नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा में आज सदन में अतिथि शिक्षकों पर ध्यानाकर्षण प्रस्ताव पर चर्चा हुई और हाल में प्रकाशित रिक्तियों को फिलहाल रोकने के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी।
ध्यानाकर्षण पर उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने बताया कि सरकार नौ हजार नई भर्ती कर रही है यह मुझे ही पता नहीं था। मैंने अधिकारियों से पूछा तब पता चला कि सरकार आयु में राहत व वरीयता के पक्ष में है जबकि अधिकारी सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का हवाला देकर वरीयता देने के खिलाफ हैं। इसलिए मैंने मुख्य सचिव व शिक्षा सचिव को इन भर्तियों को रोकने के लिए कहा, चूंकि सेवा मामला उपराज्यपाल देख रहे हैं इसलिए मैं चाहूंगा कि वरीयता के साथ रिक्तियों को भरा जाए।
उन्होंने विपक्ष की शंकाओं पर कहा कि सरकार सभी 17 हजार से अधिक अतिथि शिक्षकों को सेवा में लेना चाहते है। इस बाबत चर्चा आप विधायक संजीव झा ने शुरू की और रिक्तियों में वरीयता देने का आग्रह किया।
विधायक मदनलाल ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि शिक्षकों को आयु राहत के साथ वरीयता दी जा सकती है इसमें उमा देवी का आदेश बाधा नहीं है।
आप विधायक राजेश गुप्ता ने प्रस्ताव रखा कि दिल्ली अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड द्वारा रिक्तियों को रोक दिया जाए। यह प्रस्ताव सदन में पारित कर दिया गया। इससे पूर्व नेता प्रतिपक्ष विजेंद्र गुप्ता ने अपने वक्तव्य में कहा कि सरकार 17858 गेस्ट टीचर्स को नियमित करे। विजेन्द्र गुप्ता ने अतिथि शिक्षकों के विषय में बोलते हुए ऐसा कोई रास्ता निकालने की बात कही जिसके द्वारा इन्हें नियमित किया जा सके। उन्होंने 17858 अतिथि शिक्षकों के पदों को अविलम्ब भरा जाए।
सरकार पर वायदे पर खरे न उतरने का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि वर्षों से अध्यापन के बाद भी इनके सिर पर तलवार लटकी है। दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय के अंतर्गत 7 अगस्त को शिक्षकों के 9138 रिक्त पदों पर भर्तियां निकाली हैं। इसको लेकर गेस्ट टीचर्स में भारी निराशा और व्यथा है, क्योंकि इसमें उनके हितों को नजरअंदाज किया गया है। सबसे बड़ी बात है कि इस समय 17858 पदों पर गेस्ट टीचर्स काम कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त कुल रिक्त पद 9093 हैं और भर्ती 9138 रिक्त पदों पर हो रही है। इनमें से कितनों की भर्ती होगी ये तो भगवान जाने। बाकी अध्यापकों का भविष्य अधर में लटका रह जाएगा। शिक्षकों को आयु के अलावा कोई राहत नहीं दी है। यह उनके साथ वादाखिलाफी है क्योंकि चुनाव से पहले मुख्यमंत्री ने उन्हें नियमित करने का वादा किया था।
विधानसभा में आज न्यूनतम मजदूरी न देने पर 50 हज़ार रुपये जुर्माना, तीन साल की कैद, नगदरहित भुगतान, मजदूरों की सूचना वेबसाइट पर देने, विवाद में नौकरी से न निकालने और तीन माह में विवाद निपटारे के प्रावधान के साथ नयूनतम वेतन ( दिल्ली ) संशोधन विधेयक, 2017 व दिल्ली नेताजी सुभाष प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय विधेयक 2017 को पारित कर दिया गया।