- डॉ. दीपक पाचपोर
पिछले 8 वर्षों में जो शिक्षा और रोजगार की स्थिति बनाई गई है उससे नौजवान पीढ़ी इतनी कमजोर हो गई है कि वह जनविरोधी नीतियों का विरोध ही नहीं कर पा रही है। सभी जानते हैं कि सरकारें युवाशक्ति से सर्वाधिक घबराती हैं। भारत दुनिया का सर्वाधिक युवाओं वाला देश है। उसे शक्तिशाली बनाये रखना सरकार के लिये कभी सुरक्षित नहीं होगा।
जैसी कि उम्मीद थी, 7 सितम्बर को कन्याकुमारी से निकली राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो यात्रा' के सकारात्मक परिणाम दिखने लगे हैं। 24 दिसम्बर को दिल्ली में कुछ दिनों तक ठहरने के बाद यह यात्रा 3 जनवरी, 2023 को जब फिर से आगे के लिए शुरू होगी, निर्णायक व फलदायी साबित हो सकती है। अब तक 9 राज्यों से गुजरने के दौरान राहुल को जो जनसमर्थन मिला है, उससे कहा जा सकता है कि अगला चरण सर्वाधिक महत्वपूर्ण साबित जा रहा है। बहुत खास मकसद से राहुल गांधी के जरिये एक परिवार, सम्पूर्ण कांग्रेस और समग्र स्वतंत्रता आंदोलन के असली नायकों को जिस तरह से बदनाम करने का षड्यंत्र रचा गया, वह न केवल बड़े पैमाने पर बेनकाब हुआ है बल्कि राहुल समेत पार्टी की छवि व्यापक तौर पर सुधरी है। सत्ता पाने और आर्थिक ताकत बटोरने के लिये किस प्रकार से अनेक झूठ और फरेब रचकर जनता को बरगलाया गया, यह भी सामने आ गया है। उम्मीद की जा सकती है कि श्रीनगर (जहां पहुंचकर तिरंगा झंडा फहराने का इस यात्रा का संकल्प है) पहुंचने के लिये जितने राज्य व दूरी बची हुई है, उसे पार करते-करते छद्म मिथक टूटकर बिखर जाएंगे और वे लोग भी पूरी तरह से बेनकाब हो जाएंगे जिन्होंने क्षुद्र उद्देश्यों के लिये भारत को तोड़कर रख दिया है। नफ़रत पर प्रेम की जीत भारतीय राजनीति में बड़े बदलाव लेकर आएगी।
ऐसा सोचने के अनेक कारण हैं। अगर यहीं से शुरू करें कि जब राहुल गांधी ने यात्रा प्रारम्भ की थी तो उनकी यह कहकर आलोचना की गई थी कि 'भारत टूटा ही कहां है, जिसे राहुल जोड़ने निकले हैं।' इसे कहने वाले असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा थे। कभी कांग्रेस में ही रहते हुए राहुल के विश्वासपात्र रहे हिमंता ने भारतीय जनता पार्टी में शामिल होकर आखिरकार सीएम का पद पा लिया। ईसाइयों व मुसलमानों के खिलाफ आग उगलने वाले बिस्वा सरमा ने अब उन अधिकारियों के प्रति नाराजगी जतलाई है जो राज्य में धर्म के आधार पर नागरिकों की शिनाख्त कर रहे थे। उन्होंने कहा कि असम में सभी लोग मिल-जुलकर रहना जानते हैं। यह यात्रा का ही प्रभाव है। राहुल का उपहास भी उड़ाया गया था कि वे ज्यादा लम्बा नहीं चल पाएंगे; और खासकर क्रिसमस तो वे यूरोप में ही मनाएंगे। दिल्ली में रहकर उन्होंने इस अनुमान को भी गलत ठहरा दिया है। जिस टी शर्ट को लेकर सोशल मीडिया पर उनका मजाक उड़ाया जा रहा था, आज वही उनकी शारीरिक मजबूती का इस मायने में परिचायक बन गया है क्योंकि इस कड़ाके की ठंड में भी वे उसी में चलते रहे। यहां तक कि जब 26 दिसम्बर को वे दिल्ली स्थित पूर्व प्रधानमंत्रियों के समाधि स्थलों में गये तो वे न सिर्फ उसी टी शर्ट में थे, बल्कि नंगे पांव भी रहे।
महात्मा गांधी समेत कांग्रेस के प्रधानमंत्रियों (जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी व राजीव तथा लालबहादुर शास्त्री) के समाधि स्थल पर तो वे गये ही, उन्होंने चौधरी चरण सिंह (भारतीय लोक दल) व बाबू जगजीवन राम (जो 1977 में कांग्रेस छोड़कर मोरारजी देसाई सरकार में मंत्री बने थे) को भी श्रद्धांजलि दी। इतना ही नहीं, वे भाजपा के शिखर पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी की समाधि पर भी गये जिनकी विचारधारा से वे लड़ रहे हैं। दूसरी तरफ यह बात भी सामने आई है कि अपने प्रधानमंत्री रहने के दौरान 8 वर्ष में कभी भी नरेन्द्र मोदी ने ऐसी श्रद्धांजलियां नहीं दीं। इस तरह देखें तो नफरत व प्रेम के बीच का अंतर राहुल स्पष्ट कर रहे हैं, जो भारत जोड़ो यात्रा का प्रमुख उद्देश्य है।
इस यात्रा के दौरान राहुल द्वारा जिन दो वर्गों को पूरी तरह से नंगा किया जा रहा है, वह भी बेहद महत्वपूर्ण व आवश्यक है। पहला वर्ग उन उद्योगपतियों का है जो भारतीय जनता पार्टी और वह भी नरेन्द्र मोदी से अपनी नजदीकियों के बल पर अपनी तिजोरियां तो भर रहे हैं, खुद की समृद्धि के लिए नागरिकों व देश की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से तबाह कर रहे हैं। यह आज के वक्त में इसलिए बेहद साहस का काम है, क्योंकि मौजूदा दौर कारोबारियों की शक्ति का काल है- भारत ही नहीं वरन दुनिया भर में। सम्पूर्ण विश्व में उद्योगपतियों और कारोबारियों ने किस प्रकार से गंद फैला रखी है, यह किसी से छिपा नहीं है लेकिन उनकी राजनीति पर जो पकड़ है और वे जिस तरह से सत्ताओं को अपने इशारों पर नचाते हैं, उसके खिलाफ बोलने की कोई हिम्मत नहीं दिखाता। राहुल ने यह काम किया है क्योंकि लोगों व विभिन्न वर्गों के बीच घृणा फैलाने में इन वर्गों का भी हाथ है। हालांकि अपने भाषणों और विख्यात अर्थशास्त्री रघुराम राजन के साथ संवाद में उन्होंने स्पष्ट किया है कि वे पूंजीवाद के विरुद्ध नहीं वरन एकाधिकार के खिलाफ हैं।
ऐसे ही, उन्होंने इस पूरे रास्ते जिस प्रकार से गोदी मीडिया से सीधी लड़ाई मोल ली है, वह भी तारीफ के योग्य है क्योंकि अब यह साबित हो गया है कि भारत का पूरा मीडिया नफरत की फैक्ट्री बन गया है। इसके लिये खबरों व तथ्यों को तोड़ा-मरोड़ा गया और लोगों के बीच भरपूर घृणा फैलाई गई है। राहुल गांधी ने बार-बार खुलेआम कहा कि मीडिया घराने ने उनकी छवि खराब करने में मुख्य भूमिका निभाई है। हालांकि वे अपने बारे में जानते हैं कि वे क्या हैं। उन्होंने यह भी कहा कि उनकी छवि खराब करने में करोड़ों रुपये खर्च किये गये हैं। मीडिया पर यह सीधा प्रहार लोगों को बतलाने में कामयाब रहा है कि गोदी मीडिया भी लोकतंत्र का एक तरह से हत्यारा ही है।
युवा भी अब काफी कुछ समझ रहा है इसलिये बड़ी संख्या में उनके साथ बिना बुलाए चल रहा है। पिछले 8 वर्षों में जो शिक्षा और रोजगार की स्थिति बनाई गई है उससे नौजवान पीढ़ी इतनी कमजोर हो गई है कि वह जनविरोधी नीतियों का विरोध ही नहीं कर पा रही है। सभी जानते हैं कि सरकारें युवाशक्ति से सर्वाधिक घबराती हैं। भारत दुनिया का सर्वाधिक युवाओं वाला देश है। उसे शक्तिशाली बनाये रखना सरकार के लिये कभी सुरक्षित नहीं होगा। अब इस बात को देश का युवा वर्ग जान गया है। इसलिये वह राहुल के साथ चल रहा है। यह एक अच्छा संकेत है।
इस यात्रा के प्रारम्भ से और उसके दौरान भी इसके राजनैतिक नफे-नुकसान की बात होती रही है। हालांकि राहुल ने स्वयं और कई बार कांग्रेस ने इस बात को खारिज किया है कि इस यात्रा का उद्देश्य राजनैतिक लाभ पाना है। फिर भी, एक नेता और एक राजनैतिक दल जो कुछ करे, उसके राजनैतिक लाभ या हानि का अनुमान तो लगाया ही जायेगा। जब यात्रा शुरू हुई थी, तभी तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन उनसे मिले थे और महाराष्ट्र में उनका साथ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार की पुत्री व सांसद सुप्रिया सुले और पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के पुत्र आदित्य भी दे चुके हैं। अब दिल्ली में उनके रुके रहने के दौरान ही प्रसिद्ध अभिनेता व एक राजनीतिक पार्टी मक्कल निधि मय्यम के अध्यक्ष कमल हासन भी उनके साथ पद यात्रा में शामिल हुए। सोमवार को जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री व पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने राहुल की जमकर प्रशंसा की और कहा कि यह पहले जैसा वह भारत बनाने की उनकी कोशिश है जिसमें सभी लोग मिल-जुलकर रहते थे।
जो भी हो, दक्षिण से उत्तर तक 12 राज्यों व 2 केन्द्र शासित प्रदेशों के 65 जिलों के 113 शहरों से गुजरने वाली यह कुल 3570 किलोमीटर की ऐतिहासिक यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण व फलदायी चरण तो तब आयेगा जब राहुल नये साल में 3 जनवरी को दिल्ली से आगे बढ़ेंगे। विपक्षी एकता व प्रतिपक्ष के नेतृत्व के मसले भी सम्भवत: इस यात्रा के अंत तक सुलझते हुए दिख सकते हैं। यह भी इस यात्रा का दाय होगा- देश को प्रेम के सूत्र में पिरोने के अलावा।
(लेखक 'देशबन्धु' के राजनीतिक सम्पादक हैं)