• कोरोना की लहर के बावजूद कृषि विकास

    कोरोना की दूसरी लहर के बाद अब तीसरी लहर आने की संभावना व्यक्त की जा रही है

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    - डॉ. हनुमन्त यादव

    कोरोना की दूसरी लहर के बाद अब तीसरी लहर आने की संभावना व्यक्त की जा रही है। अभी तक जो स्थिति है उसको देखते हुए सरकार द्वारा यह कहा जा रहा है कि वह भारत की शत- प्रतिशत जनसंख्या के वैक्सीनेशन के लिए शत-प्रतिशत तैयारी कर लेगी। इसका मतलब यह हुआ कि कोरोना की तीसरी लहर से भी बचाव की तैयारी करना जरूरी है। सवाल उठता है लॉक डाउन, सामाजिक दूरी एवं अन्य प्रतिबंधों आदि से छुटकारा हेतु कोरोना कब तक पूरी तरह समाप्त होगा।

    वर्ष 2020-21 में भारत में कोविड-19 की महामारी के बावजूद कृषि और उससे संबंधित सहायक क्षेत्रों में उत्पादन बढ़ोतरी और कृषि विकास हुआ है।  उत्तर भारत के  पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तरप्रदेश के कुछ जिलों में किसान नेता राकेश टिकैत की अगुवाई मे संसद द्वारा पारित तीन अधिनियमों के विरोध में चलाए जा रहे बहुचर्चित किसान आन्दोलन के बावजूद खाद्य उत्पादन और किसानों की आमदनी दोनों ही अधिक मात्रा में हुए हैं। भारत सरकार द्वारा प्रकाशित आर्थिक सर्वेक्षण वर्ष 2020-21 के  अनुसार भारत  की  कृषि विकास दर 3.4 प्रतिशत रही तथा सम्पूर्ण आर्थिक उत्पादन में कृषि व उसके संबद्ध क्षेत्रों का योगदान दमदार होकर 17.8 प्रतिशत रहा। कोरोना महामारी की सभी प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद कृषि वस्तुओं, खासकर चावल, गेहूं, दाल, दूध और सब्जियों जैसे खाद्य पदार्थों की निरंतर आपूर्ति सरकार द्वारा बनाए रखने से सामान्य जरूरतमंद परिवारों की खाद्य सुरक्षा बनी रही। इसके अलावा खाद्य प्रसंस्करण,  डेयरी, पशुपालन, मत्स्य पालन आदि के उत्पादन एवं जनता को उपलब्धता बढ़ी। 

    कोविड-19 संक्रमण की लहर के कारण जब अर्थव्यवस्था के उद्योग एवं सेवा क्षेत्र में ऋणात्मक प्रदर्शन के बावजूद कृषि एवं सहायक क्षेत्र ने 3.4 प्रतिशत विकास दर के साथ उज्ज्वल प्रदर्शन किया। कुल राष्ट्रीय आय में कृषि का योगदान 17.8 प्रतिशत रहा। वर्ष 2019-20 में देश में खाद्यान्न का उत्पादन 296.65 मिलियन टन रहा जो उसके पिछले वर्ष 2018-19 के 285.21 मिलियन की तुलना में 11.44 मिलियन टन अधिक रहा। किसानों को क्रेडिट प्रवाह का लक्ष्य भी अधिक रहा। क्रेडिट कार्ड में  पशुपालन क्षेत्र को शामिल करने के बाद दुग्ध सहकारिता एवं दुग्ध उत्पादक कंपनियों के लगभग 1.5 करोड़ किसानों को प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर भारत पैकेज के अधीन किसान क्रेडिट कार्ड का मिलने वाला लाभ दिया गया।  जहां तक क्रेडिट कार्ड का सवाल है मछुआरों और मत्स्यपालन करने वालों तथा किसानों का सवाल है वर्ष 2019-21 में लगभग 45,000 किसान क्रेडिट कार्ड जारी किए गए। इसके अलावा बैंकों में लगभग 4 लाख क्रेडिट कार्ड के आवेदन प्रक्रिया में चल रहे हैं।

    प्रतिवर्ष प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत 5.5 करोड़ किसानों को लाभ प्रदान किया जाता है। आधार कार्ड को इस योजना के साथ जोड़ने के कारण दावों को निपटाने में तेजी आई है और दावों का भुगतान सीधे किसानों के खाते में किया जा रहा है।  यहां तक कि कोविड-19 महामारी के दौरान 70 लाख किसान लाभान्वित हुए हैं और लगभग 8741.लाख काभुगतान लाभार्थियों को वर्ष 2020-21 में किया गया।  प्रधानमंत्री -किसान योजना के तहत वित्तीय लाभ का 7वीं किस्त योजना करोड़ परिवारों के बैंक खातों में 31 जनवरी 2021 तक  जमा किए जा चुके हैं। पशुपालन उद्योग का भी पिछले 7 साल में कुल सकल मूल्य उत्पादन में योगदान बढ़ा है। वर्ष 2014-15 में पशुपालन क्षेत्र की विकास दर लगभग 8.24  प्रतिशत थी जो वर्ष 2018-19 में बढ़कर 24.32 प्रतिशत अर्थात लगभग तीन गुना हो गई। पशुपालन क्षेत्र ने वर्ष 2018-19 में सकल मूल्य बढ़ोतरी में 4.19 प्रतिशत योगदान किया। 

    वर्ष 2019-20    में भारत में अभी तक का सबसे अधिक मछली    उत्पादन 14.16 मिलियन टन दर्ज  किया गया। राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में मत्स्य पालन उद्योग द्वारा आयोजित सकल मूल्य सम्पत्ति 2,12,915 करोड़ रुपये है, यह कुल सकल राष्ट्रीय मूल्य सम्पत्ति का 1.24 प्रतिशत तथा कृषि मूल्य संपत्ति के 7.28 प्रतिशत के बराबर है। मत्स्य पालन उद्योग का वार्षिक विकास सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था और कृषि क्षेत्र  के विकास की तुलना में अधिक रहा है। पिछले सात वर्षों में मत्स्य उद्योग का आर्थिक विकास लगभग  9.99 प्रतिशत रहा है। कोविड-19 संक्रमण ने वर्ष 1920-21 को उद्योगों एवं अन्य व्यवसायों में काम करने वाले व्यक्तियों खासकर गरीब व्यक्तियों के लिए असाधारण दुखदायी वर्ष बना दिया, यह वर्ग लॉक डाउन की वजह से अपना रोजगार गंवा बैठा था। केन्द्र सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण येाजना के अंतर्गत रोजगार गंवा चुके 80.96 करोड़ लाभार्थियों को अतिरिक्त खाद्यान्न उपलब्ध कराया। इस योजना के अंतर्गत प्रति व्यक्ति 5 किलोग्राम खाद्यान्न प्रति माह की दर से नवंबर 2020 तक 200 लाख मीट्रिक टन उपलब्ध कराया गया था, इससे केन्द्र सरकार को 7500 करोड़ रुपये अधिक खर्च करने पड़े थे।

    कृषि वर्ष के अंतर्गत जुलाई से जून माह तक शामिल किए जाते हैं, इसलिए उत्पादन की गणना हेतु जून तक का समय मापा जाता है। जिस तरह संसद द्वारा पारित किसानों से संबंधित तीन कानूनों का किसान नेता  राकेश टिकैत की अगुवाई में किए गए विरोध प्रदर्शनों का कृषि उपजों के उत्पादन और बाजार मूल्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा, उसी प्रकार जनवरी से मार्च 2021 तक प्रधानमंत्री एवं कुछ केन्द्रीय मंत्रियों की चुनावी रैलियों ने खेती किसानी के किसी भी कार्य, उनके उत्पादन और मूल्य  को प्रभावित नहीं किया। दरअसल यदि किसानों ने किसी फसल की बुआई का बायकाट करके बाजार में पूर्ति रोक दी होती तो उस वस्तु की कीमत चढ़ने की संभावना होती। दरअसल किसानों का भय निराधार है, जब तक सरकार आम उपभोक्ता के संरक्षण हेतु सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत रियायती मूल्य की दुकानें चलाती रहेगी सरकार के लिए किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खाद्यान्न खरीदना जरूरी होता रहेगा। सरकार ने तो गांव-गांव में निर्धन परिवारों के मकानों के द्वार पर निर्धन परिवार के उपभोक्ताओं का वर्ग लिखवा रखा है।

    कोरोना की दूसरी लहर के बाद अब तीसरी लहर आने की संभावना व्यक्त की जा रही है। अभी तक जो स्थिति है उसको देखते हुए सरकार द्वारा यह कहा जा रहा है कि वह भारत की शत- प्रतिशत जनसंख्या के वैक्सीनेशन के लिए शत-प्रतिशत तैयारी कर लेगी। इसका मतलब यह हुआ कि कोरोना की तीसरी लहर से भी बचाव की तैयारी करना जरूरी है। सवाल उठता है लॉक डाउन, सामाजिक दूरी एवं अन्य प्रतिबंधों आदि से छुटकारा हेतु कोरोना कब तक पूरी तरह समाप्त होगा और कोरोना या कोविड-19  नई पीढ़ी के लिए हमेशा के लिए इतिहास की विषय सामग्री बन जाएगी।  

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