अगर हम आने वाले 15-20 साल की विकास संबंधी अपनी जरुरतों के बारे में नहीं सोच पा रहे हों तो विकास का हमारा मॉडल बेकार है। इसे एक प्रकार का दृष्टि-दोष भी कह सकते हैं। भौतिक विकास पर खर्च कर जनता के पैसे की कितनी बर्बादी हो रही है, कुछ उदाहरणों से समझा जा सकता है। किसी पक्के निर्माण की एक उम्र तो होती ही है यदि उसका निर्माण मानकों के अनुरुप हुआ हो। उस निर्माण को उसकी उम्र पूरी होने से पहले तोडऩे की जरुरत पड़ जाए तो यह धन की बर्बादी नहीं तो क्या है? कई ऐसे निर्माण की सूची भी तैयार की जा सकती है, जिसका उपयोग भी नहीं हुआ और वे नष्ट हो गए। निर्माण की आज की तकनीक पहले से सौ गुना बेहतर होने के बाद भी निर्माण की उम्र न बढ़ पाने का कारण सबको पता है। बिलासपुर में अरपा नदी पर बना पुराना पुल अंग्रेजों ने बनाया था। सौ साल से यह पुल ज्यों का त्यों खड़ा है। इसी अरपा नदी पर बना तुर्काडीह पुल पर इसलिए आवागमन रोक देना पड़ा क्योंकि उसके ढह जाने का खतरा उत्पन्न हो गया था। यह पुल तीन साल पहले बना था। पहले इसे तोडऩे की योजना बनाई गई और अब इसकी पांच करोड़ की लागत को देखते हुए मरम्मत की नई तकनीक इस्तेमाल में लाने का निर्माण लिया गया है। किसी निर्माण की उपयोगिता और स्तर की चर्चा आज के संदर्भों में इसलिए भी जरुरी जान पड़ती है क्योंकि अभी भी इस विषय में नहीं सोचा जा रहा है। छत्तीसगढ़ के गठन के साथ रायपुर राजधानी बन गया। बिलासपुर राज्य का दूसरा बड़ा शहर। दोनों शहर भविष्य में स्मार्ट शहर बनने जा रहे हैं। अगर भौतिक विकास के क्षेत्र में इन सब बातों पर ध्यान नहीं दिया गया तो इनके स्मार्ट बनने पर हमेशा प्रश्नचिन्ह लगा रहेगा। बिलासपुर से होकर गुजरने वाला कोई भी व्यक्ति तिफरा ओव्हरब्रिज के जाम मेें कभी न कभी जरुर फंसा होगा। यह अब आम समस्या है। महाराणा प्रताप की प्रतिमा चौराहे से हटाकर किनारे लगा दी गई, लेकिन जाम से छुटकारा नहीं मिला। इस रेलवे ओव्हरब्रिज का निर्माण राज्य के गठन के बाद शुरू हुआ था। छह साल में बनकर तैयार हुआ। छह साल से इस ओव्हरब्रिज से आवागमन हो रहा है और अब मान लिया गया है कि इसे तोडक़र नया ओव्हरब्रिज बनाए बगैर जाम की समस्या से मुक्ति नहीं मिलने वाली। लोग प्रशासन से यह मांग भी कर चुके हैं कि रेल्वे फाटकों को फिर से खोल दिया जाए ताकि लोगों का आवागमन आसान हो सके। रेलवे राजी नहीं है क्योंकि उसने फाटक बंद करने के लिए भी सरकार को ओव्हरब्रिज बनाने के लिए धन उपलब्ध कराया था। अब सरकार इस मार्ग पर बढ़ते आवागमन को ध्यान रखकर ब्रिज की डिजाइन तैयार नहीं करा सकी तो उसका दोष क्या है? पिछले वर्ष मुख्यमंत्री जब सुराज दौरे पर थे, उनके पहुंचने से करीब एक घंटा पहले पुलिस ने ब्रिज पर आवागमन रोक दिया। चौराहे की चारों सडक़ों पर इतना लंबा जाम लग गया कि मुख्यमंत्री के निकलने के बाद आवागमन सामान्य होने में घंटों लग गए। लोग गुस्से से भर उठे थे। सत्ता और उसके नुमाइंदों को विशेष सुविधा हासिल होती है इसलिए इस गुस्से की उन्हें कोई परवाह भी नहीं होती वरना कोई समाधान तो जरुर सोचा जाता। स्मार्ट सिटी बनाने से पहले आवागमन को बेहतर बनाने के लिए पुलों व सडक़ों के विकास पर प्राथमिकता के साथ काम करना होगा।