• भोपाल गैस त्रासदी : गरीब हैं इसलिए नहीं मिला राजनेताओं का साथ

    वर्तमान दौर में गरीब होना सबसे बड़ी सजा है, यही कारण कि उनका दर्द भी राजनीतिक दलों को अपनी ओर नहीं खींच पाता। इसका उदाहरण है भोपाल गैस त्रासदी। इस हादसे के 28 वर्ष गुजरने के बाद भी पीड़ितों का दर्द राजनेताओं का दिल नहीं पिघला सका है। तभी तो किसी भी राजनीतिक दल या उसके नेता ने पीड़ितों की आवाज उठाना मुनासिब नहीं समझा। ...

    भोपाल | वर्तमान दौर में गरीब होना सबसे बड़ी सजा है, यही कारण कि उनका दर्द भी राजनीतिक दलों को अपनी ओर नहीं खींच पाता। इसका उदाहरण है भोपाल गैस त्रासदी। इस हादसे के 28 वर्ष गुजरने के बाद भी पीड़ितों का दर्द राजनेताओं का दिल नहीं पिघला सका है। तभी तो किसी भी राजनीतिक दल या उसके नेता ने पीड़ितों की आवाज उठाना मुनासिब नहीं समझा। भोपाल के लिए दो-तीन दिसंबर 1984 की रात काल बनकर आई थी। उस रात को याद कर के लोग अजीब से डर में डूब जाते हैं, क्योंकि यूनियन कार्बाइड संयंत्र से गैस का रिसाव होने के कारण हर तरफ मौत कहर बनकर टूटी थी। हजारों लोग मुर्दो में बदल चुके थे और जो बचे थे वे अपना जीवन बचाने के लिए सुरक्षित जगह की तलाश में भटक रहे थे। अस्पताल मरीजों से पट गए थे। अस्पतालों में शवों एवं मरीजों के लिए जगह नहीं थी।  गैस के दुष्परिणाम आज भी यहां के लोग भुगत रहे हैं। इस बात की गवाही संयंत्र के आसपास बसी बस्तियां और इलाज कराने के लिए अस्पतालों में पहुंचने वाले मरीज दे रहे हैं।  आंकड़ों के मुताबिक 20 हजार से ज्यादा लोग गैस के असर के चलते अब तक जिंदगी से हाथ धो चुके हैं, वहीं साढ़े पांच लाख से ज्यादा लोग बीमारी की जद में हैं। इन बस्तियों में लोगों की कराह और अपंग बच्चे हादसे के बाद के असर को बयां कर जाते हैं।  भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के अब्दुल जब्बार कहते हैं, "28 वर्ष गुजर जाने के बाद भी प्रभावितों को न तो मुआवजा मिला है और न ही चिकित्सा सुविधाएं। जो कुछ भी मिला है, वह संघर्ष करने से। राजनीतिक दलों ने गैस हादसे के कुछ वर्ष बाद ही इसे भुला दिया। इसकी वजह प्रभावितों का गरीब और उनमें राजनीतिक समझ न होना है।" भोपाल ग्रुप ऑफ इंफॉर्मेशन एंड एक्शन के सतीनाथ षड्ंगी भी राजनीतिक दलों के रवैए से खुश नहीं हैं। उनका कहना है, "राजनीतिक दलों से जुड़े लोग बातें तो बड़ी-बड़ी करते हैं, मगर हकीकत में कुछ करने को तैयार नहीं हैं।" राजनीतिक दलों की संवेदनशीलता पर सवाल उठाते हुए वह कहते हैं कि बीते वर्ष मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक सप्ताह के भीतर गैस प्रकरण पर चर्चा के लिए बैठक बुलाने की बात कही थी, मगर ऐसा करने में एक वर्ष लग गया। कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता जे.पी. धनोपिया कहते हैं कि गैस हादसा राजनीतिक नहीं संवेदनशील मुद्दा है और इस मुद्दे के जरिए वोट हासिल करने की राजनीति नहीं की जानी चाहिए। यद्यपि वह मानते हैं कि राजनीतिक दलों को इस मसले को जितनी गंभीरता से लेना चाहिए उस तरह से नहीं लिया गया।  गैस हादसे की 28वीं बरसी पर पीड़ित परिवारों में राजनेताओं को लेकर नाराजगी है, क्योंकि छोटी घटनाओं और घोटालों को लेकर जमीन आसमान एक कर देने वाले नेताओं की नजर से उनकी समस्याएं ओझल हैं।


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