• ऊर्जा स्वतंत्रता का उपाय

    वर्तमान में भागीरथी पर कोटेश्वर जैसी पम्प स्टोरेज योजना में नदी पर बांध बनाया जाता है

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    वर्तमान में भागीरथी पर कोटेश्वर जैसी पम्प स्टोरेज योजना में नदी पर बांध बनाया जाता है। परन्तु ऐसी परियोजना को नदी छोड़ कर पहाड़ो पर स्वतंत्र रूप से भी बनाया जा सकता है। मेरा अनुमान है कि स्वतंत्र पम्प स्टोरेज योजना से 4 रुपए प्रति यूनिट के खर्च से दिन की बिजली को पीकिंग में बदला जा सकता है। नदी के पाट से बाहर बनाने के कारण ऐसी परियोजनाओ के गाद, मछली आदि पर दुष्प्रभाव नही पड़ेंगे। वर्तमान में सोलर पावर का रेट 2.50 पैस प्रति यूनिट गया है। इसके साथ स्वतंत्र पम्प स्टोरेज को जोड़ देें तो पीकिंग बिजली 6 रुपए प्रति यूनिट में उत्पादित की जा सकती है जो कि वर्तमान मे हाइड्रोपावर के 10 रुपए प्रति यूनिट से बहुत कम है। देश की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए ऊर्र्जा सुरक्षा स्थापित करना नितांत आवश्यक है।

                देश को स्वतंत्र हुए 70 साल हो गए परन्तु हम परतंत्र होते जा रहे हंै। फास्फेट फर्टिलाइजर, ईंधन तेल, कोयले और यूरेनियम के आयात पर हम निर्भर हो गए हैं। इन माल की सप्लाई बंद हो जाए तो हमें एक सप्ताह में ही हमें विदेशी ताकतों के सामने घुटने टेक देने होंगे। ऊर्र्जा की परतंत्रता सब से ज्यादा विकट है। देश की ऊर्र्जा की जरूरतें बढ़ती जा रही है लेकिन हमारे स्त्रोत सीमित है। थर्मल बिजली के उत्पादन को कोयला चाहिए। हमारे कोयले के भंडार लगभग 150 साल के लिए ही पर्याप्त है। वर्तमान में ही हम कोयले का आयात कर रहे हंै। देश में तेल कम ही उपलब्ध है। 80 प्रतिशत तेल का हम आयात कर रहे हंै। न्यूक्लीयर ऊर्र्जा के लिए अपने देश में यूरेनियम कम ही उपलब्ध है। इसके आयात के लिए हम निरंतर न्यूक्लीयर सप्लायर्स ग्रूप की सदस्यता हासिल करने का प्रयास कर रहे है जो कि हमारी विवशता को दर्शाता है।

                थर्मल तथा न्यूक्लीयर ऊर्र्जा में एक और समस्या पाकिंग पावर की है। देश में ऊर्र्जा की डिमांड सुबह एवं शाम 6-10 बजे सर्वाधिक रहती है। दिन तथा रात में जरूरत कम रहती है। लेकिन थर्मल तथा न्यूक्लीयर ऊर्र्जा को समयानुसार शुरू तथा बंद नही किया जा सकता है। एक बार बायलर के गर्म हो जाने के बाद इसे गर्म रखना पड़ता है। थर्मल तथा न्यूक्लीयर ऊर्र्जा 24 गुणा 7 बिजली की जरूरत पूरी करने के लिए उपयुक्त होती है। तेल से बनी ऊर्र्जा की तुलना मे जल्द शुरू एवं बंद किया जा सकता है परन्तु ऊर्र्जा के सभी स्त्रोतो में यह सबसे मंहगा पड़ता है इसलिए धाबोल जैसी तेल आधारित परियोजनाओं को हमें बंद करना पड़ा है।

                बचते हैं सोलर तथा हाइड्रो स्त्रोत। सोलर ऊर्र्जा का उत्पादन केवल दिन के समय होता है। पीकिंग पावर की जरूरत पूरा करने में यह स्त्रोत पूरी तरह नाकाम है। तुलना में हाइड्रो पावर से पीकिंग पावर को बखूबी बनाया जा सकता है। हाइड्रोपावर का उत्पादन नदी के पानी को डैम के पीछे रोक कर किया जाता है। टर्बाइन को मनचाहे समय शुरू और बंद किया जा सकता है। इसलिए हमारे इंजीनियरों को यह स्त्रोत सर्वाधिक पसंद है। लेकिन हाइड्रोपावर के पर्यावरणीय एवं सामाजिक दुष्प्रभाव भयंकर है। टिहरी, भाखड़ा और सरदार सरोवर जैसे बांधों में नदी द्वारा लाई गई खाद जमा हो रही है। कुछ समय में बांध के पीछे की झील पूरी तरह से गाद से भर जाती है। टिहरी हाइड्रोपावर कंपनी द्वारा कराए गए अध्ययनों में पाया गया है कि टिहरी की झील 140 से 170 वर्षों में पूरी तरह गाद से भर जाएगी। इसके बाद झील में बरसात के पानी का भंडारण नहीं हो सकेगा। टिहरी डैम का मूल लाभ है कि मानसून के पानी को एकत्रित करके जाड़े एवं गर्मी में उपयोग किया जाता है। मानसून में झील मे ंपानी का भंडारण करके इच्छित समयानुसार बिजली का उत्पादन किया जाता है। झील में गाद के भर जाने के बाद ऐसा नही हो सकेगा। साथ-2 गाद के झील में जमा होने से हमारे तटीय क्षेत्रों का समुद्र भक्षण करने लगता है। नदी द्वारा लाई गई गाद से समुद्र की गाद की भूख की पूर्ति हो जाती है। झील में गाद के जमा होने से नदी द्वारा गाद कम मात्रा में लाई जाती है और समुद्र द्वारा अपनी भूख को मिटाने के लिए ही हमारे तटो का भक्षण किया जाता है। वर्तमान में गंगासागर द्वीप का समुद्र द्वारा भक्षण इसी प्रकार किया जा रहा है।

                छोटी हाइड्रोपावर योजनाओं में डैम के पीछे बड़ी झील नहीं बनाई जाती है। 24 घंटे में जितना पानी पीछे से आता है उतना ही बिजली बना कर आगे छोड़ दिया जाता है। परन्तु इन योजनाओं से मछली के आने जाने के रास्ते बंद हो जाते हंै। जैसे हरिद्वार में भीमगोडा तथा ऋषिकेश में पशुलोक बराज बनाने से माहसीर मछली का रास्ता बंद हो गया है और जो मछली पूर्व में 100 किलो तक की होती थी अब वह 5 किलो की रह गई है। मछली के कमजोर होने से नदी के पानी की गुणवत्ता भी कमजोर होती है चूँकि मछली नदी में आ रहे कूड़े को खाकर साफ कर देती है। हाइड्रोपावर योजनाओं में विस्थापन की सामाजिक समस्या भी रहती है। इसलिए हाइड्रोपावर हमारे लिए उपयुक्त नही है। मैंने कोटलीमेल परियोजना के पर्यावरणीय दुष्प्रभावों का आर्थिक मूल्यांकन किया तो पाया कि हाइड्रोपावर की वास्तविक उत्पादन लागत 15-20 रुपए प्रति यूनिट है। इंजीनियरों द्वारा इसे सस्ता माना जाता है चूँकि पर्यावरण के दुष्प्रभावों को बिना बताए चुपके से निरीह जनता पर सरका दिया जाता है जैसे जोंक द्वारा बिना संकेत दिए खून चूस लिया जाता है।

                ऊर्र्जा स्वतंत्रता की समस्या विकट है। थर्मल तथा न्यूक्लीयर के लिए हम आयातों पर निर्भर हो जाते हंै और पीकिंग पावर भी नहीं बना सकते हैं। तेल मंहगा पड़ता है। सोलर का उत्पादन दिन में होता है जबकि जरूरत सुबह शाम ज्यादा होती है। हाइड्रो के पर्यावरणीय एवं सामाजिक दुष्प्रभाव भयंकर है।

    इस विकट समस्या का हल सोलर तथा पम्प स्टोरेज के जोड़ से निकल सकता है। सामान्य हाइड्रो योजना में ऊपर से आ रहे पानी को एक बार बिजली बनाते हुए नीचे छोड़ दिया जाता है। पम्प स्टोरेज योजना में दो झील बनाई जाती है - एक ऊपर तथा एक नीचे। जिस समय सोलर, थर्मल अथवा न्यूक्लीयर बिजली की सप्लाई अधिक एवं डिमांड कम रहती है, और बाजार में बिजली का दाम लगभग 2 रुपए रहता है उस समय नीचे की झील को झील के पानी को पम्प से ऊपर की झील में डाल दिया जाता है। इसके बाद जब बिजली की डिमांड ज्यादा होती है और बिजली का दाम 8-12 रुपए प्रति यूनिट रहता है तो ऊपर की झील से पानी छोड़ बिजली को बनाया जाता है। जिस प्रकार हलवाई दूध को एक गिलास से दूसरे गिलास में ऊपर नीचे डालता है उसी तरह पानी को ऊपर नीचे डाल कर दिन के समय उपलब्ध सरप्लस बिजली को सुबह शाम की पीकिंग बिजली में बदला जाता है।

    वर्तमान में भागीरथी पर कोटेश्वर जैसी पम्प स्टोरेज योजना में नदी पर बांध बनाया जाता है। परन्तु ऐसी परियोजना को नदी छोड़ कर पहाड़ो पर स्वतंत्र रूप से भी बनाया जा सकता है। मेरा अनुमान है कि स्वतंत्र पम्प स्टोरेज योजना से 4 रुपए प्रति यूनिट के खर्च से दिन की बिजली को पीकिंग में बदला जा सकता है। नदी के पाट से बाहर बनाने के कारण ऐसी परियोजनाओ के गाद, मछली आदि पर दुष्प्रभाव नही पड़ेंगे। वर्तमान में सोलर पावर का रेट 2.50 पैस प्रति यूनिट आ गया है। इसके साथ स्वतंत्र पम्प स्टोरेज को जोड़ देें तो पीकिंग बिजली 6 रुपए प्रति यूनिट में उत्पादित की जा सकती है जो कि वर्तमान मे हाइड्रोपावर के 10 रुपए प्रति यूनिट से बहुत कम है।

                देश की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए ऊर्र्जा सुरक्षा स्थापित करना नितांत आवश्यक है। हमारे पास न कोयला है, न यूरेनियम है, न तेल है। नदियाँ पूजनीय है लेकिन हमारे पास धूप और पहाड़ है। इनका जोड़ बना दें, तो हम अपने संसाधनो से ही सुबह शाम की पीकिंग बिजली 6-7 रुपए के सस्ते दाम पर बना सकते हैं। देश की सच्ची स्वतंत्रता पीकिंग ऊर्र्जा के घरेलू उत्पादन से स्थापित होगी।

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