मध्यप्रदेश में मंगलवार को एक बड़ा सड़क हादसा हुआ। सीधी से सतना जा रही एक बस बाणसागर नहर में गिर गई। बस में 55-60 लोग सवार थे, जिसमें कम से कम 38 लोगों की मौत की खबर सामने आई है। नहर इतनी गहरी थी कि पूरी बस उसमें डूब गई और बड़ी मुश्किल से राहत दल ने उसे निकाला, कुछ लोगों को जिंदा निकाला गया, लेकिन बहुतों के डूबने की आशंका है।
बताया जा रहा है कि बस छुहिया घाटी में दो दिन से लगे जाम की वजह से अपने तय रूट से ना जाकर दूसरे रास्ते से जा रही थी, और साइड लेने के दौरान सड़क से लगी नहर में जा गिरी। इस दुर्घटना में कई युवा सपने भी डूब गए। क्योंकि परीक्षा देने जा रहे बहुत से विद्यार्थी इसमें सवार थे, वर्ना अमूमन सुबह के वक्त बस खाली रहती है, ऐसा जानकारों ने बताया है। आज मध्यप्रदेश में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत गृहप्रवेशम कार्यक्रम आयोजित होना था, लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस दुख की घड़ी में इसे स्थगित कर दिया। उन्होंने राहत व बचाव कार्य को सुचारू चलाने का भरोसा जनता को दिलाया है साथ ही प्रभावितों के लिए मुआवजे का ऐलान भी किया है।
मध्यप्रदेश की इस घटना से पहले आंध्रप्रदेश और महाराष्ट्र में भी बड़ी दुर्घटनाएं दो-तीन दिन पहले हुई हैं। सोमवार को महाराष्ट्र के जलगांव में ट्रक पलटने से 15 मजदूरों की मौत हो गई, जबकि आंध्रप्रदेश में रविवार को कर्नूल जिले में नेशनल हाईवे 44 पर एक बस और ट्रक में भिड़ंत होने से 14 लोगों की मौत हो गई थी। इन हादसों पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शोक व्यक्त किया था और प्रभावितों के लिए मुआवजे का ऐलान भी किया था।
एक ओर देश में अधोसंरचना विकास की योजनाएं बनाई जाती हैं। चौड़ी सड़कें, एक-दूसरे को काटते फ्लाईओवर, जंगलों का सफाया कर बनाए गए राजमार्गों पर देश के रफ्तार भरने के सपने दिखाए जाते हैं। लेकिन इन सपनों को कुचलने वाली दुर्घटनाओं पर रोक लगाने के ठोस उपाय नहीं किए जाते। ऐसा नहीं है कि सरकार इस कड़वी हकीकत से वाकिफ नहीं है। कुछ दिन पहले ही केन्द्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने सेव लाइफ फाउंडेशन के सहयोग से तैयार विश्व बैंक की रिपोर्ट 'सड़क दुर्घटनाओं में आकस्मिक अभिघात एवं दिव्यांगता: भारतीय समाज पर बोझ' जारी करते हुए कहा था कि सड़क दुर्घटनाएं कोविड-19 महामारी से अधिक खतरनाक हैं।
श्री गडकरी ने कहा था कि दुर्घटनाओं से समाज और राष्ट्र पर जबरदस्त बोझ पड़ता है और सड़क दुर्घटना में किसी व्यक्ति की मौत होने से 91.16 लाख रुपये का नुकसान होने का अनुमान है। उन्होंने भरोसा दिलाया था कि उनका मंत्रालय इस चिंताजनक परिदृश्य को लेकर गरीबों के हितों की रक्षा के लिए नीतियां बनाएगा और कई सुधारात्मक कदम उठाएगा।
देश को इन सुधारात्मक कदमों की बड़ी बेसब्री से प्रतीक्षा है, क्योंकि विश्व बैंक की रिपोर्ट बताती है कि सड़क दुर्घटनाओं में हताहत होने वाले लोगों में सबसे ज्यादा भारत के होते हैं। देश में हर घंटे 53 सड़क दुर्घटनाएं हो रही हैं और हर चार मिनट में एक मौत होती है। हैरत की बात है कि भारत में दुनिया के सिर्फ एक प्रतिशत वाहन हैं, लेकिन सड़क दुर्घटनाओं में दुनिया भर में होने वाली मौतों में भारत का हिस्सा 11 प्रतिशत है। रिपोर्ट के अनुसार, पिछले एक दशक में भारतीय सड़कों पर 13 लाख लोगों की मौत हुई है और इनके अलावा 50 लाख लोग घायल हुए हैं। रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में सड़क दुर्घटनाओं के चलते 5.96 लाख करोड़ रुपये यानी सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 3.14 प्रतिशत के बराबर नुकसान होता है। सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के द्वारा हाल ही में किये गये एक अध्ययन के मुताबिक सड़क दुर्घटनाओं का शिकार लोगों में 76.2 प्रतिशत ऐसे हैं, जिनकी उम्र 18 से 45 साल के बीच है। यानी इन दुर्घटनाओं के कारण देश को न केवल आर्थिक नुकसान हो रहा है, बल्कि युवा शक्ति का ह्रास भी हो रहा है।
सितंबर 2019 से राज्यों में सड़क सुरक्षा पर केंद्रित मोटर वाहन अधिनियम लागू है, जिसमें यातायात नियम के उल्लंघन पर सख्ती बरती जाती है। इस वजह से 2019 में देश में सड़क दुर्घटनाओं की कुल संख्या में 3.86 प्रतिशत की कमी आई है। लेकिन फिर बीते तीन दिनों में हुए हादसे यह याद दिलाते हैं कि अभी यातयात सुरक्षा के लिए और बहुत कुछ करना बाकी है। इसमें केवल सरकार के नियम बनाने से स्थिति नहीं बदलेगी, जनता को भी अपना रवैया बदलना पड़ेगा। दुर्घटनाओं का कारण चाहे जो हो, उसका खामियाजा इंसान की जिंदगी को चुकाना पड़ता है। इसलिए सावधानी जरूरी है।