नई दिल्ली। तीन वर्ष की एक बच्ची की किडनी फेल होने के बाद उसे जल्द से जल्द किडनी प्रत्यारोपण की आवश्यकता थी, लेकिन उससे रक्त समूह मैच करने वाला कोई दाता उपलब्ध नहीं था। छह महीने तक असफल खोज के बाद मां लीवर को लेने की योजना बनाई जो कि जो एक रक्त समूह असंगत प्रत्यारोपण था क्योंकि बच्ची का ब्लड ग्रुप बी पॉजिटिव था जबकि मां ए-पॉजिटिव थी लेकिन डॉक्टरों ने इसका सफल प्रत्यारोपण किया है।
मेदांता द मेडिसिटी के पेडिएट्रिक नेफ्रोलॉजी एवं पेडिएट्रिक रीनल ट्रांसप्लांट के कंसल्टेंट डॉ. सिद्धार्थ सेठी ने बताया कि अक्टूबर 2014 में हम 12 वर्ष के बच्चे पर रक्त समूह मैच नही करने वाला भारत का पहला बाल असंगत किडनी प्रत्यारोपण कर चुके थे इसीलिए यह जोखिम लिया और बच्चे में डिजाइन किए हुए डिसेंसिटाइजेशन और इम्यूनोसप्रेसिव प्रोटोकॉल के साथ दाता के रूप में मां से गुर्दा प्रत्यारोपण किया गया। बच्ची में प्रत्यारोपण के बाद आश्चर्यजनक रूप से सुधार हुआ।
उसकी ग्राफ्ट की हुई किडनी बहुत अच्छा कार्य कर रही है और भारत में इम्यूनोएडजॉर्प्शन प्रोटोकॉल को पहली बार एक छोटे बच्चे में इस्तेमाल किया गया है। यह सार्क का भी सबसे कम उम्र का रक्त समूह असंगत किडनी प्रत्यारोपण है।
उन्होने बताया कि बच्ची वर्तमान में पूरी तरह से सामान्य है, और सामान्य जीवन जी रही है। प्रत्यारोपण के लिए दान दिये जाने वाले शव (मृत्यु के बाद) दान की कमी एक वैश्विक समस्या है। आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में करीब 2.20 लाख लोग गुर्दा प्रत्यारोपण की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जिनमें से हर साल केवल सात हजार लोग ही प्रत्यारोपण प्राप्त करने में सक्षम होते हैं और गुर्दा प्रत्यारोपण की आवश्यकता वाले 30 में से केवल 1 व्यक्ति को ही गुर्दा प्राप्त होता है।