जम्मू-कश्मीर में बिगड़ते हालात पर काबू पाने की एक कोशिश होती नहींकि नयी चिंता, नए सवालों के साथ प्रकट हो जाती है। अभी इसी हफ्ते मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने प्रधानमंत्री और गृहमंत्री से मिलकर चर्चा की कि कैसे अलगाव और हिंसा की घटनाओं को रोका जाए, कैसे पत्थरबाजी पर नियंत्रण पाया जाए। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के तरीकों को आगे बढ़ाने की बात कही। अलगाववादियों से बातचीत की बात कही। इस बीच राज्य में इंटरनेट सेवा पर प्रतिबंध लगा दिया गया और स्कूल-कालेज भी बंद हैं। यह तमाम कवायद इसलिए कि प्रदेश में बढ़ते तनाव को नियंत्रित करने का थोड़ा अवसर सरकार और प्रशासन को मिल सके। लेकिन ये सारे कदम निष्फल साबित हो रहे हैं। गुरुवार सुबह जम्मू-कश्मीर में एक और आतंकी हमला हो गया। कुपवाड़ा में आतंकवादियों ने सीमा के पास स्थित सैन्य शिविर पर आत्मघाती हमला किया जिसमें भारत के तीन जवान शहीद हो गए हैं, सेना ने जवाबी कार्रवाई में दो आतंकियों को मार गिराया गया है। सेना के मुताबिक अंधेरे का फायदा उठाकर आतंकियों ने यह सरप्राइज अटैक किया है। सूत्रोंंका कहना है कि इस वक्त लगभग 150 आतंकवादी घाटी में घुसपैठ के लिए इंतजार में हैं और इस हमले के जरिए भारतीय सेना का ध्यान भटका कर सीमा पार से घुसपैठ करने की साजिश रची जा रही है। हालांकि कश्मीर घाटी में सुरक्षा के लिए जिम्मेदार श्रीनगर स्थित 15वीं कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जे एस संधू के मुताबिक सेना मुस्तैद है और आतंकवादियों के घुसपैठ के इस प्रयास को विफल कर दिया जाएगा। लेफ्टिनेंट संधू ने कहा कि नियंत्रण रेखा के पार पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से घुसपैठ पिछले वर्ष के मुकाबले इस वर्ष कम रही है, इस बार बर्फ ने भी हमारी मदद की है। अधिक बर्फबारी होने से आतंकवादियों को घुसपैठ करने में मुश्किल हो गई है। सेना का यह कथन ढांढस बंधाता है कि सब कुछ ठीक हो जाएगा। लेकिन पिछले साल के उड़ी हमले जैसी घटना को दोबारा अंजाम देने में आतंकी अगर सफल रहे हैं तो यह केेंद्र सरकार के लिए बहुत बड़ी चुनौती है। उड़ी हमले के बाद से ही सर्जिकल स्ट्राइक का ढोल खूब पीटा गया था, मानो हमने ऐसा करके पाकिस्तान को चारों खाने चित्त कर दिया है और अब उसकी ओर से कोई साजिश नहींहोगी। लेकिन ऐसा नहींहुआ। 9 अप्रैल को हुए उपचुनावों में भरपूर हिंसा हुई, जिसमें 8 लोग मारे गए। उसके बाद से समूची घाटी में तनाव पसरा हुआ है। अभी 24 अप्रैल को ही पुलवामा जिले में पीडीपी के एक जिलाध्यक्ष अब्दुल गनी डार की आतंकियों ने हत्या कर दी, उससे पहले17 अप्रैल को आतंकियों ने नेशनल कॉन्फ्रेंस से जुड़े एक वकील की शोपियां जिले में हत्या कर दी थी। इस वर्ष 26 मार्च को कुलगाम में आतंकी हमला हुआ था। इसमें सीआरपीएफ कैंप पर गोलियां बरसाई गई थीं, 23 फरवरी को शोपियां में सेना की पैट्रोलिंग पार्टी पर हुए आतंकी हमले में 3 जवान शहीद हो गए थे और फरवरी में ही हंदवाड़ा में आतंकियों से साथ हुए एनकाउंटर में एक मेजर सतीश दहिया और 3 जवान शहीद हो गए थे। हथियारों से हमलों के अलावा अब आतंकी नयी तकनीकी का इस्तेमाल भी आतंक फैलाने के लिए कर रहे हैं।
बीते दिनों सोशल मीडिया पर आतंकियों का एक वीडियो काफी वायरल रहा है, इसमें 30 से अधिक आतंकवादी सेना की वर्दी में हथियार लिए दिखाई दे रहे हैं। आतंकवादी बुलेट प्रूफ जैकेट पहने हुए हैं, उनके हाथों में एके-47 है। आतंकियों का यह वीडियो दक्षिणी कश्मीर के किसी जगह पर बनाया गया है। बताया गया है कि आतंकियों ने ये वीडियो सोशल मीडिया पर एक एजेंडे के तहत शेयर किया है। वीडियो जारी करने का मकसद दक्षिण कश्मीर में अपनी मौजूदगी दिखाना है। हैरान करने वाली बात ये भी है कि पिछले 20 सालों में पहली बार ऐसा देखने में आया है जब इतनी संख्या में आतंकी एक साथ नजर आए हैं। घाटी में व्याप्त तनाव के बीच इतने आतंकियों का एक साथ नजर आना सुरक्षाबलों के लिए चिंता का विषय बन गया है। राजनेताओं से लेकर सैन्य बलों पर हमले, सोशल मीडिया के जरिए खौफ का प्रसार और नौजवानों को बरगलाना, हाल फिलहाल की ये घटनाएं यह बताती हैं कि जम्मू-कश्मीर में स्थिति सुधारने की जो कोशिशें सरकार की ओर से की जा रही हैं, वे कारगर नहींहैं और अब दूसरे विकल्पों पर भी गौर फरमाना होगा, भले वे केेंद्र और राज्य सरकार की राजनीति के अनुकूल न हों।