- डॉ. हनुमन्त यादव
वर्ष 2020 में ग्लोबल जीएनपी अर्थात वैश्विक आर्थिक उत्पादन में 4.4 प्रतिशत की गिरावट का अनुमान है। इतनी भारी गिरावट 1930 की वैश्विक मंदी में भी नहीं रही। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि कोरोना की मार से विश्व के सभी देशों की अर्थव्यवस्थाएं चारों खाने चित हो गई हैं। उल्लेखनीय बात यह रही कि अमेरिका और यूरोप के उन्नत अर्थव्यवस्था वाले देशों की तुलना में चीन, भारत, ब्राजील, सरीखे उभरती अर्थव्यव्स्था वाले देशों के उत्पादन और रोजगार पर ऋ णात्मक असर कम रहा।
दुनिया के अन्य देशों के समान ही कोविड-19 ने वर्ष 2020 में भारतीय अर्थव्यवस्था के हर अंग को प्रभावित करते हुए विकास की रफ्तार धीमी ही नहीं, बल्कि गिरावट की ओर कर दी थी। यद्यपि भारतीय अर्थव्यवस्था ने पिछले 6 माह में कोरोना संकट से उबर कर आगे बढ़ना प्रारंभ कर दिया है किंतु उत्पादन और रोजगार की रफ्तार अभी भी धीमी बनी हुई है। ये निष्कर्ष वित्त मंत्रालय के प्रकाशन भारतीय आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 के हैं जिसे वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्तीय वर्ष 2021-22 के बजट को संसद में प्रस्तुत करने के एक दिन पहले संसद में प्रस्तुत किया था। भारतीय आर्थिक सर्वेक्षण को वित्त मंत्रालय के तत्वावधान में भारतीय सांख्यिकी संगठन द्वारा राज्यों के आर्थिक एवं सांख्यिकी विभाग के सहयोग तैयार किया जाता है। भारतीय आथिक सर्वेक्षण अर्थव्यवस्था के विभिन्न अंगों के क्षेत्र में विश्व के अन्य देशों से तुलनात्मक स्थिति भी दर्शाता है। इस प्रकार भारतीय आर्थिक सर्वेक्षण चालू वर्ष में अर्थव्यवस्था की वास्तविक स्थिति तथा अगले वर्ष के अनुमानों को प्रस्तुत करने वाला देश के सर्वाधिक विश्वसनीय प्रकाशनों में से एक है।
यहां पर मैं भारतीय आर्थिक सर्वेक्षण में प्रस्तुत भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न अंगों पर कोविड-19 द्वारा पहुंचाए गए घातक प्रभाव पर संक्षिप्त में चर्चा करना चाहता हूं। दुनिया के इतिहास में यह पहली बार हुआ है कि किसी महामारी ने पूरी दुनिया के देशों में जीवन और आजीविका का संकट निर्मित कर दिया। यद्यपि इस महामारी से बचाव के लिए भारत सहित दुनिया के कई देशों ने वैक्सीन का आविष्कार करके प्राथमिकता निर्धारित करते हुए चरणवार उपयोग प्रारंभ कर दिया है, किंतु यह वैक्सीन केवल बचाव के लिए है। यह महामारी कब और कैसे दुनिया से बिदा लेगी कोई निश्चित रूप से नहीं कह सकता। अब सुनने में आ रहा है कि कोविड-19 के साथी जीवाणु जो उससे भी अधिक ताकतवर है दुनिया के कुछ देशों में जन्म ले रहे हैं। इसका मतलब यह हुआ कि वर्ष 2021 में भी पूरी दुनिया के सभी में नागरिक मास्क पहने और सामाजिक दूरी बनाए रखते नजर आने वाले हैं।
वर्ष 2020 में ग्लोबल जीएनपी अर्थात वैश्विक आर्थिक उत्पादन में 4.4 प्रतिशत की गिरावट का अनुमान है। इतनी भारी गिरावट 1930 की वैश्विक मंदी में भी नहीं रही। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि कोरोना की मार से विश्व के सभी देशों की अर्थव्यवस्थाएं चारों खाने चित हो गई हैं। उल्लेखनीय बात यह रही कि अमेरिका और यूरोप के उन्नत अर्थव्यवस्था वाले देशों की तुलना में चीन, भारत, ब्राजील, सरीखे उभरती अर्थव्यव्स्था वाले देशों के उत्पादन और रोजगार पर ऋ णात्मक असर कम रहा। वैसे तो मानव को जीवनयापन के लिए रोजगार व्यवसाय सरीखे आजीविका का साधन होना जरूरी माना जाता है। किंतु यदि मानव जीवन और उसकी आजीविका के साधन में से किसी एक को चुनना पड़े तो किसे प्राथमिकता दी जानी चाहिए। एक राष्ट्र के रूप में भारत ने कोरोना संक्रमण के प्रारंभिक महीनों में अपने नागरिकों के जीवन को उनकी आजीविका के साधन की तुलना में प्राथमिकता दी जबकि विश्व के उन्नत और विकासशील अन्य देशों ने नागरिकों की आजीविका को प्राथमिकता दी थी। यही कारण है कि प्रति लाख जनसंख्या पर कोरोना से मौतों की संख्या भारत में नीची रही।
वर्ष 2018 से ही विश्व के उन्नत देशों में जीडीपी की रफ्तार धीमी होने के कारण वहां के अर्थशास्त्री उसे आर्थिक मंदी का संकेत मानकर सरकारों को उससे बचने के लिए राजकोषीय और मौद्रिक सुधारों की सलाह देने लगे थे। इसके विपरीत भारत में विमुद्रीकरण एवं जीएसटी को जल्दबाजी में लागू किए जाने से अर्थव्यवस्था को क्षति से 2018-19 में उबरी हुई अर्थव्यवस्था की जीडीपी को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वर्ष 2025 तक भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था वाला देश बनाने का दावा कर रहे थे। किंतु वर्ष 2020-21 के बजट प्रस्तुत किए जाने के 3 माह के अन्दर ही यह स्पष्ट हो गया था कि आगे आने दिनों में जीडीपी दर शून्य से नीचे गिरकर ऋ णात्मक रहने वाली है। अन्य देशों की सरकारों की भांति भारत में भी कोविड-19 से अर्थव्यवस्था में आई गिरावट के लिए केन्द्र सरकार उसी प्रकार के राजकोषीय उपाय और रिजर्व बैंक मौद्रिक उपाय अपना रही है जो अर्थव्यव्स्था को भयंकर आर्थिक मंदी से उबारने के लिए अपनाए जाते हैं।
ऑक्सफोर्ड ट्रैकर के अनुसार, पूरी दुनिया में भारत पहला देश था जिसने 24 मार्च से 31 मई 2020 तक एक सख्त लॉकडाउन लागू किया था। इस कड़े लॉकडाउन की वजह से भारत में लाखों लोगों की कोविड-19 से जान बचाई जा सकी। अनलॉक करने के बाद मॉस्क पहनने एवं सामाजिक दूरी नियम के कड़ाई से पालन करवाने के कारण भारत कोरोना-19 की दूसरी लहर से बचने में कामयाब रहा है। सितंबर 2020 के मध्य में संक्रमण के प्रकरण चरम पर पहुंच गए थे। उसके बाद से दैनिक संक्रमण प्रकरणों और दैनिक मौतों की संख्या में लगातार गिरावट आ रही थी। किंतु राज्यों में जरा सी भी लापरवाही होने पर कोविड-19 के संक्रमितों और उससे होने वाली मौतों की संख्या बढ़ने लगती है। महाराष्ट्र और केरल इसके ज्वलंत उदाहरण है।
वैसे तो वर्ष 2020-21 की सभी तिमाहियों में जीडीपी विकास दर ऋणात्मक रही है किंतु यदि सेक्टरवार विकास दर विकास दर देंखे तो आश्चर्यजनक ढंग से कृषि विकास दर गिरने की बजाय सदैव की भांति धनात्मक 3 प्रतिशत रही है। इस प्रकार भारत का कृषि उत्पादन कोविड-19 संक्रमण से बिल्कुल अछूता रहा है। सदैव की भांति उत्तर भारत के सिंचित क्षेत्रों में खरीफ और रबी मौसम में अन्य राज्यों की तुलना में उच्च उत्पादन हुआ है। कृषि सेक्टर से अलग भारत के उद्योग, सेवा एवं अन्य क्षेत्रों में 2019-20 वर्ष की तुलना में उत्पादन 10 से 20 प्रतिशत ऋ णात्मक रहा है जिसके कारण सकल घरेलू उत्पादन जीडीपी दर भी लगभग 10 प्रतिशत ऋणात्मक रही है।
वर्ष 2020-21 की तीसरी तिमाही से अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों के उत्पादन में सुधार हुआ है इस कारण वर्ष 2021-22 में भारत में कोविड-19 की मौजूदगी के बावजूद सकल घरेलू उत्पादन दर जीडीपी लगभग 3 से 4 प्रतिशत धनात्मक रहने वाली है, जो अमेरिका और यूरोप के उन्नत देशों की 1 से 2 प्रतिशत की तुलना लगभग दुगुनी रहने का अनुमान है। इस गंभीर चर्चा से अलग हल्की-फुल्की बात जो आश्चर्यजनक सत्य भी है कि कृषि कानूनों की वापसी की मांग को लेकर पिछले 3 महीने से धरनारत किसानों व उनके परिवार के बूढ़े, महिलाओं और बच्चों के द्वारा मास्क न पहनने और सामाजिक दूरी न बनाए रखने के बावजूद कोरोना उनको संक्रमित करने असफल रहा है।