• कर्नाटक में आंजनेय का न्याय

    कन्नड़भाषियों ने तटीय कर्नाटक के अलावा राज्य के सभी अंचलों में बीजेपी को निर्णायक मात दी है

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     - अनन्त मित्तल

    कन्नड़भाषियों ने तटीय कर्नाटक के अलावा राज्य के सभी अंचलों में बीजेपी को निर्णायक मात दी है। उन्होंने कांग्रेस की पांच गारंटियों के साथ-साथ उसके राज्यव्यापी मजबूत राजनीतिक आधार, उसके नेता राहुल गांधी की राज्य में 18 दिन चली भारत जोड़ो यात्रा के संदेश नफरत छोड़ो-भारत जोड़ो और उसके कन्नड़िगा नेतृत्व की त्रिमूर्ति मल्लिकार्जुन खड़्गे, सिद्धारामैया और डी के शिवकुमार के प्रति भी अपनी आस्था जताई है।

    कर्नाटका के विधानसभा चुनाव परिणाम ने भारत जैसे समृद्ध सांस्कृतिक, भाषायी और धर्मप्राण देश के स्वतंत्रचेता नागरिकों की लोकतंत्र में अटूट आस्था को फिर से दुनिया के सामने स्थापित किया है। भारत, दुनिया का सबसे विराट लोकतंत्र ही नहीं बल्कि सबसे अधिक युवा आबादी वाला देश भी है। इसीलिए कर्नाटक के मतदाता ने सत्तारूढ़ बीजेपी के स्वाभाविक राजनीतिक विकल्प कांग्रेस पार्टी को स्पष्ट बहुमत देकर अपने रोजमर्रा जीवन में सामाजिक, राजनीतिक ध्रुवीकरण के बजाय रोटी, कपड़ा, पढ़ाई-लिखाई और स्वास्थ्य रक्षा को प्राथमिकता दी है। मतदाता ने कर्नाटक की सबसे भ्रष्ट सरकारों में शामिल बीजेपी सरकार को हरा कर पार्टी की अदम्य सांगठनिक क्षमता, उसके सर्वव्यापी राजनीतिक आधार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अजेय छवि और भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस के दावों को भी खारिज कर दिया।

    कर्नाटक के मतदाता ने यह भी जता दिया कि उनका राज्य देश के सबसे प्रतिभाशाली एवं सुधी राज्यों में शुमार क्यों है? उन्होंने देश के सबसे बड़े राजनीतिकदल बीजेपी और उसके करिश्माई नेता नरेंद्र मोदी को बता दिया कि वे उनकी कथित छप्पन इंची छवि के अनुकूल भक्त शिरोमणि हनुमान के बजरंग बली वाले स्वरूप के बजाय अपनी मिट्टी से उपजे दुलारे आंजनेय एवं प्रसन्न स्वामी को ध्यानकर ही संतुष्ट हैं। कन्नड़भाषियों ने तटीय कर्नाटक के अलावा राज्य के सभी अंचलों में बीजेपी को निर्णायक मात दी है। उन्होंने कांग्रेस की पांच गारंटियों के साथ-साथ उसके राज्यव्यापी मजबूत राजनीतिक आधार, उसके नेता राहुल गांधी की राज्य में 18 दिन चली भारत जोड़ो यात्रा के संदेश नफरत छोड़ो-भारत जोड़ो और उसके कन्नड़िगा नेतृत्व की त्रिमूर्ति मल्लिकार्जुन खड़्गे, सिद्धारामैया और डी के शिवकुमार के प्रति भी अपनी आस्था जताई है।

    कर्नाटक के चुनाव परिणाम ने यह भी सिद्ध किया है कि किसी भी दल का चुनाव प्रचार भले कितना आक्रामक, भव्य तथा महारथी नेताओं से सुसज्जित क्यों न हो पर जनता तो उसकी सरकार के कामकाज एवं उसके प्रादेशिक नेताओं के आचरण के आधार पर ही उसे सत्ता सौंपने अथवा सत्ताच्युत करने का निर्णय सुनाएगी। ज्ञानोन्मुख उद्योगों, समृद्ध सांस्कृतिक विरासत एवं कुदरत की दरियादिली के गढ़ कर्नाटक में बीजेपी और कांग्रेस के प्रचार के मुद्दों, शैैली एवं उनके शीर्ष तथा प्रादेशिक नेतृत्व की भाव-भंगिमा में बुनियादी अंतर रहा। कांग्रेस जहां बीजेपी के पौने चार साला कुशासन, भ्रष्टाचार, महंगाई, बेरोजगारी, जनमत हथियाने की कुप्रवृत्ति, उसके नेताओं में फूट एवं चुनावी फायदे के लिए आरक्षण के पुनर्निर्धारण से समाज को बांटने की कोशिश आदि मुद्दों पर ही डटी रही। उसके बरअक्स बीजेपी की रणनीति अपनी प्रादेशिक सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से मतदाता का ध्यान बंटाने एवं राज्य में अपना जनाधार बढ़ाने की संजीदा कोशिश तक सीमित रही।

    ऐन चुनाव के मौके पर बोम्मई सरकार ने जहां राज्य में पिछड़ों, मुसलमानों, दलितों एवं आदिवासियों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण का नए सिरे से बंटवारा किया वहीं पौने चार साला बदनामी को ढंकने के लिए कई विधायकों के टिकट काटकर एक-तिहाई नए उम्मीदवारों को चुनाव भी लड़ाया। उधर सत्ता की प्रबल दावेदार कांग्रेस ने मासिक 200 यूनिट मुफ्त बिजली, महिलाओं को मासिक 2000 रूपए का भुगतान तथा सरकारी बसों में मुफ्त यात्रा सुविधा, गरीब परिवारों को मासिक 10 किलोग्राम मुफ्त चावल और बेरोजगार युवाओं में ग्रेजुएट को 3000 रूपए एवं डिप्लोमाधारकों को 1500 रूपए मासिक बेरोजगारी भत्ता अगले दो साल तक देने की गारंटी दी। इसके जवाब में बीजेपी ने गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वालों को रोजाना आधा लिटर नंदिनी दूध, मासिक पांच किलोग्राम मोटा अनाज और साल में रसोई गैस के तीन सिलेंडर मुफ्त देने का वायदा किया। महिलाओं को मासिक 2000 रूपए भुगतान की घोषणा बोम्मई सरकार ने अनुदान मांगों वाले बजट में ही कर दी थी।

    इस तरह कर्नाटक के विधानसभा चुनाव ने देश की राजनीति में सत्ता के दो प्रबल प्रतिद्वंद्वियों द्वारा आर्थिक विकास की अपनी नीतियों में बुनियादी बदलाव की झलक भी दिखला दी। नोटबंदी, जीएसटी, कोविड-19 महामारी आदि आर्थिक झटकों से उपजी भीषण बेरोजगारी और महंगाई से त्रस्त मतदाता को अस्तित्व की लड़ाई में सहारा देने के लिए दोनों ही दल अब उन्हें रियायतों की गारंटी दे रहे हैं। इससे साफ है कि आर्थिक विकास के दावों का खोखलापन अब बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी को बखूबी समझ आ गया। नई नौकरियों के जरिए अवाम की आय बढ़ाने की निकट भविष्य में कोई खास गुंजाइष नहीं होने और लोगों की रोजमर्रा की आवष्यकता पूरी करने में सरकार के योगदान की विकट दरकार भी सत्ता की समझ में आ गई। इसीलिए देश में रोजगारहीन विकास के विपक्षी आरोप की पुष्टि का जोखिम उठाकर भी वोट बटोरने के लिए मोदी सरकार को चुनावी रेवड़ियां बांटने पर मजबूर होना पड़ रहा है।

    इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जगतप्रकाश नड्डा कांग्रेस को घेरने और उसकी विश्वसनीयता कुंद करने को हर दिन नया मुद्दा उछालते रहे। इन मुद्दों में मोदी ने कांग्रेस पर खुद को अब तक 91 गालियां देने, बजरंग बली की तालाबंदी, 50 साल पहले गरीबी हटाने के झूठे वादे, 85 फीसद भ्रष्टाचार, सांप्रदायिक तुष्टिकरण, विकास नहीं करने आदि तमाम आरोपों की झड़ी लगाए रखी। सांप्रदायिक वैमनस्य फैलाने पर पीएफआई के समान बजरंग दल को भी प्रतिबंधित करने संबंधी कांग्रेस की घोषणा के बाद तो प्रधानमंत्री अपनी चुनाव सभा की शुरूआत ही बजरंग बली के जयकारे से करने लगे।

    ताज्जुब ये कि चुनाव आयोग इसके बावजूद कानों में तेल डाले सोता रहा क्योंकि जनप्रतिनिधित्व कानून में धार्मिक आधार पर वोट मांगना सरासर प्रतिबंधित है। ऐसा करने वाले दल अथवा जन प्रतिनिधि का चुनाव तक रद्द हो सकता है। इस बारे में कांग्रेस की शिकायत पर कान धरने के बजाय चुनाव आयोग ने उससे कांग्रेस संसदीय दल की नेता सोनिया गांधी के ऐसे कथित बयान पर जवाब मांग लिया जो उन्होंने हुब्बली में दिए भाषण में कहा ही नहीं था।

    चुनाव आयोग ने पूछा कि श्रीमती गांधी ने कर्नाटक की संप्रभुता का सवाल क्यों उठाया? जबकि संप्रभुता तो देश की होती है राज्य की नहीं? मोदी ने तो इस बेबुनियाद मुद्दे पर चुनावी सभा में आरोप ही जड़ दिया कि कर्नाटक की संप्रभुता की बात करके कांग्रेस नेता उसे भारत से विलग करने का षड्यंत्र रच रहे हैं। विडंबना ये कि मोदी, बीजेपी और आरएसएस द्वारा अपने प्रबल प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस को विपक्ष में ही रखने के हरेक हथकंडे को नाकाम करके मतदाता ने उल्टे उन्हें ही चारों खाने चित और सत्ता से वंचित कर दिया।

    गौरतलब है कि हनुमान के आंजनेय स्वरूप में प्रधानता उनकी माता अंजनी की है और मां तो हमेशा करूणा, सद्भाव एवं न्याय की प्रतीक होती हैं। इस प्रकार कर्नाटक के चुनाव में गरीबपरवर आंजनेय ने अपने भक्तों के संकट और पीड़ा हरते हुए अपनी मातृभूमि के गरीबों, वंचितों, पिछड़ों, युवाओं एवं माताओं के कल्याण एवं न्यायोन्मुख चुनावी एजेंडे को प्राथमिकता दिलवा कर कर्नाटक की सांस्कृतिक अस्मिता और सामाजिक सद्भाव की भी रक्षा की है। साथ ही कांग्रेस के संकटमोचक कन्नड़िगा मतदाता ने स्पष्ट बहुमत देकर उसे जन कल्याणोन्मुख एवं भ्रष्टाचार मुक्त, एकजुट सरकार चलाने की चुनौती थमा दी है। देखना यही है कि राज्य के युवाओं, महिलाओं, गरीबों एवं पिछड़ों को सामाजिक न्याय दिलाने एवं कमरतोड़ महंगाई से राहत देने में कांग्रेस कामयाब हो पाएगी अथवा राज्य में पिछले पौने चार साल में बने सत्ता की बेशर्म दलाली के दलदल में फंस कर जनता की उम्मीदों एवं अपने राजनीतिक पुनर्वास की संभावना पर पानी फेरते हुए इतिहास के पन्नों में सिमट जाएगी।

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