- डॉ. हनुमन्त यादव
कोरोना संकट काल में विदेशी मुद्रा बाजार में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा वित्तीय स्थिरता, आर्थिक विकास के साथ मुद्रा स्फीति पर नियंत्रण की नीति अपनाए जाने से अर्थव्यवस्था का वैदेशिक क्षेत्र व्यवस्थित रहा। इसने रुपये के एकतरफा अधिमूल्यन को भी बहुत हद तक नियंत्रित किया। कोविड-19 जनित संकट काल में वैश्विक क्षेत्र में प्राप्त उपलब्धियां बहुत कुछ वर्ष 2021-22 में भी जारी रहने की संभावना है।
कोविड-19 महामारी ने वर्ष 2020 में पूरे विश्व में 2019 के तीसरे दशक की महामंदी के बाद मात्र कुछ माह में सबसे बुरी वैश्विक मंदी को जन्म दिया है जिससे अर्थव्यवस्थाओं के वैश्विक क्षेत्र में भयानक संकट की स्थिति निर्मित हो गई। संतोष की बात यह रही कि जिस प्रतिकूल आर्थिक प्रभाव की आशंका पहले व्यक्त की जा रही थी मार्च 2020 में उसकी तुलना में कम नुकसान होने की उम्मीद जताई जा रही है।
कोविड-19 जनित आर्थिक संकट के कारण विश्व के अधिकांश देशों के वैश्विक व्यापार में भारी गिरावट आई है। इन देशों में वस्तुओं की कीमतें कम हुई हैं और संकुचित बाहरी वित्तपोषण की स्थिति में चालू खाता शेष और विभिन्न देशों की मुद्राओं और विनिमय दरों पर अलग-अलग दुष्प्रभाव पड़े हैं। विश्व व्यापार संगठन डब्लू.टी.ओ. ने वर्ष 2020 में वैश्विक व्यापारिक व्यवसाय में 9.2 फीसदी कमी आने की उम्मीद जताई है तथा वर्ष 2021 में स्थिति में सुधार होने के कारण वैश्विक व्यापार में 8.3 फीसदी कमी आने का अनुमान जताया है।
वैदेशिक क्षेत्र में अर्थव्यवस्था के विदेशी व्यापार, भुगतान संतुलन खासकर चालू खाता शेष, विदेशी मुद्रा भंडार और विभिन्न देशों की मुद्रा विनिमय दरों को शामिल किया जाता है। भारत के संबंध में यह आश्चर्यजनक सत्य है कि विश्व के अधिकांश देशों से ठीक विपरीत कोविड-19 जनित आर्थिक संकट ने भारतीय अर्थव्यवस्था के वैदेशिक क्षेत्र के सभी घटकों को कमोबेश लाभान्वित किया है। विदेशी व्यापार के अंतर्गत दूसरे देशों से वस्तुओं का आयात तथा दूसरे देशों को वस्तुओं का निर्यात शामिल किया जाता है।
निर्यात की तुलना में वस्तुओं का आयात अधिक होने पर व्यापार घाटा होता है तो दूसरी ओर आयात की तुलना में निर्यात अधिक होने पर विदेशी व्यापार में लाभ होता है। भारत को स्वतंत्रता प्राप्ति के 72 साल के इतिहास में पहली बार विदेशी व्यापार में घाटा की बजाय मुनाफा हुआ है। इस प्रकार कोविड-19 को भारत के विदेशी व्यापार में इस कीर्तिमान का श्रेय जाता है। भारत ने पहली बार एक साथ आयात में कमी व निर्यात में बढ़ोतरी में सफलता प्राप्त की।
भारत ने दवाओं और अन्य फार्मा उत्पादों, सॉफ्टवेयर और कृषि व सहायक कृषि उत्पादों के निर्यात में उल्लेखनीय सुधार किया। भारत ने कोविड-19 जनित संकट के इस अवसर का उपयोग रणनीति बनाकर कुल निर्यात में फार्मा निर्यात की अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए किया। इससे भारत के दुनिया के 6 प्रमुख फार्मेसी निर्यातक देशों में शामिल होने की संभावना को इंगित किया। भारत ने चीन एवं अमेरिका से वस्तुओं के आयात में उल्लेखनीय कमी की। चीनी सीमा विवाद निर्मित करके सैनिक जमावड़े के विरोध स्वरूप चीन से वस्तुओं के आयात में व्यापार संगठन डब्लू.टी.ओ. की परवाह किए बिना भारी कटौती करके किया।
पिछले पांच वर्षों में सरकार ने निर्यात को बढ़ावा देने के लिए जो प्रयास किए गए उसमें- उत्पादन लिंन्क्ड प्रोत्साहन योजना, निर्यात उत्पादों पर शुल्क और कर की छूट; आरओडीटीईपी, व्यापार लॉजिस्टिक्स के बुनियादी ढांचे में सुधार और डिजिटल प्रयास प्रमुख थे। इस प्रकार भारत ने कोविड जनित इस संकट को एक सुनहरे अवसर के रूप में बदल डाला।
कोविड-10 जनित संकट का लाभ भारत को भुगतान संतुलन के क्षेत्र में भी प्राप्त हुआ है। वर्ष 2003 के 17 साल के अंतराल के बाद वर्ष 2020-21 में भारत चालू खाता शेष घाटा की बजाय अतिरेक में रहेगा। दूसरी ओर, पूंजी खाता शेष, मजबूत विदेशी प्रत्यक्ष निवेश एफडीआई और विदेशी पोर्टफोलियो निवेश एफपीआई प्रवाह से म•ाबूत हुआ है। भारत को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्रमुखत: मेक इन इंडिया कार्यक्रम की परियोजनाओं के लिए प्राप्त हो रहा है। वर्ष 2020-21 में लगभग 50 बिलियन डॉलर का शुद्ध प्रत्यक्ष विदेशी निवेश अनुमानित है जो पिछले साल 2019-20 की तुलना में 15 फीसदी अधिक रहेगा। चीन से आयात में कमी के बावजूद चीन आज भी भारत के लिए प्रमुख निर्यातक देश बना रहने के कारण वर्ष 2020-21 में भी भुगतान संतुलन चीन के पक्ष में बना रहेगा। भारत के भुगतान संतुलन पक्ष में बहुत बड़ा योगदान सेवाओं का निर्यात है जिसमें 49 प्रतिशत भुगतान सॉफ्टवेयर सेवाओं से प्राप्त होने की संभावना है।
कोविड-19 लॉकडाउन के बाद 27 मार्च 2020 को भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 386 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था, कोरोना संकटकाल में भी विदेशी मुद्रा भंडार हर माह बढ़ते हुए 29 जनवरी 2021 को 590 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया। भारत के विदेशी मुद्रा भंडार के इतिहास में पहली बार विदेशी मुद्रा भंडार 590 बिलियन डॉलर के स्तर तक पहुंचा है। मार्च 2021 में भी विदेशी मुद्रा भंडार 585 बिलियन डॉलर से 590 बिलियन डॉलर के बीच बने रहने की संभावना है। विदेश मुद्रा भंडार में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश एफपीआई प्रवाह का भी योगदान रहा है। वैसे तो विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों और विदेशी संस्थागत निवेशकों को सुख का साथ माना जाता है, इनका निवेश उन्हीं देशों में होता है जिनका वित्तीय आधार मजबूत होता है। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा वर्ष 2020-21 में भारतीय इक्विटी शेयरों की ताबड़तोड़ खरीदी से बाम्बे स्टॉक एक्सचेंज का संवेदी सूचकांक जो मार्च 2020 में 42,000 बिन्दु पर था कोरोना काल में बढ़ते-बढ़ते मार्च 2021 में पहली बार 51,000 बिन्दु पार कर ऐतहासिक कीर्तिमान बनाया है।
कोरोना संकट काल में विदेशी मुद्रा बाजार में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा वित्तीय स्थिरता, आर्थिक विकास के साथ मुद्रा स्फीति पर नियंत्रण की नीति अपनाए जाने से अर्थव्यवस्था का वैदेशिक क्षेत्र व्यवस्थित रहा। इसने रुपये के एकतरफा अधिमूल्यन को भी बहुत हद तक नियंत्रित किया। कोविड-19 जनित संकट काल में वैश्विक क्षेत्र में प्राप्त उपलब्धियां बहुत कुछ वर्ष 2021-22 में भी जारी रहने की संभावना है। अब भारत के समक्ष एक बहुत बड़ी चुनौती यह रहेगी कि भारत ने वैदेशिक क्षेत्र में जो उपलब्धियां हासिल की हैं, पूरी दुनिया से कोविड-19 की दूसरी लहर से समाप्त होकर कोरोना संक्रमण का नाम निशान मिट जाने के बाद भी इन उपलब्धियों को कायम रखने की होगी। चीन सरीखे महत्वांकाक्षी देशों द्वारा पुन: आक्रमक विदेशी व्यापार नीति अपनाई जानी तय है इसलिए भारत को रणनीति बनाकर इन उपलब्धियों को कायम रखने के लिए उत्पादन लिंन्क्ड प्रोत्साहन योजना, निर्यात उत्पादों पर शुल्क और कर की छूट; आरओडीटीईपी, व्यापार लॉजिस्टिक्स के बुनियादी ढांचे में सुधार और डिजिटल प्रयासों के विस्तार के साथ आक्रमक होकर कार्य करने की जरूरत पड़ेगी।