- डॉ.अजीत रानाडे
बाजार संवाद का विषय हैं और हम लगातार अपने विचारों के बारे में दूसरों को राजी करने की कोशिश कर रहे हैं। 'शिलिंग की पेशकश' बल्कि विक्रेता से कुछ खरीदने की पेशकश भी वार्तालाप का हिस्सा है। बाजार तभी अच्छी तरह से काम कर सकता है जब बोलने की आजादी हो, स्वतंत्र अभिव्यक्ति, स्वतंत्र बहस, असंतोष व्यक्त करने और यहां तक कि अपमान करने की भी आजादी हो।
जून महीने में आधुनिक आर्थिक सोच के पितामह माने जाने वाले स्कॉटिश दार्शनिक एडम स्मिथ की 300वीं जयंती मनाई गई। 1776 में उनकी सबसे प्रसिद्ध पुस्तक 'राष्ट्रों की संपत्ति की प्रकृति और कारणों में एक जांच' (एन इन्क्वायरी इन टू दी नेचर एंड कॉज़ेस ऑफ दी वेल्थ ऑफ ए नेशन) प्रकाशित हुई थी। उसी वर्ष अमेरिका ने यूनाइटेड किंगडम से स्वतंत्रता की घोषणा की थी। यह संयोग बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि आधुनिक दुनिया में संयुक्त राज्य अमेरिका मुक्त उद्यम का पहला और सबसे स्थायी गढ़ है। यह सबसे बड़ी और सबसे समृद्ध अर्थव्यवस्था है इसलिए नहीं कि यह मुक्त बाजारों के सिद्धांत और कामकाज पर आधारित है। बाजार अर्थव्यवस्था में आर्थिक विकास व्यक्तिगत उद्यम और स्वहित की खोज के कारण होता है। यह स्मिथ की बुनियादी अंतर्दृष्टि थी। उन्होंने 'वेल्थ ऑफ नेशंस' में लिखा है-'हम अपने रात के खाने की उम्मीद कसाई, शराब बनाने वाले या बेकर के परोपकार से नहीं बल्कि उनके अपने हित संबंध की वजह से करते हैं। हम खुद को संबोधित करते हैं, उनकी मानवता के लिए नहीं बल्कि उनके आत्म-प्रेम के लिए; और हम कभी भी उनसे अपनी आवश्यकताओं के बारे में बात नहीं करते बल्कि उनके फायदे के बारे में बात करते हैं।'
जब तक अच्छी तरह से परिभाषित नियमों (उदाहरण के लिए, संपत्ति का अधिकार) का पालन किया जाता है तब तक स्वहित की खोज सामाजिक भलाई व समृद्धि को बढ़ावा देती है। यह बुनियादी अंतर्दृष्टि आज तक मान्य है। जब उद्यमी या निवेशक लाभ का अनुसरण करते हैं तो वह लाभ दूसरों के जीवन में सुधार का संकेत देता है। स्मिथ ने उसी पुस्तक में यह भी चेतावनी दी कि आर्थिक विकास की सबसे अच्छी प्राप्ति लोगों को अपनी संपत्ति (यानी पूंजी) का प्रबंधन करने देकर प्राप्त की जा सकती है। सरकारों के हस्तक्षेप या 'केंद्रीय योजना' करने से इस लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता। कोई भी सरकार बेहतरीन तरीके से भी यह तय नहीं कर सकती है कि बाजार क्या हासिल कर सकता है। इसके साथ ही पूंजी आबंटन निर्धारित करने की शक्ति सरकारों को सौंपना मूर्खतापूर्ण और संभवत: विनाशकारी है।
फ्रेडरिक वॉन हायेक की 'रोड टू सर्फडम' एक चेतावनी थी जो निश्चित रूप से स्मिथ और बाद के उदारवादी दार्शनिकों से प्रेरित थी जो सरकारों द्वारा बाजार में बहुत अधिक हस्तक्षेप के खतरों के बारे में थी। एक हस्तक्षेप दूसरी दखलंदाजी की ओर जाता है और इस तरह आप जल्द ही बेड़ियों में पूरी तरह से जकड़ जाते हैं। मजदूरी को कम रखने के लिए भारत में कृषि में मूल्य सीमा निर्धारित की और फिर मूल्य सीमा के प्रभाव को कम करने के लिए किसानों को सब्सिडी दी। फिर उस पर बड़े पैमाने पर सरकारी खरीद की। भारतीय कृषि अक्सर राज्य की विरोधाभासी दखलंदाजी का एक उत्कृष्ट उदाहरण है जिसके कारण भारतीय किसान गरीबी की बेड़ियों में जकड़ा हुआ है। औद्योगिक नीति पर हालिया हस्तक्षेपवादी सोच के निस्संदेह दुष्प्रभाव भी होंगे जो बाद में और अधिक हस्तक्षेप की मांग करेंगे। यदि आप बाजारों को काम नहीं करने देते हैं तो आपको बुरे नतीजे मिलते हैं। वेल्थ ऑफ नेशंस की तुलना में चार दशक बाद स्मिथ के नक्शेकदम पर चल रहे कार्ल मार्क्स ने पूंजीवाद को आवश्यक बुराई के रूप में देखा। स्मिथ मानते थे कि पूंजीवाद समृद्धि का कारण बनेगा उसके विपरीत मार्क्स ने भविष्यवाणी की कि पूंजीवाद अपने आंतरिक विरोधाभासों से बर्बाद हो जाएगा।
संयोग से स्मिथ बाजारों के संदर्भ में कार्टेल और एकाधिकार प्रथाओं के खतरों से अवगत थे। उन्होंने लिखा- 'एक ही व्यापार में शामिल लोग शायद ही कभी एक साथ मिलते हैं, यहां तक कि आमोद-प्रमोद या मन बहलाव के लिए भी नहीं मिलते लेकिन जब भी मिलते हैं तो बातचीत जनता के खिलाफ षड़यंत्र या कीमतें बढ़ाने की साजिश में समाप्त होती है।' यह उक्ति आज भी लागू होती है क्योंकि भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग जैसे संगठन कार्टेल के खिलाफ निगरानी रखते हैं। स्मिथ वाणिज्यवाद के खिलाफ थे जिसके कारण वे अपने समय में अलोकप्रिय थे। किन्तु उनके पास इस बात को कहने का एक सौम्य तरीका था। उन्होंने कहा- 'यदि आप स्कॉटलैंड में अंगूर उगाने और शराब बनाने की कोशिश करते हैं तो यह तीस गुना अधिक महंगा होगा और अगर विदेशों से आयात करते हैं तो यह सस्ता पड़ेगा'। 'क्या केवल स्कॉटलैंड में क्लैरेट और बरगंडी वाईन बनाने को प्रोत्साहित करने के लिए सभी विदेशी वाइन के आयात को प्रतिबंधित करना एक उचित कानून होगा?' क्या हम हर चीज में आत्मनिर्भर हो सकते हैं? अमेरिका एक ग्राम भी कॉफी या गन्ना नहीं उगाता है और फिर भी दोनों का उच्चतम उपभोक्ता है। सिंगापुर भोजन, ऊर्जा और यहां तक कि पीने के पानी का आयात करता है। तो फिर स्मिथ की फिलॉसफी के संदर्भ में 'आत्मनिर्भर' को कैसे समझा जा सकता है?
हालांकि स्मिथ को केवल उनकी 'वेल्थ ऑफ नेशंस' पुस्तक के नज़रिए से समझना अधूरा और भ्रामक होगा। उन्होंने सत्रह साल पहले 1759 में एक और पुस्तक लिखी 'दी थ्योरी ऑफ मॉरल सेंटीमेंट्स'। इसी किताब को वे अपना सबसे महत्वपूर्ण योगदान मानते हैं। इस पुस्तक ने स्कॉटिश प्रबोधन के एक प्रमुख व्यक्ति के रूप में उनका कद और बढ़ाया है। वे न्याय और निष्पक्षता के बारे में बहुत चिंतित थे। उनका यह भी मानना था कि लोग दूसरों को चोट पहुंचाकर अपने लिए बेहतर नहीं करना चाहते हैं। हमारे पास एक 'आत्म दर्शक' है जो हमारा मार्गदर्शन करता है जिसकी कोई आंतरिक विवेक के रूप में व्याख्या कर सकता है। उन्होंने लिखा- 'मानव सुख का मुख्य हिस्सा प्रिय होने की चेतना से उत्पन्न होता है।' उसका प्यार किया जाना लोगों को खुश करने के बारे में नहीं है बल्कि प्रशंसा और सम्मानित होने के बारे में है। मनुष्य न केवल प्यार चाहता है बल्कि प्यार करना भी चाहता है। यह प्यार के योग्य होना है और उस उच्च नैतिक मानक को जीना है।
इन्फोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति ने अप्रत्यक्ष रूप से इस बात को दोहराते हुए एक बार कहा था कि वे चाहते हैं कि उनकी कंपनी सबसे बड़ी या सबसे अधिक लाभदायक या उच्चतम बाजार मूल्य वाली न हो बल्कि सबसे सम्मानित हो। स्मिथ ने लिखा है कि हम दूसरों के संकट को नहीं समझ सकते हैं क्योंकि हमने कभी इसका अनुभव नहीं किया है। फिर भी, हम इसकी कल्पना कर सकते हैं या खुद को दूसरों के स्थान पर रखकर देख सकते हैं। यह सहानुभूति का सार है जिसे उन्होंने चैंपियन बनाया। स्मिथ यह तर्क देने वाले पहले व्यक्ति होंगे कि बहुत अधिक असमानता अन्यायपूर्ण और अनुचित है। लेकिन उनका मानना था कि लाभ के माध्यम से दूसरों के जीवन की बेहतरी आएगी और यह परोपकार के माध्यम से आएगी, न कि सरकार की जबर्दस्ती से। बेशक इस पर बहस हो सकती है लेकिन निष्पक्षता और न्याय के लिए उनकी चिंता के बारे में बहस नहीं हो सकती। स्मिथ ग्लासगो विश्वविद्यालय में लॉजिक एंड रेटरिक विभाग के प्रमुख थे। स्वाभाविक रूप से शंका निवारण की कला उनकी थीसिस का केन्द्र बिन्दु थी।
बाजार संवाद का विषय हैं और हम लगातार अपने विचारों के बारे में दूसरों को राजी करने की कोशिश कर रहे हैं। 'शिलिंग की पेशकश' बल्कि विक्रेता से कुछ खरीदने की पेशकश भी वार्तालाप का हिस्सा है। बाजार तभी अच्छी तरह से काम कर सकता है जब बोलने की आजादी हो, स्वतंत्र अभिव्यक्ति, स्वतंत्र बहस, असंतोष व्यक्त करने और यहां तक कि अपमान करने की भी आजादी हो। स्मिथ चाहते थे कि समाज एक जैविक, सहमतिपूर्ण, संवादात्मक तरीके से अधिक स्वतंत्रता के साथ विकसित हों। उनके विचार आज भी उतने ही मान्य और अकाट्य हैं जितने तीन शताब्दी पहले थे।
(लेखक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री हैं। सिंडिकेट :दी बिलियन प्रेस)