बल्कि ये भी कह दिया था कि बिहारियों से पंगा लेने का हश्र ये हुआ कि सिकंदर हार गया। अभी के इतिहास के हिसाब से ये बात गलत लग रही है। लेकिन 2024 तक का इंतजार कीजिए, अगर मोदीजी फिर से प्रधानमंत्री बने तो इतिहास की किताबें चीख-चीख कर कहेंगी कि सिकंदर बिहार आकर ही हारा था। नालंदा के बगल में ही तक्षशिला है और भारत में 6 सौ करोड़ मतदाता हैं, जिन्होंने बहुमत से मोदीजी को 2014 में पहली बार प्रधानमंत्री बनने के लिए चुना था। उसके बाद ये सिलसिला थम ही नहीं रहा।


    आपको लग रहा होगा कि ये सारी बातें होली की तरंग में कही जा रही हैं। लेकिन अब 2014 से पहले वाला वो पुराना भारत नहीं है, जहां बिना किसी नारे के ही सबका साथ, सबका विकास और सबका उल्लास होता था। ये न्यू इंडिया है, यहां के कायदे अलग हैं। अब बाकायदा घोषणा करके सबका साथ, सबका विकास की बातें की जाती हैं और उल्लास पर कुछ लोगों का हक होता है। इस न्यू इंडिया में उल्लास के नए-नए भगवा शेड होली आने से पहले ही देखने मिल रहे हैं। वैसे अभी तक ये फरमान तो जारी नहीं हुआ है कि इस बार होली पर हरे रंग का गुलाल नहीं उड़ाना है, न गुलाबी रंग को दूसरे रंगों से भिड़ने देना है, नीले रंग को माथे तक आने ही नहीं देना है, चरणों पर लगाना हो तो अलग बात है, केवल केसरिया गुलाल से होली खेली जाएगी। मगर ऐसा कोई आदेश आए तो उसे देशभक्ति का प्रमाण देते हुए स्वीकारना होगा। वैसे भी देश बदल रहा है। इस बदलाव को लाने के लिए मोदीजी ने कहा था कि देश नहीं बिकने दूंगा। लोगों ने भी इस बात पर यकीन कर लिया था। अब देश कोई बिकने की चीज तो है नहीं। वैसे भी नेहरूजी ने इस देश की जनता को ही भारत माता कहा था। यानी हमीं ये देश हैं, अब अपने आपको कोई कैसे बिकने देगा। मगर लोग इस बात को भूल गए कि मोदी है तो मुमकिन है। उन्होंने बिकने नहीं दूंगा कहा था, खुद नहीं बेचूंगा ये तो नहीं कहा था। तो देश की संपत्ति बिकनी शुरु हो गई।

    पहले उद्योग बिके, अब उद्योगों की जमीन बिकेगी। मोदीजी ने खुद बताया कि वे रेलवे स्टेशन पर चाय बेचते थे। तो मान लेना चाहिए कि बेचने का उनके पास पुराना अनुभव है। हाल ही में उन्होंने द कश्मीर फाइल्स फिल्म को देखने की हिमायत की। फिल्म इंडस्ट्री में फिल्मों की मार्केटिंग और प्रमोशन के कई नुस्खे आजमाए गए हैं। लेकिन मोदीजी ने यहां भी इतिहास रच दिया, अपने पुराने अनुभवों का लाभ उठाते हुए उन्होंने एक फिल्म का प्रमोशन भी कर दिया। पता नहीं नास्त्रेदमस ने ऐसी कोई भविष्यवाणी की थी या नहीं कि एक वक्त आएगा, जब भारत अमृतकाल से गुजरेगा। उस वक्त आम लोगों के पास खाने के लिए रोटी और रहने के लिए मकान भले ही न हो, लेकिन सरकार शौचालय का इंतजाम जरूर कर देगी और हर महीने प्रधानमंत्री के अमृतवचन सुनकर जनता को जिंदा रहने के लिए प्रोत्साहित करेगी। प्रधानमंत्री महंगाई और बेरोजगारी के मसलों पर चुप रहेंगे, क्योंकि उसमें केवल विपक्ष का प्रमोशन होगा। इसलिए अमृतकाल में फिल्म का प्रमोशन प्रधानमंत्री की जुबान से होगा।


    समुद्र मंथन के बाद देवताओं के बीच अमृत का बंटवारा ऐसे ही हुआ था, सबमें थोड़ा-थोड़ा बंट गया था। प्रधानमंत्री भी सत्ता का अमृत इसी तरह थोड़ा-थोड़ा बांट रहे हैं। बंटवारे के इस रंग में कोई भंग न पड़े, इसका इंतजाम भी सरकार कर रही है। वैसे बंटवारे से याद आया, इन चुनावों में जिन्ना के नाम पर सपा को घेरने का काम भाजपा ने खूब किया था। अखिलेश यादव का तो नाम ही अखिलेश अली जिन्ना कर दिया था। लेकिन पिछले दिनों संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा का जो अधिवेशन अहमदाबाद में हुआ, उसमें गुजरात के खास लोगों की तस्वीरें लगाई गई थीं। इसमें जिन्ना की तस्वीर भी शामिल थी, जिसके नीचे लिखा था, जिन्ना पक्के राष्ट्रक्त थे लेकिन बाद में धर्म के आधार पर उन्होंने भारत का विभाजन करवाया।

    इस तस्वीर पर हंगामा हुआ तो बाद में इसे हटा लिया गया। लेकिन सोचने वाली बात है न कि एक ओर जिन्ना के नाम पर विरोधियों को घेरने का काम भाजपा खुद करती है, आडवानीजी का तो प्रधानमंत्री बनने का सपना ही जिन्ना के कारण कुचला गया, मगर संघ की सभा में जिन्ना को पक्का राष्ट्रभक्त बताया गया। संघ ने क्या होली की मस्ती में आकर देश के राष्ट्रवादियों के साथ ये मजाक किया था। इस मजाक में कम से कम उन राष्ट्रवादी पत्रकारों के बारे में तो सोचना चाहिए था कि वे इस खबर को कैसे कवर करेंगे, या फिर बहुत सी दूसरी खबरों की तरह इस पर भी कवर डालने की मशक्कत उन्हें करनी पड़ेगी। कमाल ये भी है कि इधर जिन्ना की तस्वीर अहमदाबाद में लगी थी, उधर भारत से एक मिसाइल पाकिस्तान में जा गिरी। एक देश की सीमा से दूसरे देश के क्षेत्र में मिसाइल का गिरना अच्छी बात नहीं है। लेकिन इस बात को भूल-चूक, लेनी-देनी वाले अंदाज में खत्म करने की कोशिश हो रही है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि तकनीकी खराबी के कारण ऐसा हो गया।

    उन्होंने इसकी उच्चस्तरीय जांच के आदेश भी दिए हैं। वैसे अमेरिका ने भी बता दिया है कि यह जानबूझ कर किया गया अटैक नहीं था। अब अमेरिका ने कहा है तो पाकिस्तान को मान ही लेना चाहिए। वैसे भी चाहे रूस-यूक्रेन का मामला हो या भारत-पाकिस्तान का, अमेरिका सबको अपना ही मामला मानता है। देखा जाए, तो हमसे ज्यादा वसुधैव कुटुम्बकम के सिद्धांत का पालन तो अमेरिका करता है।


    रहा सवाल पाकिस्तान का, तो मोदीजी को मिसाइल के बाद अब थैंक्यू और सॉरी दोनों का संदेश भी भेज देना चाहिए। पाकिस्तान कोई हमारा दोस्त तो है नहीं, जो नो सॉरी, नो थैंक्यू वाला हिसाब लागू हो। थैंक्यू इसलिए कि चुनावों में जिन्ना के नाम पर भाजपा को काफी मदद मिल जाती है और सॉरी गलती से मिसाइल भेजने के लिए। इसके बाद भी अगर मिसाइल की बात पर पाकिस्तान नाराज हो, तो उसे बुरा न मानो होली है, कह देना चाहिए। वैसे भी 10 मार्च से देश में होली काल चल रहा है। तो अभी किसी बात का बुरा भी लगे तो याद कर लेना चाहिए कि बुरा न मानो होली है।

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