• आर्थिक और राजनीतिक चुनौतियों का होगा वर्ष 2025

    नए कैलेंडर वर्ष की शुरूआत हम हमेशा आशाओं के साथ करते हैं। आशा के साथ जीना मानव अस्तित्व की प्रकृति में है

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    - डॉ.अजीत रानाडे

    आने वाला साल अनिश्चितताओं से भरा है। किसी प्रकार की सटीक भविष्यवाणी करना मूर्खता है और उस भविष्यवाणी का असफल होना निश्चित है। वैश्विक अनिश्चितता के मुख्य स्रोत आर्थिक और भू-राजनीतिक होते हैं। बाद में कुछ और भी कारक होते हैं। इनमें यूक्रेन में अंतहीन युद्ध का असर, इजरायल-हमास संघर्ष और पश्चिम एशिया के व्यापक क्षेत्र में इसका फैलाव, कई देशों में धुर दक्षिणपंथी दलों का उदय प्रमुख है, जिनमें जर्मनी भी शामिल है।

    नए कैलेंडर वर्ष की शुरूआत हम हमेशा आशाओं के साथ करते हैं। आशा के साथ जीना मानव अस्तित्व की प्रकृति में है। आने वाले वर्ष में चुनौतियां कितनी भी कठिन क्यों न हों, आशावादी हमेशा निराशावादियों से आगे निकल जाते हैं। निराशावादी अर्थशास्त्रियों द्वारा फैलाई गई निराशा या कयामत की कोई भी संभावना आशावादियों को रोक नहीं सकती। भविष्य के प्रति उनका विश्वास कम नहीं होता। उसी भावना के साथ वर्ष 2025 के लिए एक पूर्वानुमान है जो कठिन चुनौतियों से भरा है।
    आने वाला साल अनिश्चितताओं से भरा है। किसी प्रकार की सटीक भविष्यवाणी करना मूर्खता है और उस भविष्यवाणी का असफल होना निश्चित है। वैश्विक अनिश्चितता के मुख्य स्रोत आर्थिक और भू-राजनीतिक होते हैं। बाद में कुछ और भी कारक होते हैं। इनमें यूक्रेन में अंतहीन युद्ध का असर, इजरायल-हमास संघर्ष और पश्चिम एशिया के व्यापक क्षेत्र में इसका फैलाव, कई देशों में धुर दक्षिणपंथी दलों का उदय प्रमुख है, जिनमें जर्मनी भी शामिल है। दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल जर्मनी की सरकार ने इस महीने संसद में विश्वास मत खो दिया और अब वहां मध्यावधि चुनाव अगले साल के शुरू में होंगे। बढ़ते घाटे, वैदेशिक युद्धों के लिए अधिक धन की आवश्यकता, कौशल की कमी और कम शिक्षा से जूझ रही जर्मन अर्थव्यवस्था में लगातार दूसरे वर्ष संकुचन दिखाई दे रहा है। फिर, वहां बढ़ती विरोधी अप्रवासी भावना को अति दक्षिणपंथी दलों द्वारा बढ़ावा दिया जा रहा है। क्या जर्मनी रूस या नाटो की ओर झुकेगा? वह ईरान और उसके प्रतिद्वंद्वी चीन से कैसे निपटेगा? क्या उसकी अर्थव्यवस्था में उछाल आएगा?

    भू-राजनीति से परे आर्थिक अनिश्चिताओं का माहौल है जिसे 20 जनवरी, 2025 को शपथ लेने वाले अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प हवा दे रहे हैं। उन्होंने उच्च आयात शुल्क, सरकारी फंडिग में कटौती, मजबूत अप्रवासी विरोधी नीति को बढ़ावा देना, नीतियों और अधिकांश वैश्विक जलवायु संधियों से पीछे हटने का वादा किया है। उनकी सरकार अधिक संरक्षणवादी होगी। ट्रम्प सरकार के लेन-देन में अमेरिका के विशुद्ध फायदे के नजरिए के साथ अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में संलग्न होने की संभावना है। इसके साथ ही ट्रम्प सरकार को मंदी की हवा के बीच बढ़ती महंगाई से भी लड़ना होगा। उधर अमेरिकी सरकार का कर्ज 35 लाख करोड़ डॉलर के नए शिखर पर पहुंच गया है। कर्ज के पहाड़ को पुष्ट करने तथा उच्च घाटे व उधार लेने के पीछे सरकार की एक अतृप्त भूख है। सिर्फ ऋ ण पर लगभग 1 लाख करोड़ डॉलर का ब्याज देय है। उधार लेने की भूख अमेरिकी डॉलर को मजबूत रखती है जिसके कारण भारतीय रुपये जैसी अन्य मुद्राएं गिर जाती हैं। कमजोर मुद्राएं मुद्रास्फीति को खराब करने का कारण बनती हैं।

    अपने आर्थिक संकटों के बावजूद अमेरिकी शेयर बाजार ने 2024 के दौरान नई ऊंचाई देखीं जिससे वहां 150 से अधिक नए अरबपति बने। अमेरिका के 12 सबसे अमीर आदमी अब एक साथ 2 -2 लाख करोड़ डॉलर की हैसियत वाले हैं। इस प्रकार हमारे पास उच्च मुद्रास्फीति, उच्च बेरोजगारी, एक अनियंत्रित परिसंपत्ति बाजार विकास (स्टॉक और रियल एस्टेट) व व्यापक धन तथा आय असमानता का कॉकटेल है। देखा गया है कि जब पैसा कमाने का सामूहिक पागलपन जोर पकड़ लेता है तब शेयर बाजारों में अचानक और तेज सुधार की प्रवृत्ति होती है। साल 2008 में लेहमैन हादसे को बहुत कम लोगों ने समझा था। चीन अपने बैंकिंग और रियल एस्टेट में खींच-तान के साथ मंदी और बड़े कर्ज से भी लड़ रहा है। वह अक्षय ऊर्जा, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी द्वारा संचालित नई अर्थव्यवस्था में संक्रमण करने की भी कोशिश कर रहा है। पूर्वी एशिया और जापान के अन्य हिस्से अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में हैं और वहां बेहतर व्यापक आर्थिक विशेषताएं हैं।

    बढ़ती असमानता एक वैश्विक चिंता है और इसके उन्मूलन या उसमें कमी लाना संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स- एसडीजीज़) में से एक है। लोक-लुभावन नारे देने वाले नेताओं का उदय, कल्याणकारी योजनाओं में बढ़ता खर्च बढ़ती असमानता की प्रतिक्रिया है। यह एक नई चुनौती है कि कल्याणकारी खर्च के राजकोषीय बोझ का प्रबंधन कैसे किया जाए। भारत में भी केंद्र और राज्य- दोनों सरकारों के कल्याणकारी खर्च में बड़े पैमाने पर विस्तार हुआ है। भारतीय रिजर्व बैंक की एक हालिया रिपोर्ट में सब्सिडी और मुफ्त उपहारों को अंधाधुंध रूप से बढ़ाने के खिलाफ चेतावनी दी गई है। 2024 के दौरान भारत सहित साठ देशों में राष्ट्रीय चुनाव हुए और अधिकांश स्थानों पर मतदाताओं के लिए बढ़ती मुद्रास्फीति और असमानता बड़े मुद्दे थे। कई स्थानों पर, मुख्यत: मुद्रास्फीति और आर्थिक कठिनाइयों के कारण चुनावों में (अमेरिका की तरह) सत्ताधारियों को हटा दिया गया था। भारत में भी झारखंड व महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव विशेष रूप से महिलाओं पर लक्षित उदार सब्सिडी के वादों से प्रभावित थे। देश में दो अन्य राज्य- दिल्ली और बिहार में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं तथा वहां गरीबों, महिलाओं और समाज के अन्य वर्गों को आय सब्सिडी की बात पहले से ही की जा रही है। कम से कम अभी के लिए यह बहस का विषय नहीं है कि इन सभी राहतों व घोषणाओं के लिए भुगतान कौन करने वाला है।

    भारत के घरेलू मोर्चे पर कई चीजों पर नजर रखनी होगी। दो राज्यों के विधानसभा चुनावों का उल्लेख पहले ही किया गया है। बहुप्रतीक्षित राष्ट्रीय जनगणना शुरू होने की संभावना है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक एवं औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में सुधार की तैयारी है। संसदीय सीटों के पुन: समायोजन के परिसीमन अभ्यास पर चर्चा शुरू होगी। इसकी समय सीमा 2026 निर्धारित की गई है। सोलहवां वित्त आयोग इस वर्ष के अंत में अपनी सिफारिशों को अंतिम रूप देगा। क्या यह सरकार के तीसरे स्तर को सुनिश्चित धन प्रदान करेगा? कई राज्यों में नगर पालिकाओं और पंचायतों जैसे स्थानीय निकायों के चुनावों में काफी देरी हुई है जिससे स्थानीय शासन प्रभावित हुआ है।चूंकि भारत में व्यापार घाटा बढ़ गया है इसलिए नवनिर्वाचित ट्रम्प प्रशासन की डॉलर नीतियों के मजबूत होने की संभावना के कारण रुपये में गिरावट आने की आशंका है। विदेशी प्रत्यक्ष निवेश बढ़ाने को लेकर चिंता बनी रहेगी। यह कई वर्षों से गिर रहा है। पूंजी का रिसाव व अमीर लोगों का दूसरे देशों में पलायन भी चिंता का विषय है।

    भारतीयों से शिक्षा के 'आयात' (यानी विदेशों में पढ़ने वाले छात्रों पर होने वाल खर्च) पर 70 अरब डॉलर खर्च होने का अनुमान है। यह अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख निकास द्वार है और जो भारत में शिक्षा की गुणवत्ता या सामर्थ्य और उपलब्धता के बारे में असंतोष को दर्शाता है। प्रौद्योगिकी के मोर्चे पर हम इलेक्ट्रिक वाहनों का प्रसार, पेट्रोल के साथ इथेनॉल का अधिक सम्मिश्रण और शायद छोटे व मॉड्यूलर परमाणु रिएक्टरों की पायलट परियोजनाओं की शुरुआत देखेंगे। एक बड़े आर्थिक विकास, जैसे निजी पूंजीगत खर्च में वृद्धि और ग्रामीण मजदूरी में सुधार पर नजर रखनी होगी। शहरी खपत में सुस्ती को देखते हुए फरवरी में पेश होने वाले केंद्रीय बजट में बजटीय प्रोत्साहन की जरूरत पड़ सकती है। संक्षेप में कहें तो निवेश तथा विकास के बारे में अनिश्चितताओं से भरा, असमानता को बढ़ाने वाला, भू-राजनीति और संघर्षों से प्रभावित एवं एक ढीली मौद्रिक नीति द्वारा निर्देशित परिसंपत्ति बाजार में वृद्धि से भरा वर्ष हमारे सामने आने वाला है।

    (लेखक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री हैं। सिंडिकेट: द बिलियन प्रेस)

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