26 दिसम्बर से कांग्रेस कर्नाटक के बेलगावी से नवसत्याग्रह की शुरुआत करने जा रही है। ठीक 100 वर्ष पहले 26-27 दिसम्बर को इसी बेलगावी में कांग्रेस का जो अधिवेशन हुआ था, उसकी अध्यक्षता महात्मा गांधी ने की थी। यह बापू के जीवन काल का एकमात्र अधिवेशन था जिसकी उन्होंने सदारत की थी। उससे प्रेरित कांग्रेस ने इस अधिवेशन के लिये वैसे तो बेलगावी का चयन काफी पहले से कर रखा था; और प्रदेश कांग्रेस ने तैयारियां भी प्रारम्भ कर दी थीं, हालिया सियासी घटनाक्रम ने इसका महत्व इस बात से कहीं अधिक बढ़ा दिया है कि यह 100 साल पूर्व हुए सम्मेलन की अगली कड़ी की तरह है। जिन परिस्थितियों में यह अधिवेशन हो रहा है और जैसे निर्णयों की अपेक्षा है, उससे कहा जा सकता है कि इसकी महत्ता प्रतीक से बढ़कर वास्तविकता के स्तर पर है। मई 2022 में हुए उदयपुर नव संकल्प शिविर के फैसलों ने जैसे निर्जीव व निस्तेज कांग्रेस में नये प्राण फूंके थे, वैसी ही ताकत बटोरने की अपेक्षा कांग्रेस को बेलगावी अधिवेशन से है।
इस अधिवेशन की महत्ता जानने के पहले उदयपुर अधिवेशन सम्मेलन के प्रभावों तथा वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य को समझना आवश्यक है। 2019 में लोकसभा चुनाव तथा उसके आगे-पीछे गिने-चुने प्रदेशों को छोड़कर ज्यादातर विधानसभा चुनावों में पराजित कांग्रेस भितरघातों तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सतत शक्तिशाली होती भारतीय जनता पार्टी द्वारा इस कदर बुलडोज़ हो चुकी थी कि संगठन में टूट-फूट व बिखराव का मंजर था। नेतृत्व को कोई भी ऐरा-गैरा चुनौती देता या सवाल उठाता रहता था। जी-23 के नाम से बाकायदा एक अंदरूनी मंच तैयार हो गया था जो शीर्ष नेतृत्व की खुली आलोचना करता था। निराशा का स्तर ऐसा रहा कि 2019 के लोकसभा चुनाव में बेहद खराब प्रदर्शन से व्यथित राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद त्याग दिया तथा दल को सम्हालने के लिये सोनिया को फिर सर्वोच्च कुर्सी पर लौटना पड़ा था। बड़े पैमाने पर या तो उसकी सरकारें गिराई जाती रहीं या फिर संगठन छोड़कर उसके लोग भाजपा में प्रविष्ट होते गये। पार्टी को तोड़ने के लिये धन बल से लेकर पद का लालच और केन्द्रीय जांच एजेंसियों का डर दिखाया जाता।
मोदी व उनके मुख्य सिपहसालार केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के 'ऑपरेशन लोटस' ने सारी लोकतांत्रिक व संसदीय मर्यादाएं तार-तार कर दीं। 2014 में जिस 'कांग्रेस मुक्त भारत' का नारा मोदी ने दिया था, उसका विस्तार करते हुए शाह के सहयोग से पीएम 'विपक्ष मुक्त भारत' की योजना के काम में जुट गये। स्वीकार करना होगा कि इसमें उन्हें काफी सफलता मिली। कांग्रेस समेत देश के तमाम गैर भाजपायी राजनीतिक दलों में मुर्दनी छा गयी। तमाम प्रशासनिक नाकामियों के बाद भी भाजपा इतनी मजबूत हो गयी कि देश की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक ताकतें उसके हाथों में आती चली गयीं। मजबूत प्रतिपक्ष के अभाव में मोदी निरकुंश हो गये। फ्लॉप योजनाओं के अलावा भ्रष्टाचार चरम पर पहुंचा। नेहरू खानदान तथा कांग्रेस की आलोचना की आड़ में मोदी हर जवाबदेही से बचते रहे। धु्रवीकरण के उद्देश्य से भाजपा द्वारा देश में नफ़रत व हिंसा का ऐसा विषाक्त माहौल बना दिया गया कि अब पूरा सामाजिक ताना-बाना बिखर चुका है। संवैधानिक प्रणाली पर जमकर हमले किये गये। यह सारा राजनीतिक लाभ उठाने के लिए किया जाता रहा। लोकतांत्रिक व्यवस्था में यकीन करने वाले लोग, शक्तियां एवं संगठन देश में दक्षिणपंथी उभार को लाचारगी से तकने के अलावा कुछ भी नहीं कर पा रहे थे।
उदयपुर ने उस अंधेरे में रोशनी फैलानी शुरू की। उसमें लिये गये निर्णय के अनुरूप राहुल गांधी ने कन्याकुमारी से श्रीनगर (कश्मीर) तक 'भारत जोड़ो यात्रा' के नाम से ऐतिहासिक पैदल मार्च किया- 7 सितम्बर, 2022 से 30 जनवरी, 2023 तक। इसका उद्देश्य घृणा व हिंसा के वातावरण को खत्म करना था। फिर साम्प्रदायिक हिंसा की लपटों में घिरे मणिपुर से मुम्बई तक वाहन व पैदल की मिली-जुली यात्रा की- 14 जनवरी से 18 मार्च, 2023 तक। दोनों को मिलाकर राहुल ने लगभग 10 हजार किलोमीटर से ज्यादा का फासला नापा और करोड़ों लोगों से मिले। इन यात्राओं से स्वयं राहुल तथा कांग्रेस की छवि में बड़ा सुधार आया जिसे देश की कार्पोरेट लॉबी द्वारा प्रायोजित एक सुनियोजित व खर्चीले अभियान के तहत भाजपा के प्रचार तंत्र ने विकृत किया था। इन यात्राओं के दौरान सामने आया कि मोदी किस तरह से देश को कमजोर कर अपने मित्रों की झोलियां दौलत से भर रहे हैं। उनकी लूट-खसोट भरी शासन प्रणाली का भी पर्दाफाश हो गया। राहुल व कांग्रेस को कमजोर करने के लिये मोदी-शाह ने कई छल-प्रपंच किये लेकिन कांग्रेस का हौसला व ताकत इतनी हो चुकी थी कि उसने लोकसभा में अपनी सदस्य संख्या को दोगुना किया, कुछ राज्य जीते एवं प्रतिपक्षी गठबन्धन इंडिया को खड़ा किया। भाजपा की सरकार तो बनी और मोदी प्रधानमंत्री भी बने, लेकिन उन्हें एनडीए के अन्य दलों का समर्थन लेना पड़ा।
बेलगावी अधिवेशन कांग्रेस की उस कहानी को आगे बढ़ायेगा जो उदयपुर अधिवेशन में लिखनी शुरू की गयी थी। पहले के मुकाबले मोदी कमजोर तो हैं परन्तु उनकी बौखलाहट और अहंकार अब भी आसमान पर है। इसका नज़ारा 20 दिसम्बर को खत्म हुए संसदीय अधिवेशन में देखने को मिला। अमित शाह को संविधान निर्माता बाबा साहेब अंबेडकर का अपमान करने के बावजूद जिस तरह से बचाया जा रहा है, उसे कांग्रेस ने बड़ा विमर्श बना दिया है। सड़क से संसद तक बड़ी लड़ाई उसने इस मुद्दे पर लड़ी है। बेलगावी अधिवेशन के लिये 'जय बापू-जय भीम-जय संविधान' का नारा देकर कांग्रेस ने देशव्यापी लड़ाई छेड़ने के संकेत दे दिये हैं जिसकी घोषणा इस अधिवेशन में हो सकती है। वैसे भी संविधान को बचाने की लड़ाई उसने पहले ही छेड़ रखी है।