• भूपेश बघेल के राजनैतिक मॉडल को कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर अपनाए!

    2018 में कांग्रेस को छग के साथ मध्यप्रदेश व राजस्थान में भी सफलता मिली थी

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    - डॉ. दीपक पाचपोर

    2018 में कांग्रेस को छग के साथ मध्यप्रदेश व राजस्थान में भी सफलता मिली थी। मप्र की सरकार तो दलबदल का शिकार हो गयी, राजस्थान की सरकार बचाने के लिये कांग्रेस जद्दोजहद करती रहती है। कारण है वहां के सीएम अशोक गहलोत और उस पद के प्रबल आकांक्षी सचिन पायलेट के बीच रस्साकशी। इधर बघेल ने ऐसी मजबूत सरकार गठित की है कि उसे तोड़ना भाजपा के लिये कतई आसान नहीं। 90 की संख्या वाले सदन में कांग्रेस के पास 71 सदस्य हैं।

    लगभग चार हजार किलोमीटर के एक बेहद सफल पैदल मार्च के बाद भी उत्तर-पूर्व के तीन राज्यों के हुए विधानसभा चुनाव में अगर कांग्रेस हारती है तो इसका यह अर्थ नहीं है कि 'भारत जोड़ो यात्रा' नामक कवायद बेकार या असरहीन हो गयी। हालांकि यह पहले से देखने की उत्सुकता तो थी कि क्या कांग्रेस की ऐतिहासिक व अत्यंत सफल यात्रा उसके पक्ष में मतदान करा सकने लायक हो पाई है या नहीं? इसी साल अब बचे 6 (जम्मू-कश्मीर में हुए तो 7) राज्यों में होने वाले विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनाव में इस यात्रा का सुफल उसे मिलता है या नहीं- यह भी देखे जाने की उत्सुकता सभी को रहेगी।

    त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड में भाजपा की पहले के मुकाबले कम हुई सीटों के बाद भी कांग्रेस द्वारा एक भी प्रदेश में सरकार न बना पाने के बाद अब यह सोचे जाने की आवश्यकता है कि क्या कांग्रेस को ऐसा राजनैतिक मॉडल चाहिये जो उसे जीत दिलाए। ऐसा मॉडल, जो न केवल कांग्रेसियों को एकजुट रखे, वरन उसके किसी भी विरोधी दल की सरकार बने तो उसके खिलाफ तगड़ा हल्ला बोले, अपनी सरकार बने तो उसे टूट-फूट से बचाये और विधायकों की खरीद-फरोख्त को नाकाम कर दे। केन्द्रीय जांच एजेंसियों से मुकाबला करे और साथ ही ऐसी नीतियां बनाए, जो लोगों पर स्थायी व सकारात्मक असर डाले। पूरे देश पर नज़र डालें तो निश्चित ही ऊंगली छत्तीसगढ़ पर रखनी होगी। यहां कांग्रेस ने ऐसा ही राजनैतिक मॉडल विकसित किया है जो सफल हुआ है।

    डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व में 3 कार्यकाल पूरी करने वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार को अपदस्थ करने के लिये भूपेश बघेल ने तभी से कमर कस ली थी, जब 2014 में उन्हें प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था। मई, 2013 में हुए झीरम घाटी कांड के कारण कांग्रेस के अनेक बड़े नेता मारे गये थे और 2016 में उनकी पार्टी के एक प्रमुख नेता व भूतपूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने अलग पार्टी बना ली थी। बघेल ने प्रदेश में कई आंदोलन खड़े कर संगठन को पुनर्जाग्रत किया। उन्हें अनेक मुश्किलों का सामना करना पड़ा। यहां तक कि जेल भी जाना पड़ा था। मजबूत भाजपा संगठन व रमन सिंह सरकार के विरुद्ध काडर को खड़ा करना कठिन था पर उनके नेतृत्व में ऐसा हो सका। 2018 में जब कांग्रेस जीती तो वे नैसर्गिक उम्मीदवार बने। मुख्यमंत्री बनने पर इसके पहले वे ठीक से काम शुरु कर पाते, कोविड-19 ने पांव पसारे। सरकार, प्रशासन और संगठन को उन्होंने सक्रिय किया तथा अपनी प्रशासकीय कुशलता का प्रदर्शन किया। अकेला प्रदेश बना जो कोरोना में भी अच्छी विकास दर को बनाये रख सका।

    सरकार के रूप में उन्होंने कई अभिनव योजनाओं को क्रियान्वित किया है। नरवा गरुवा घुरवा बारी योजना में ग्रामीण संसाधनों को पुनर्जीवित किया गया। मवेशियों को हर गांव में एक सहूलियत भरा स्थान प्रदान करने के लिये 'गौठान' योजना लाई गयी। प्रदेश में आज ग्रामीण स्तर पर बने 10 हजार से अधिक गौठान स्वसहायता समूहों के जरिये गोबर खरीदी और वर्मी खाद बनाने के केन्द्र हैं। पूर्ववर्ती सरकार के मुकाबले बघेल ने अपनी नीतियों को शहर केन्द्रित व वृहद उद्योग आधारित न कर ग्राम केन्द्रित व कृषि आधारित बनाकर किसानों को पार्टी से जोड़ा है। राज्य में 300 ग्रामीण औद्योगिक केन्द्र बनाने का फैसला भी पार्टी का मताधार बढ़ाने में सफल हो सकता है। बघेल ने लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को साकार किया है। यही कारण है कि उनके नेतृत्व में लड़े सभी विधानसभा उपचुनावों में कांग्रेस जीती है। लगभग सभी महानगरपालिकाओं में भी कांग्रेस का ही प्रशासन हैं। जोगी की बनाई जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ की ताकत नाममात्र की रह गयी है। उनका गढ़ गौरेला-मरवाही-पेंड्रा ध्वस्त हो चुका है।

    ऐसे समय में जब अधिकतर कांग्रेसी नेता, विधायक-सांसद, वर्तमान व पूर्व मुख्यमंत्री केन्द्रीय जांच एजेंसियों के खिलाफ या तो चुप हैं अथवा धीमी आवाज में बोल रहे हैं, भूपेश उन एजेंसियों की ज़द में रहकर भी उन्हें ललकार रहे हैं। सत्ता व संगठन से जुड़े या कई नज़दीकियों के खिलाफ चल रहे आयकर, प्रवर्तन निदेशालय आदि के छापों और कई अपनों को जेलों में जाता देखकर भी बघेल उनसे भिड़ंत मोल ले रहे हैं। राज्य भर में ईडी के खिलाफ प्रदर्शन तक हुए हैं। राहुल गांधी के नेतृत्व में जिस प्रकार उनका दल भाजपा एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा के खिलाफ खुली लड़ाई मोल लिये बैठा है, उस मोर्चे पर भी भूपेश आगे हैं। उनका तेवर आक्रामक होता है। उन्हें जब जाने से रोका जाये तो वे लखनऊ एयरपोर्ट के फर्श पर बैठकर सत्याग्रह कर देते हैं।

    केन्द्रीय जांच एजेंसियां ही नहीं, अपने लगभग साढ़े चार वर्ष के कार्यकाल में बघेल सरकार को राजभवन से भी कई बार लोहा लेना पड़ा। अनेक मुद्दे ऐसे आये हैं, जब पूर्ववर्ती राज्यपाल सुश्री अनुसूईया उइके के साथ उनका टकराव होता रहा लेकिन सरकार के मुखिया के रूप में वे उनसे भिड़ते रहे और ज्यादातर में अपने प्रस्तावों पर सहमति पाने में कामयाब भी रहे। यही आक्रामकता कांग्रेस की ज़रूरत है। यही कारण है कि देश भर में सम्भवत: वे अकेले ऐसे नेता हैं जो सोनिया गांधी, राहुल एवं प्रियंका तीनों के ही एक विश्वासपात्र हैं। जी-23 के समय भी वे शीर्ष नेतृत्व के साथ खड़े रहे जिसके कारण उनकी विश्वसनीयता में कभी भी गिरावट नहीं आई।

    2018 में कांग्रेस को छग के साथ मध्यप्रदेश व राजस्थान में भी सफलता मिली थी। मप्र की सरकार तो दलबदल का शिकार हो गयी, राजस्थान की सरकार बचाने के लिये कांग्रेस जद्दोजहद करती रहती है। कारण है वहां के सीएम अशोक गहलोत और उस पद के प्रबल आकांक्षी सचिन पायलेट के बीच रस्साकशी। इधर बघेल ने ऐसी मजबूत सरकार गठित की है कि उसे तोड़ना भाजपा के लिये कतई आसान नहीं। 90 की संख्या वाले सदन में कांग्रेस के पास 71 सदस्य हैं। हालांकि यहां एक वरिष्ठ मंत्री टीएस सिंहदेव द्वारा कई बार 'ढाई-ढाई वर्ष का सीएम' का फार्मूला उठाया जाता रहा लेकिन बघेल असंतोष के उभरने या उसे भाजपा द्वारा भुनाने की कोशिशों को मात देते गये। उस फार्मूले का अब कोई नामलेवा भी नहीं। खुद सिंहदेव इस बार चुनाव न लड़ने के संकेत दे चुके हैं जो बतलाता है कि भूपेश ही शक्तिमान बने रहेंगे। कांग्रेस को बतौर सीएम सभी राज्यों में ऐसे चेहरे उतारने चाहिये जो संगठन के प्रति पूर्णत: वफादार हों। ऐसे ही लोग ऐसी सरकारें बना सकते हैं जो भाजपा की राजनीति का शिकार न हों और पार्टी अधिक विधायक लाकर भी राज्य की सरकारें न गंवाए। पिछले चुनाव में कांग्रेस ने छग में अधिकतर पार्टी के लिए कटिबद्ध प्रत्याशियों को ही उतारा था- ऐसा ही शीर्ष नेतृत्व देशव्यापी स्तर पर सुनिश्चित करे।

    भूपेश बघेल निर्मित प्रदेश कांग्रेस राजनैतिक मॉडल त्रिकोणीय है- एकजुट संगठन निर्मित स्थिर सरकार, कल्याणकारी योजनाओं का निर्माण व उसका सफल क्रियान्वयन तथा विरोधियों से भिड़ने की बेखौफ तत्परता। कांग्रेस को अगर पुनर्जीवित होना है और आगामी चुनाव जीतने हैं तो उसे सभी राज्यों में तथा राष्ट्रीय स्तर पर इस फार्मूले को अपनाना चाहिये। हालांकि अब देर तो हो चुकी है परन्तु छत्तीसगढ़ के इस कांग्रेसी नुस्खे पर आधारित घोषणापत्र बनाकर वह चुनावी मैदान में उतरे तो सफलता मिल सकती है। वह सरकारें बना पाएगी या नहीं, यह गारंटी तो कोई नहीं ले सकता परन्तु पहले के मुकाबले उसकी स्थिति बेहतर रहेगी- यह तय है।

    2018 का चुनाव बघेल ने आखिरी वक्त में किसानों को कर्ज माफी, आकर्षक न्यूनतम समर्थन मूल्य और बोनस के ऐलान के बल पर जीत लिया था। छग का सोमवार को प्रस्तुत भूपेश का अपने कार्यकाल का अंतिम बजट जनहित को रेखांकित करता हुआ अगला चुनाव जीतने के लिये नफासत से बुना गया है, जिसमें बेरोजगारी भत्ता, न्याय योजनाओं, शिक्षा, स्वास्थ्य, गरीबों के लिये आवास आदि पर बड़ी राशियां आबंटित की गयी हैं। कतिपय कमियों ओऔर बहुत कुछ किये जाने की गुंजाइशों के बावजूद कांग्रेस को भूपेश का राजनैतिक मॉडल राष्ट्रीय स्तर पर अपनाने की आवश्यकता है, जो छत्तीसगढ़ में आजमाया हुआ है; और कारगर भी सिद्ध हुआ है।
    (लेखक 'देशबन्धु' के राजनीतिक सम्पादक हैं)

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